Monday, 15 May 2017

मेरा अंतःकरण मेरे ईश्वर

मेरा अंतःकरण,
मेरे ईश्वर !

हम बात काट कर उलझा आते हैं
पर यह सब सुलझा आता है
हम खत लिख मना कर आते हैं
यह भाग-भाग कर हाँ कह आता है
हम शत्रुता का दम्भ भर-भर हुंकारते  हैं
यह सुलह का संदेशा  पहुँचा आता  है

हम जब दो कदम आगे चलते हैं
यह मीलों तक चल चुका होता है
हम जब कदम खींच-खींच लेते हैं
यह वहाँ खम्भा गाड़ आता है
हम जब क्रोधित हो आँखें लाल-लाल कर लेते हैं
यह जार-जार रो आँसू बहाता है पछताता है

हम जब दौड़ते - दौड़ते  राह मापते हैं
यह आगे-आगे राह दिखाता चलता है
हम जब घुप अँधेरे में भटकने लगते हैं
यह हाथ पकड़-पकड़ मुझे सरकाता  है
हम कभी खड़े- खड़े समर्पण कर आते हैं
पर यह  मुझे बार-बार ढाढ़स दे बहलाता है
हम चौराहे पर किंकर्त्तव्यविमूढ़ भटकते हैं
अंतःकरण प्रकाश - पुंज बन राह दिखाता है

हम जब शक्तिहीन और  साधनहीन हो जाते हैं
तब यह अंतःकरण पाथेय बन मुझे उकसाता है
हम  सताते हैं , गालियाँ बकते हैं , नफ़रत करते हैं
पर यह माफी माँग सब बराबर कर आता है
हम सदैव उसे अनसुना और अनदेखा कर देते हैं
पर यह सतत हमें सुनता और देखता रहता है

अन्तहीन अतल सागर लहरों की थपेड़ों में हम उपलाते रहते हैं
वह मेरा सहभागी पतवार थाम मेरी नैया खेता रहता है ।
मेरा अन्तःकरण !
मेरे ईश्वर !

अमर नाथ ठाकुर , 14 मई , 2017, मेरठ ।



मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...