जिन्दगी में कुछ नहीं कर सकते
जब नहीं बोल सकते थे
जब नहीं चल सकते थे
जब नहीं सोच सकते थे
क्योंकि तब तो बच्चे थे ।
तब जुबान कड़वी नहीं थी
शरीर में दम नहीं था
मन किन्तु कितना सच्चा था ।
और सब दिखता अच्छा था ।
फिर जब बोलने लगे तो गलत ही बोलते थे
फिर जब चलने लगे तो गलत रास्ते ही चलते थे
फिर जब सोचने लगे तो फिर गलत ही सोचते थे
क्योंकि तब तक जवान जो हो गये थे ।
मन ,शरीर और सोच लहूलुहान हो गये थे ।
अब फिर नहीं बोल सकते क्योंकि जबान लड़खड़ाती है
चल नहीं सकते क्योंकि कदम लड़खड़ाते हैं
अब सोच भी नहीं सकते क्योंकि सोच गड़बड़ाते हैं
क्योंकि बूढ़ा जो हो चले हैं ।
पूरी जिन्दगी न बोल सकते
पूरी जिन्दगी न चल सकते
पूरी जिन्दगी न सोच सकते ,
तो फिर क्या यही है जिन्दगी ?
यही जिन्दगी है जब नहीं कुछ कर सकते ।
अमर नाथ ठाकुर , 4 फरवरी , 2017 , मेरठ ।
जब नहीं बोल सकते थे
जब नहीं चल सकते थे
जब नहीं सोच सकते थे
क्योंकि तब तो बच्चे थे ।
तब जुबान कड़वी नहीं थी
शरीर में दम नहीं था
मन किन्तु कितना सच्चा था ।
और सब दिखता अच्छा था ।
फिर जब बोलने लगे तो गलत ही बोलते थे
फिर जब चलने लगे तो गलत रास्ते ही चलते थे
फिर जब सोचने लगे तो फिर गलत ही सोचते थे
क्योंकि तब तक जवान जो हो गये थे ।
मन ,शरीर और सोच लहूलुहान हो गये थे ।
अब फिर नहीं बोल सकते क्योंकि जबान लड़खड़ाती है
चल नहीं सकते क्योंकि कदम लड़खड़ाते हैं
अब सोच भी नहीं सकते क्योंकि सोच गड़बड़ाते हैं
क्योंकि बूढ़ा जो हो चले हैं ।
पूरी जिन्दगी न बोल सकते
पूरी जिन्दगी न चल सकते
पूरी जिन्दगी न सोच सकते ,
तो फिर क्या यही है जिन्दगी ?
यही जिन्दगी है जब नहीं कुछ कर सकते ।
अमर नाथ ठाकुर , 4 फरवरी , 2017 , मेरठ ।