Monday, 7 May 2018

मेरा मित्र मुझे अब ब्राह्मण कहने लगा है

मेरा मित्र मुझे ब्राह्मण कहने लगा है


मेरा मित्र मुझे अब ब्राह्मण कहने लगा है
और अब मुझसे कट-कट कर रहने लगा है ।

मेरा मित्र कायस्थ क्षत्रिय भूमिहार पर बरसने लगा है
 ब्राह्मण   बनियों   जैनियों  पर  कटाक्ष करने लगा है
और इन्हें अगड़ी कहकर पुकारने लगा है ।
वह पिछड़ी को भेदभाव का शिकार कहने लगा है
दलितों पर हो रहे अत्याचार पर लिखने लगा है
मेरा मित्र मुझसे कट-कट कर रहने लगा है ।
मेरा मित्र मुझे अब ब्राह्मण कहने लगा है ।

वह कहता है, तुम अगड़ी जाति से हो
तुम सिर्फ पन्द्रह प्रतिशत वाली प्रजाति हो
कब्जा तुमने पचासी प्रतिशत सम्पत्ति और नौकरी पर कर लिये हुए हो
इसलिये मेरा मित्र हमें अब सवर्ण कहकर पुकारने लगा है
मेरा मित्र हमें घूर-घूर कर देखने लगा है
मेरा मित्र मुझे अब ब्राह्मण कहने लगा है ।

हम जातिवादी हैं हम मनुवादी हैं
हमने शताब्दियों से पिछड़ों को सताया है
युगों से दलितों पर अत्याचार बरपाया है
उनके अधिकारों को बेरहमी से छीना है
उनको निकृष्ट जीवन जीने पर विवश किया है
वह कहता है ये अब उन्हें पता चल गया है
इसलिये मेरा मित्र अब मुझसे कट-कट कर रहने लगा है
मेरा मित्र मुझे अब ब्राह्मण कहने लगा है ।

वह आरक्षण समर्थक रैलियाँ करता है
आरक्षण खत्म करने के किसी भी
विचार पर गोलियाँ चलाता है
दलित एक्ट में किसी भी बदलाव का विरोध करता है
किसी भी कीमत पर अगड़ी से
प्रतिशोध की वकालत करता है ।
रास्ते चौराहों पर मिलकर भी अब नजरें फेरने लगा है
मेरा मित्र अब मुझे ब्राह्मण कहने लगा है ।

मेरा मित्र जाति विहीन समाज की परिकल्पना पर व्याख्यान देता है
वह जातिवाद का पुरजोर विरोध करता है
लेकिन वोटों के समय जाति-आधारित राजनीति जोर-शोर से करता है
जाति-आधारित आरक्षण में किसी भी बदलाव को राजनीतिक हथकंडा कह देता है
वह इसे अगड़ी जातियों की कॉन्सपिरेसी तक करार देता है
मेरा मित्र पिछली दोस्ती को अब भूलने लगा है
मेरा मित्र मुझे अब ब्राह्मण कहने लगा है ।

‘अगड़ी के मुख पर कालिख लगाओ
सवर्ण को  समाज से दूर भगाओ’
'अगड़ी को दूर भगाओ
सवर्ण से देश बचाओ'
के जैसों नारों पर तालियाँ बजाने लगा है
जब भी गरीबी को आरक्षण का आधार बनाने के विषय पर बोला
उसने हमें पिछड़ी और दलित विरोधी तक कह डाला
हम अम्बेडकर को पसन्द करें इसे वह ढोंग कहने लगा है
मेरा मित्र मुझे अब ब्राह्मण कहने लगा है ।


एक बार जिसने आरक्षण लिया बार-बार उसने और उसके परिवार ने ही लिया है
जो पहले  आरक्षण नहीं पाया उसका परिवार इस लाभ से अब तक वंचित रहा है
इसलिए कहते हैं आरक्षण उस दलित या पिछड़े को दो
जिसके परिवार को अभी तक नहीं मिला है
इसलिए हमने पदोन्नति में आरक्षण का विरोध किया है
इस पर मेरा मित्र मुझसे नाराज रहने लगा है
और वह मुझे अब ब्राह्मण कहने लगा है ।

आज तक जात पता कर हमने कहीं किसी को नमस्कार करते नहीं देखा है
हमने कई गरीब ब्राह्मण को दलित अधिकारी के घर नौकरी करते देखा है
हमने गरीब अगड़ी को दलित अधिकारी के सामने सिर नवाते देखा है
इसलिये कहते हैं जिस पिछड़ी और दलित ने आरक्षण का फायदा लिया है
उनने अपना सामाजिक और आर्थिक स्तर सुधार लिया है
इसलिये आरक्षण पदोन्नति में क्यों हो
इसलिए आरक्षण    पुश्त-दर- पुश्त  क्यों   हो          
यदि हम ऐसा कहें तब से मेरा मित्र मुझसे नफरत करने लगा है
मेरा मित्र मुझे अब ब्राह्मण कहने लगा है ।

मेरा मित्र मुझसे अब कट-कट कर रहने लगा है
मेरा मित्र मुझे अब ब्राह्मण कहने लगा है ।







        अमर नाथ ठाकुर ,मई 6 , 2018 , मेरठ .

Sunday, 6 May 2018

मालूम होता है यह अपना शहर है

मालूम होता है यह अपना ही शहर है

ढेर के  ढेर पड़े कूड़े सड़क किनारे
उस कूड़े में मरे चूहे बहुतेरे 
तिस पर उछल-कूद करते कौए
रेंगते  कीड़े,भिनभिनाती मक्खियाँ और ततैये  
दुर्दान्त दुर्गन्ध का कहर है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

ओवरफ्लो होता सीवर का काला काला पानी
सड़क बीच बिना कवर का मेनहोल विनाशकारी
जगह -जगह दीवाल पर पेशाब करते खड़े लोग
और उससे आती भीषण बदबू का जहर है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !


सरसराती सरपट भागती गाड़ियाँ
गड्ढों से  पानी छिटकाती गाड़ियाँ 
दुबकते सहमते चलते लोग
सड़क में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़क है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

एम्बुलेंस को भी ओवरटेक करती गाड़ियाँ
सायरन बजाती  नेताओं वाली गाड़ियाँ
रौंग साइड से भी तीव्र गति में गुजरती सवारियाँ
चौराहे पर लाल बत्ती पर भी जो ढाए कहर है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

बस , ट्रेन के छत पर सफर करते लोग
ट्रेन की खिड़की से लटकती सायकिलें
बस की खिड़की से लटकते  दूध के कैंटर
ऑटो ड्राइवर के दाहिने भी बैठी सवारियाँ
सड़क बीच भी चढ़ती-उतरती सवारियाँ
यह ऐसा कैसा लॉ एंड ऑर्डर है ?
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

धुआँ छोड़ती गाड़ियाँ बेशुमार
हॉर्न बजाती गाड़ियों की भरमार 
तौर तरीक़े सब तार तार 
सड़क पर प्रदूषण की  यह कैसी  लहर है ?
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !


बीच सड़क पर पगुराती गायें
चहलकदमी करती भैंस, बकरे-बकरियाँ 
 ट्रैफिक नियम को धता बताते ।
सड़क किनारे की झुग्गी झोंपड़ियाँ
और शौच करते बच्चों की किलकारियाँ
स्वच्छता अभियान का मज़ाक उड़ाते।
हार छिनने की बातें , 
मोबाइल झपटने की करामातें ,
सड़क पर घटती हर क्षण और हर प्रहर है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

ऑफिस के कोनों में थूकते कर्मचारी
पान और खखार से सने पटे दीवार
टॉयलेट से आते पेशाब की बदबू अपार 
चोक हो रखा पानी से भरा वाश बेसिन
लिफ्ट रोककर मिनटों बतियाते लोग
गेट पर झपकी लेते सेक्युरिटी के जवान
नहीं कहीं कोई कुछ भी जैसे उलट- पलट और गड़बड़ है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

सड़क किनारे हनुमान की मूर्त्तियों के पहरे
बस स्टेशन पर, पार्क में,सड़क किनारे
चादर फैलाए नमाज़ पढ़ते मौलवी बहुतेरे
मन्दिर में आरती , मस्ज़िद में कान फाड़ू अज़ान
भीड़ भरे बाज़ार में भी लुटते लोक-जहान  
अपहरण  और  रेप  की    घटना आम  ।     
गोली चले,बम फूटे फिर भी पब्लिक बेखबर है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

जिस शहर में भी जाता हूँ कठिन नहीं गुज़र बसर है ।
शहर की वही दिनचर्या है शहर का वही जीवन चक्र है ।
और मालूम होता है हर शहर ही अपना शहर है !

अमर नाथ ठाकुर , 6 मई , 2018 , मेरठ ।


























मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...