Monday, 6 October 2014

आबार एसो माँ ( माँ फिर आना )



रात भर हड़-हड़-खड़-खड़ मेट्रो चलती
खचा-खच भरी ट्राम खरासती 
टैक्सियाँ पों –पों  करती,
बसें और कारें सरकती ।
रात भर दर्शनार्थियों का अंत हीन  रेला चलता
जग मग रोशनी में पंडाल जगमगाता
जागरण करता सारा कोलकाता ।
यहाँ पंडाल , वहाँ पंडाल
इस गली में , उस गली में
इस सड़क पर , उस सड़क पर
इस क्लब में , उस क्लब में ।
एक – से – एक कारीगरी , एक से – एक सजावट
सब हैं  सुसज्जित सब हैं  व्यवस्थित
एक – से – एक आइडियाज़
कहीं विनाश , कहीं विकास
कहीं संस्कृति , कहीं इतिहास
कहीं कराहती मानवता
ये पंडाल सबको निरूपित करता ।
अनवरत धप – धप – धाप
हृदय दलमलित करता ढाक ।
कोई नाचता , कोई थिरकता
माँ के चरणों के नीचे दीप लहराता
धूप – अगरबत्तियों के धूएँ की मोटी रेखा
घड़ी – घंट की टन-टन-टन की आवाज़
शंख – ध्वनि की हूंकार से आगाज ।
जयंति मंगला काली भद्र काली
...........स्वाहा स्वधा नमोस्तुते
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
..........गौरी नारायणि नमोस्तुते ।   
वीरेंद्र कृष्ण भद्र की ओजस्वी चंडी पाठ - कथा
नवमी पर्यन्त अपरिवर्त्तित यही रात्रि कालीन गाथा ।
माँ का तेजोमय  मुख , अस्त्र –शस्त्र से सज्जित अष्ट भुजा
खड्ग चक्र वाण गदा पुष्प बरछी  और विजयी ध्वजा
लहराती केश राशि , चकाचौंध परिधान से मंडित
पुष्प – मालाओं और आभूषणों से आच्छादित
 गणेश कार्तिक लक्ष्मी और सरस्वती से समर्थित
शेर की दहाड़ से विचलित असंतुलित    
महिषासुर की रक्तिम आँखें , शोणितमय वेधित छाती ।
पुष्प वृष्टि करते बच्चे युवा वृद्ध नर – नारी ।
पूजा में कोलकाता का ये दृश्य मनोहारी ।
नव रात्रि का तब होता अवसान  
फिर गंगा – घाट पर विसर्जन विहान ।
महिलाओं की उलूक – ध्वनि का गुंजन
सिंदूर – खेला  और  अवीर – मर्दन ।
धप – धप – धप – धाप – धाप  
निर्बाध धप – धप – धाप ढाक ।
उद्वेलित करता उद्घोष  दुर्गा माँ की जय
नौका हाथी डोली पे सवार माँ की विदाई
माँ आबार आसबेन आबार एसो माँ गो
जाच्छो छेड़े एइ भावे केनो
अश्रु – नीर से सराबोर दादा दीदी भाय
गंगा की धार में जब माँ जाती समाय ।  
और फिर एक फुसफुसाहटी मंत्रणा
अगली पूजा का थीम क्या होगा ?
अति शीघ्र एक टा मीटिंग डाका हबे
जखन एर उपरे विचार हबे ।
और फिर अगली पूजा की तैयारी
थोड़ी – थोड़ी ही सही पर हो जाती जारी ।
माँ के फिर आने की इंतजारी
पूरे साल तक चलेगी ये बेकरारी ।
आबार आसबेन माँ क्योंकि माँ के ऊपर
है हमारी सुरक्षा की पूरी जिम्मेवारी ।  


अमर नाथ ठाकुर , 6 अक्तूबर , 2014 , कोलकाता ।     

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...