Monday, 20 May 2013

आकृतियाँ


-१-
गौर से देखो दीवारों की आकृतियाँ
रेखा-चित्र
कोई हंसती हुई
कोई बिलखती हुई
कोई खौफनाक
कोई नम्र
कोई धौंस जमाती हुई
कोई नमन की मुद्रा में याचना करती हुई .

-२-
गांधी बाबा की ऐनक
वीरप्पन की मूंछें
कवि गुरू की दाढ़ी सीने तक
भगत सिंह की तिरछी टोपी
आज़ाद की यज्ञोपवीत के धागे .

-३-
साग , करेले
भींडी जैसी नुकीली केले .
कहीं आँखें नीचीं
पलकें सटी हुई
नाक ऊपर
मुंह बंद
लेकिन कान फटी हुई
गाल सटकी हुई
एक हाथ माथे पर
एक भटकी हुई
उंगलियां अनगिनत
बाल किन्तु गिनती के
विभ्रम की स्थिति में ये मन
क्या सोचे
क्या माने
क्या समझे.

-४-
किन्तु
चौथी दीवार
नहीं रखती जैसे किसी से कोई सरोकार .
यहाँ सिर्फ एक आँख है
जो न झांकती है
जो सिर्फ ताकती है
निष्ठुर बनी हुई है
बांकी की तीनों दीवारों की
व्यंय-चित्र आकृतियों को जैसे पढ़कर
अपलक हो गयी हो 
भूत-वर्त्तमान की साक्षी यह 
हाथ-मुंह-दांत-कान-वदन सब इसने गंवाए
यहाँ तक कि आँख जैसा भाई भी न साथ आए 
देश बनाने में सभी कुटुम्बों को खोने का स्वाद चखकर 
देश-भक्ति , त्याग और बलिदान परखकर 
और फिर भविष्य को सोचकर . 

अमर नाथ ठाकुर , १४ अप्रील , २०१३ , कोलकाता .

लूट भर का सफर


-१-
लूट   की  फसल   लहलहाती   है
जब इसमें रिश्वत की खाद डलती है
लूटेरों और रिश्वतखोरों की चलती है
मेहनती और ईमानदार प्रजा सिर्फ हाथ मलती है .

-२-
कमाल  करे   यह   रिश्वत
मंत्री , अधिकारी सब दण्डवत
फिर   चले    लूट  अनवरत
जनता  फिरती  बन मूकदर्शक .

-३-
कोयला आवंटन हो या प्रमोशन का रेल
टू   जी  फोन  हो  या राष्ट्रमंडल खेल
हेलिकोप्टर डील हो या अम्बानी का तेल
हलाल करे सबको यह लूट-रिश्वत का मेल.

-४-
लूट का निमंत्रण मिले , मिले जब कमीशन
इस  युगल   का , भाई  अटूट   गठबंधन
साथ-साथ   बंधी   होती   इनकी     खूंट
मेहनत , ईमान  सब  इनके  सामने  झूठ .

-५-
मौन है मोहन , भ्रष्ट बनी सरकार
भारत अब लूट-कमीशन का बाज़ार
तंत्र छिन्न हुई , व्यवस्था तार-तार
लाचार प्रजा रोए दिन-रात जार-जार .

-६-
माना , ये रिश्वत अजर-अमर है,
जीवन    लूट  भर का सफर है .
अबकी   यही  शाश्वत  खबर है
शेष   सब   क्षणिक  लहर   है .

अमर नाथ ठाकुर , १९ मई , २०१३ , कोलकाता.  

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...