Friday, 9 May 2014

सुप्रभात




शांत ,     नीरव ,     निश्छल      क्षण ।
सहस्र   रश्मियाँ   सूर्य – रथ      अश्व बन
अट्टालिकाओं    के     बीच    से छन-छन । 
पंक्ति-बद्ध   वृक्ष-पुष्पों   से सुसज्जित उपवन
मोती बन चमक उठा तृण - फुनगी जल कण ।
पक्षियों के  कलरव से झंकृत  उन्मुक्त गगन ।
शीतल-शीतल        मंद-मंद          पवन
कोमल-कोमल       लघु-लघु       स्पंदन ।
विस्फारित नयन और मुक्त वदन का सिहरण ।

कुत्सित विचारों का कर   लेगा हरण
न शेष ईर्ष्या – द्वेष , न कोई जलन
और न अब रहेगा कलुषित भी मन ।
आएगा शीघ्र वह क्षण सुप्रभात बन
चिर हास से कर देगा जगमग-जगमग जीवन । 



अमर नाथ ठाकुर , 9 मई , 2014 , कोलकाता ।     


No comments:

Post a Comment

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...