Saturday, 30 August 2014

कैसे-कैसे लोग



एक बार ट्रेन में आ रहे थे । डिब्बे के  दूर वाले कोने से आवाज आ रही थी । एक साहब किसी से मोबाइल पर बात कर रहे थे .... घर जल्दी आ जाना ..... गाड़ी भिजवा दी है हमने ...... प्लेटफॉर्म न॰ 8-9 (हावड़ा) के बीच में देख लेना नीले रंग की मरसीडीज़ होगी  WB 06 ......... समझ गया न ..... ये साहब इतनी ज़ोर – ज़ोर से बोल रहे थे कि पूरे डिब्बे में सबको सुनाई दे रहा था ।  वो साहब मन ही मन प्रफुल्लित हो रहे थे अपने स्टेटस का डंका पीट कर । और फिर मुझे अपने बेटे की बात याद आ रही थी जब मैं ज़ोर-ज़ोर से फोन पर बातें करता था तो यह अन्य लोगों के लिए कितनी असहज स्थिति उत्पन्न करता था और वह अनायास चिड़चिड़ा कर कह उठता था कि ...... पापा तुम्हें फोन पर बात पहुंचाने  की  क्या जरूरत है क्योंकि तुम्हारी आवाज इतनी बोल्ड है कि यह तो ऐसे ही कोने-कोने तक पहुँच जाती है ......हमें फिर ख्याल आता था कि फोन पर बात करते हुए आदमी सब कुछ भूल जाता है लेकिन अपनी चारित्रिक विशेषताएँ नहीं भूलता । इसलिए तो कहता हूँ  ये मोबाइल फोन  भी न , क्या अजूबा है । कैसों – कैसों की पोल खोल दे । बात करने वाले का चरित्र एक झटके में समझ में आ जाय । जो आप उसके सान्निध्य में रहकर उसे न पहचान सकें , उनकी बातों को सुनकर पहचान जाएँ ।

                                    ***

हमारे एक वरिष्ठ सहयोगी थे जो कुछ दिनों पहले यहीं कलकत्ते में ही हुआ करते थे । साथ-साथ उठना बैठना कोई ज्यादा न था । हम उनके बारे में ज्यादा जानते न थे । उस दिन उनसे मोबाइल पर बातचीत हुई और हम उन्हें बढ़िया से जान गए । आइये बताते है उनसे हुई बातचीत की एक बानगी

मैं ने डायल किया उनका नंबर .....9434...............घंटी बजने लगी .... ट्रिङ्ग-ट्रिङ्ग ........... और साथ में एक उद्घोषणा भी होने लगी ........ बी एस एन एल मोबाइल भालो कवरेज दाय ...............म्यूज़िक के  साथ ....... फिर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ ... उधर से आवाज आयी ,

हाँ , सर जी नमस्कार !

हाँ सर नमस्कार !

कैसे हैं सर जी ?’

अच्छे हैं । धन्यवाद ! आप कैसे हैं  सर ?’

ठीक हूँ , आपकी कृपा है । कहिए , कैसे याद किया ?’

कोई खास नहीं । आपको यहाँ नहीं पाया  तो पूछ लिया बस , आप कहाँ हैं ?’

मैं औफिस नहीं आया हूँ आज ।

तो कहाँ हैं ?’

कलकत्ते में नहीं हूँ सर जी ।

तो कहाँ हैं , सर ?’

कोलकाता से बाहर हूँ ।

सो तो समझ गया । किन्तु आप कहाँ गए  हैं, सर ?’

कोलकाता से दूर हूँ ।

मैं भी उनको छोड़ने वाला नहीं था । मैंने भी ठान लिया था उनको पूछ कर ही छोडूंगा । मैंने लगातार अपना प्रश्न जारी रखा । 
मैंने फिर पूछा , ‘सर आप कोलकाता से कितनी दूर हूँ ?’

कोई खास दूर नहीं , सर जी ।

उनके सरकारी ज्यूरिसडिक्सन का हमें पता था । इसलिए हमने आखिर अपना अनुमान बता दिया ।

सर , आप शायद खड़गपुर में हैं ?’

नहीं , किन्तु पास ही ।

तो फिर कहाँ , कौन सी जगह है ?’

आज लौट जाएंगे , चिंता की  कोई बात नहीं ।

लेकिन आप हैं कहाँ ?’ फिर क्षण भर का एक सन्नाटा । 

आवाज गाड़ियों के हॉर्न की , कुछ कनिष्ठ अधिकारियों की उनकी आपस की बातचीत की कुछ असपष्ट – सी सुनाई दे रही थी । मेरा अनुमान अब ऐसा लग रहा था कि हो न हो ये साहब खड़गपुर के आस-पास ही जरूर हो सकते हैं ।

मैं ने फिर प्रश्न दागा, सर क्या आप बांकुड़ा में हैं ?’

नहीं तो ।

तो फिर कहाँ हैं ?’

जैसे कि हम उनकी पहेली का हल ढूंढ रहे हों , और वो हमको भरपूर मौका दे रहे हों कि लो अब गेस करो और देखते हैं कि कितनी जल्दी हम उनकी पहेली का जवाब दे पाते हैं । मैं अब जरा भी नहीं झुंझला रहा था । मैं अब और दृढ़ होता जा रहा था । आज अब मैं इनसे उगलवा कर ही रहूँगा कि आखिर ये हैं कहाँ , मैं ने पूरी तरह ठान ली थी ।

तो आसनसोल में होंगे ?’

नहीं , सर जी ।

अच्छा वहाँ भी नहीं , तो फिर कहाँ हैं ?’

साइट इंसपेक्सन में आया था ।

सो तो समझ में आ रहा है सर । लेकिन आप कहाँ के साइट के इंसपेक्सन में आए हैं ?’

आज ही  लौट रहा हूँ । भेंट होगी शाम में ।

लेकिन आप गए कहाँ हैं सर ? क्या दुर्गापुर में हैं ?’

नहीं सर जी । फिर उसी  कोमलता से उन्होंने  जवाब दिया । 

मैं बार-बार उन्हें पूछता चला जा रहा था , फिर भी उनकी आवाज में कोई झुंझलाहट नहीं ।
लेकिन हमें अब तलक शांति नहीं मिली थी , मैं उतावला भी हो रहा था । मेरी उत्कंठा अब तीव्र होती जा रही थी । आखिर ये बात क्या है जो ये साहब नहीं बताना चाहते । क्या संशय है ? वह ऐसी कौन सी सीक्रेट है जो वह प्रकट नहीं करना चाहते हैं ।

मेरी उत्कंठा और मेरा उतावलापन अब मेरी  झुंझलाहट में तब्दील होती जा रही थी ।
लेकिन मैं कर क्या सकता था । जानना मुझे था , बताना उन्हें था ।

मैं थक-हार गया था । प्रोबाबिलिटी का सवाल हल जब करता था तो कई – कई बार उत्तर नहीं  मिल पाता था या गलत उत्तर पाता था । हल करने का तरीका बदलता था । दूसरी बार, तीसरी बार , फिर तो सही निशाना बैठता था, उत्तर पा जाता था  और खुश हो जाता था । ऐसा ही पर्म्यूटेशन-कंबीनेशन के सवालों का होता था जिनके उत्तर देखकर सवाल बनाने का सही तरीका ढूँढता था  । लेकिन यहाँ तो उत्तर-माला ही नहीं है जो अपना तरीका ठीक करूँ ।  आज जीवन में पहली बार ऐसा लग रहा था कि प्रोबाबिलिटी या परम्यूटेशन – कंबीनेशन  से भी कोई कठिन  प्रश्न हाथ आ गया हो और जिसका उत्तर हमें नहीं मिल सकता । यहाँ मैथ की कुंजी की तरह कुछ हो सकता है क्या ? लेकिन ऐसा यहाँ जरूरत ही क्या है , हमें कोई परीक्षा थोड़े देनी है , ऐसा हमने कुछ क्षणों के लिये सोचा  । लेकिन मन मानने के लिये तैयार नहीं था । जीवन में  ऐसी बड़ी हार पहले कभी नहीं  मिली थी । एक अदना सी बात , और वो भी पूछ नहीं पा रहे हैं । जबकी वो आदमी साक्षात मोबाइल  पर उपलब्ध हैं । वो चाहते तो मोबाइल काट भी दे सकते थे। दो बार हॅलो-हलू बोलते , फिर कुछ घिघियाते कि आवाज कट रही है , बी एस एन एल को दो गालियां दे देते और फिर जैसा होता है, जैसा कि लोग करते हैं वह भी फोन डिसकनेक्ट कर देते । हम भी समझ जाते कि साहब नहीं बताना चाह रहे हैं । कुछ सीक्रेट मिशन है । लेकिन ऐसा कुछ भी तो यहाँ नहीं हो रहा है । अब क्या करूँ , फोन जारी रखूँ ? यहाँ चोर पुलिस वाली स्थिति भी तो नहीं कि पीट-पीट कर या धमका-धमका कर बात पता कर लें ।  या हम ही हलू-हलू वाला फार्मूला लगा कर फोन काट डालें । या कोई और टॉपिक पर बात को ले आयें । अथवा सर गलती हो गई , फिर ऐसी गलती  नहीं  करेंगे कि आप से पूछेंगे कि आप कहाँ हैं ? आप सीधे - सीधे बता दें यदि बताना चाहें अथवा हम फोन रखते हैं । कुछ ही क्षणों में ये सारे सवाल और समाधान हमारे मन में कौंध गए । लेकिन हमारी भलमनसाहत ने हमें ऐसा कुछ उट-पटांग करने से रोक दिया । ये एक वरिष्ठ सहयोगी का अपमान होता । और ये हमारी आदत में  नहीं ।  और फिर हमने फिर बिना किसी देरी के अगला सवाल दाग दिया......

तब तो सर कौन सी जगह बची , आप वर्द्धमान में होंगे ?’

नहीं सर जी , हम तो इधर आए थे ।

किधर ?’

इधर ही

छोड़िए सर जी ’ मेरे स्वर में आक्रोश की बू थी । 

क्योंकि अब मैं परेशान हो गया था । मेरा धैर्य जवाब दे गया था । इतने में कुछ सुनाई दिया.... 

इधर हलदिया की तरफ ।’ 

कुछ अप्रत्याशित सा लगा । अविश्वसनीय । और अब बेमज़ा सा भी था यह । 

मैंने फिर भी कहा ,   'सर , धन्यवाद , जो आपने आखिर सोलह प्रश्नों के उपरांत कुछ कहा । अच्छा सर शाम में मिलते हैं । मैं ने तुरत टरकाया क्योंकि यह यकायक असह्य लगने लग गया था । 

हाँ सर जी ।

नमस्कार।

नमस्कार ।

मैंने अपना कॉलर दोनों हाथों से पकड़कर  हिलाया विजयी मुद्रा में । मैं अब अपने इन वरिष्ठ सहयोगी के चरित्र को जान गया था । भविष्य में उनको फिर कभी कुशल-मंगल के अलावा कोई प्रश्न उनको फोन  पर या ऐसे भी नहीं पूछा ।

                          ***

एक दूसरे साहब हैं जिनके पास जाकर आपको कुछ पूछना ही नहीं पड़ेगा । ये टेपरिकोर्डर हैं । शुरू हो जाते है तो फिर पूरी कर  ही दम लेते हैं साथ-साथ प्रश्न और उत्तर दोनों दुहरा कर , क्योंकि उनको मालूम है कि उनके फोन में स्पीकर नहीं है जो ये हमें दूसरे सिरे वाले की बात सुना सकें । ये भी लंबी –लंबी बात करते  हैं पर ये फोन पर बातचीत के समय पूरा ख्याल रखते हैं कि सामने वाला बोर न हों । देखिये एक बानगी । हम उनके कक्ष में पहुँचते  हैं और उनका फोन बज़ उठता है ।

नमस्कार कदम साहब

..................

कहाँ हैं आज - कल ?’

‘……………..’

मुंबई में ।  वहाँ मेरे भाई साहब भी रहते हैं ।

‘………………….’
उनका पता न, लीजिये अभी दिये देता हूँ ... ¾ सांता क्रूज ............. इत्यादि-इत्यादि ....

‘…………..’

धन्यवाद की क्या बात है ।

‘………………….’

भाभी जी ? ठीक हैं आपकी भाभी जी ।

‘……………………’

शुगर और प्रेशर, वो तो आप जानते हैं नॉर्मल  हो नहीं सकता ।

‘……………………..’

दवाइयाँ ? वो तो चलती ही रहती है लेकिन ....

‘……………’

परहेज ? वही तो नहीं हो सकता न

‘………………..’

खाने-पीने का न , वो तो आप जानते ही होंगे । कोई समय-वमय का तो वह पालन करती नहीं । और फिर मिठाई इत्यादि तो चल ही जाती है ।

‘……………’

कार ? कैसे नहीं खरीदेंगे । इतना दवाव था बच्चों का न कि खरीदना ही पड़ा ।

‘……………………..’

माँ ? वो तो चली गई गाँव उसी समय जब आप यहाँ ही थे । कदम साहेब , आप भी इन सब बातों के भुक्त-भोगी हैं । जानते हैं  न , आज कल की बहू अपनी  सास से नहीं बना कर रख पाती है । सास बहू की आपस में नहीं पटी, रोज़-रोज़ का झगड़ा ..... अब क्या बताऊँ , छोड़िए इन सब बातों को

‘…………………’

अगले महीने में । ठीक है आइये फिर विस्तार से बातें होंगी ।

‘…………………..’

नमस्कार

तो आपको पता चल गया पूरी तरह कि गुप्ता जी की बात कदम साहेब से हो रही थी जो मुंबई गए हुए थे । गुप्ता जी के बड़े भाई भी मुंबई में रहते हैं सांता क्रूज इलाके में जिनका पता कदम साहेब को चाहिए था । मिसेज गुप्ता शुगर और प्रेशर की पेशेंट हैं जो कभी परहेज नहीं  करती हैं , समय से दवा भी नहीं खाती हैं । बच्चों के दवाव में उन्होने कार खरीद ली । गुप्ता जी की माँ बहू मिसेज गुप्ता से झगड़ कर गाँव वापस चली गई । अगले महीने में जब कदम साहब कोलकाता आएंगे तो गुप्ता जी से उनकी भरपूर बातें होंगी । बताइये अब क्या शेष रहा । आप को भी पता चल गया न पूरा । क्या आप बोर हुए ? तो गुप्ता जी ऐसे ही खुले हुए हैं । लंबी-लंबी फेंकते हैं सही किन्तु दिल के साफ हैं और सब कुछ खोल कर रख भी देते हैं । 

                               ***

लेकिन अब इन चटर्जी साहेब की सुनिए । ये उस कदर के इंसान हैं कि आप समझ ही न पाएंगे कि ये भाई से , पत्नी से या बालक से या मित्र से या औफिस के किसी स्टाफ से बात कर रहे हैं । क्या बात हो रही है आप तो इसका अनुमान ही नहीं  लगा पाएंगे ।  जब कभी भी आप इनके कमरे में होंगे और इनका फोन आ जाय तो आप उनकी रहस्यमयी बात से बोर हो जाएंगे और आप को अपने उपर ग्लानि आ जाएगी । आप पछतावा करेंगे कि शायद उनके फोन के वक्त उनके कमरे में रहकर आप ने कोई भारी गलती कर ली , पाप कर लिया । सुन ही लीजिए  जरा ।

हॅलो , चटर्जी हियर

‘…………….’

आपको भी

‘…………’

अभी फोन पर ? कैसे होगा ?’

‘…………………’

अच्छा बोलो , फिर से बोलो

‘……………..’

वो नहीं

‘……………………..’

वो भी नहीं

‘……………….’

हाँ , ये वाला

‘……………..’

नहीं –नहीं , ये नहीं ।

‘……………….’ 
  
नहीं , उसके बाद वाला ।

‘……………………’

नहीं-नहीं , उसके भी बाद वाला ।

‘………………….’

हाँ , बिलकुल ठीक , यही वाला ।

‘………………..’

हम हैं , अभी रहेंगे वहीं पर ।

‘…………………….’

नहीं , सुबह जहां बोला था

‘…………’

ओ के

कुछ अनुमान लगा । बिलकुल नहीं लगा होगा । लेकिन हम हैं कि इस पर लगातार रिसर्च किए जा रहे हैं । हम पता लगा कर रहेंगे कि चटर्जी साहब किससे बातें कर रहे थे , किस चीज़ के लिए बातें कर रहे थे और इन्होंने क्या निर्णय सुनाया था । कुछ दिनों बाद चटर्जी साहब के पास नई नोकिया मोबाइल दिखा और यकायक हमने कड़ी सजाना जोड़ना शुरू किया । सेन साहब इनके बड़े करीबी हुआ करते हैं । शायद ये सेन साहब से बात कर रहे होंगे उस दिन । सुबह में उनसे किसी मोबाइल खरीदने की चर्चा चली होगी । जब चटर्जी साहब के लिए मोबाइल खरीदने के लिए  दुकान में पहुँचते हैं तो शायद सैमसंग , सोनी , मोटोरोला और नोकिया के मोडेलों की चर्चा करते हैं । चौथे क्रम पर सेन साहब ने नोकिया का नाम पुकारा होगा । चटर्जी साहब ने अपनी पसंद नोकिया बताई । लेकिन उनके सामने में हम बैठे हुए थे , हमसे छुपाते हुए उन्होने उसके बाद , उसके बाद ......... कह कर नोकिया नाम सेन साहब से पुकारबाया जो फोन पर दूसरी तरफ थे  और अपनी हामी भर दी । अपनी किसी खास स्थान पर उपलब्धता के बारे में भी उन्होने संकेतात्मक भाषा में सेन साहब को सब खुछ बता दिया । जो अपने को इस तरह की रहस्यमयी दुनिया में रखते हों आप उनके पास अत्यंत ही असहज पाएंगे । कभी इच्छा ही नहीं होगी कि आप उनके पास उठना बैठना करें । लेकिन लाचारी है चटर्जी साहब हमारे बॉस हैं । हमें दिन भर की रिपोर्ट लेकर प्रतिदिन उनके पास जाना होता है । यदि हमें विलंब हो तो उनकी घंटी बज़ जाती है और हम जाते ही हैं उनके कक्ष में ।

                          ***

एक और सुनाता हूँ यदि समय हो आपके पास । एक मित्र हैं जो अपनी पत्नी को सर कहकर जवाब देते हैं । एक बार इन साहब से भी पाला पड़ा । फोन की घंटी बज़ी । इन्होंने  तुरंत जबाव दिया .... सर , कमरे में हूँ ठाकुर साहब भी हैं (मेरा नाम बोलकर उन्होने सामने वाले को यह संदेश दे दिया कि और कोई गंभीर बात जारी नहीं रखी जा सकती )........ आ रहा हूँ सर .... फिर यकायक फोन कट गई । और ये साहब निकले झट से कमरे से । हमने समझा कि ये बॉस से मिलने जा रहे हैं । हम भी बॉस के कक्ष की तरफ चले । इन्होंने रास्ता बदल लिया ...... हमें कमरे के बाहर करके ये साहब पुनः कमरे में आ गए ..... फिर इन्होंने कुछ घुप - चुप  बात की और कक्ष से बाहर आकर हमसे माफी मांगकर दूसरी दिशा में चले गए ..... हम इस बेतुकी चाल - चलन को समझ नहीं पाए .... महीनों बाद हमने खूब खोज बीन के बाद पता किया कि इनकी पत्नी ही इनकी सर हैं । लेकिन आज फिर भी यह मित्र उतना बुरा नहीं लगा है । क्योंकि आज कुछ सीखने को मिला है । दुनियादारी सीखी हमने उनसे । बस , आज फोन की बात यहीं समाप्त करते हैं फिर कभी किसी और टॉपिक पर चर्चा करेंगे । तब तक के लिए विदा क्योंकि कहीं सरन नाराज़ हो जाय ।

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( किसी के नाम या जगह के नाम का मिल जाना महज संयोग होगा , मेरा किसी को दुःख पहुंचाने का नाम मात्र का भी इरादा नहीं )  

  अमर नाथ ठाकुर , 30 अगस्त , 2014 , कोलकाता । 

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...