-1-
नाचूँ , गाऊँ , भजन करूँ
शीश झुकाऊँ , नमन करूँ ।
आशीष मिले तुम्हारा
तुम पर सब कुछ अर्पण करूँ ।
रूप , गुण मिले मुझे तुम्हारा
तुम्हारी प्रतिमा का दर्पण
बनूँ ।
दुखियों की सेवा करूँ
गीत तुम्हारा मनन करूँ ।
दीनों पर सर्वस्व लुटाऊँ
कुविचारों का दमन करूँ ।
-2-
असत्य अब लहलहाने लगा
क्यों अब सहन करूँ ।
हिंसा प्रति-हिंसा गरमाने लगी
क्यों अब भी मलिन रहूँ ।
लूट शिखर छू चली
क्यों अब भी भक्षण बनूँ ।
भ्रष्टाचार हुंकारने लगी
क्यों अब भी दोहन भरूँ ।
नारियां मान गँवाती रही
क्यों तिस पर अब क्रंदन करूँ ।
(सीमा पर आतंक-दुन्दुभि भरने लगा
क्यों अब भी नींद को वरण करूँ ।)
(सीमा पर आतंक-दुन्दुभि भरने लगा
क्यों अब भी नींद को वरण करूँ ।)
-3-
चण्ड - मुण्डों की भीड़ सजने लगी है
क्यों न अब भी भय का दलन करूँ
।
महिषासुर को काट गिराऊँ
और रक्त-बीज़ मर्दन करूँ ।
सज़ा लूँ तिलक भाल पर
और गदा-चक्र-धनुष धारण करूँ ।
शुम्भ-निशुम्भ को मार मिटाऊँ
मधु-कैटभ संहार-कारण बनूँ ।
चंडी बनूँ , दुर्गा सजूँ
काली बन अव्यवस्था का रक्त-पान
करूँ ।
......... रक्त-बीज़ मर्दन करूँ
।
अमर नाथ ठाकुर , 9 अक्तूबर , 2013 , कोलकाता ।
(संशोधन 9 अक्टूबर 2016 , मेरठ )
(संशोधन 9 अक्टूबर 2016 , मेरठ )