जब भी आप याद आते हैं
आप दगा देकर निकल रहे होते हैं ।
आप दगा देकर निकल रहे होते हैं ।
आप तिरछी आँखों से देखते हैं
यह कहाँ पता चल पाता है
आप मीठी ही बातें बोलते हैं
यह स्वाद तो हमें लग ही जाता है
आप साथ में खाना खा लेते हैं
और कैसे बिल थमा जाते हैं
आपकी गाड़ी में चल लेता हूँ
कब आप भाड़ा ले लेते हैं !
उस दिन तो कमाल हो गया
जब आपने हमसे रुमाल ले लिया
पसीना आपने अपना पोंछा
मेरा पसीना ढलकता निढाल हो लिया ,
मेरा विश्वास आपने चुरा लिया
आपका हाथ अपने कंधे पर चढ़ा लिया
और कदम में कदम मिला जोर से चलने लगा
न जाने कब आपने मेरा गला दबा दिया !
साथ -साथ खाते-पीते रंग बदलते रहे हैं
और मज़ा लेते हुए सज़ा भी देते रहे हैं
चुगलखोरी तो स्वभाव वश करते ही रहे हैं
खिल-खिला कर हँसते हुए सब छुपाते रहे हैं
काम करने का वादा भी आप करते रहे हैं
और मज़ा लेते हुए सज़ा भी देते रहे हैं
चुगलखोरी तो स्वभाव वश करते ही रहे हैं
खिल-खिला कर हँसते हुए सब छुपाते रहे हैं
काम करने का वादा भी आप करते रहे हैं
और फिर बिना पता चले दगा भी देते रहे हैं
परामर्श तो आप मुझे समय - समय पर देते रहे
हम इसे आपकी भलमनसाहत समझते रहे
आकाश से गिर कर खजूर पर भी हम नहीं लटक सके
यह मेरी बदनसीबी थी जब हम जमीन पर गिरे पाए गए
धूल - धूसरित तो हम हुए ही कीचड़ में भी सन दिए गए !
कितने अच्छे भले आप मित्र मेरे थे
यह पता तो तब चला जब ये सबक सिखा गए ।
आपका शुक्रिया आप कम-से-कम बहल तो गए
आपका और शुक्रिया हम भी आपसे बहला गए ।
अमर नाथ ठाकुर , 1 जून , 2018 , मेरठ ।