झूठ ,फरेब और भ्रष्टाचार ---
यही हमारा अब व्यवहार ---
हिंसा , लूट और बेईमानी ---
जैसे ये 'गुण' हो गए हों खानदानी ---
ह्त्या , अपहरण और चोरी ---
बनी हमारी बेवशी और लाचारी ---
फिर ईर्ष्या , द्वेष और घृणा ---
इनके बिना -
हमने माना -
नहीं संभव सामाजिक ताना -बाना -----
यही बनते मील -स्तंभ ,
यही रास्ते 'आकाश' के---
यही सफलता -सूत्र
और कुंजी आज विकास के -----
नैतिकता जल रही , धरोहर हम गँवा रहे ----
भटक -भटक किधर हम जा रहे ---
अमर नाथ ठाकुर
२८ जनवरी ,२०१२.