Tuesday, 31 May 2016

खड़-खड़ ट्राम चले

खड़-खड़ खड़-खड़ ट्राम चले ।

नहीं कोई धुआँ नहीं कोई कूड़ा छोड़ती
ठन-ठन ठन-ठन की घंटी से रास्ता बनाती
यातायात के नियमों का भी पालन करती
मोड़-मोड़ पर , बत्ती-बत्ती पर जब यह रुकती
लोग उतरे और लोग चढ़े ।

खिदिरपुर से जब खुलती
मोमिनपुर को जोड़ती
अलीपुर से भी गुजरती
कालीघाट दिखाती बढ़ती
पर ममता के घर को छोड़ चले ।

बेहाला अब नहीं जाती
हावड़ा भी अब नहीं दिखाती
बड़ा बाजार से अब दूर ही रहती
एस्प्लेनेड का किन्तु चक्कर अब भी मारती
कहीं भी जाओ पांच-छह-सात के बदले ।

बाजार में भी जब बंदी होती
दुकानें भी जब नहीं खुलती
सडकों पर बसें भी नहीं चलती
कलकत्ते की शान ट्राम तब भी चले ।

खड़-खड़ खड़-खड़ ट्राम चले ।

अमर नाथ ठाकुर , 31 मई , 2016 , कोलकाता ।

Sunday, 29 May 2016

भीड़ में सब तत्क्षण है



ये भीड़ थमती नहीं
क्योंकि ये भीड़ थकती नहीं ।

ये भीड़ कमती भी नहीं
इसमें किसी की चलती नहीं ।

 यहाँ न कोई भ्रम है
चाहे न कोई क्रम है ।

जहाँ हर कोई बोलेगा
जहाँ न कोई सुनेगा ।

लोग नहीं यहाँ बिछुड़ते हैं
क्योंकि यहाँ तो लोग जुड़ते हैं ।

यहाँ लोग अनजान मिलेंगे
लोग पहचान के भी मिलेंगे ।

 यहाँ नहीं कोई खून-खराबा होता
तो भी यहाँ शोर-शराबा होता ।
यहाँ होता है कुतूहल पूर्ण कोलाहल
और उत्तेजना पूर्ण बरबस हलचल ।

यहाँ भीड़ में जेब कतरे होते हैं
इसमें लोग साफ़ सुथरे भी होते हैं ।

भीड़ में कौन किसकी सुनता है
जब कोई खुद की नहीं गुनता है ।

यहाँ लोग बहकते हैं
किन्तु लोग नहीं दहकते हैं ।

यहाँ भीड़ भी सहमती है
क्योंकि भीड़ में सहमति है ।

लोग जब साथ में होते हैं
लोग तब ठाट में रहते हैं ।

यहाँ की भीड़ मुझे हमेशा  भाती है
नहीं यहाँ कोई भेद-भाव सताती है ।

यहाँ न जान का खतरा होता है
क्योंकि यहाँ न मान का बखरा होता है ।

लोग यहाँ भीड़ में नहीं झगड़ते
क्योंकि यहाँ बातों पर नहीं भड़कते ।

भीड़ की  नहीं कोई जाति है
भीड़ का नहीं कोई धर्म ।
क्षण कुछ भीड़ में बिताओ
जान लोगे  भीड़ का मर्म ।

भीड़ में सब तत्क्षण है
इसलिये नहीं कोई आरक्षण है ।

क्या गाऊं यहाँ के भीड़ की महिमा
क्या दूँ यहाँ की भीड़ को उपमा ।

(हावड़ा और सियालदह स्टेशन की भीड़ से प्रेरणा पाकर)

अमर नाथ ठाकुर , 7 नवम्बर  , 2015 , कोलकाता ।





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