Wednesday, 5 October 2016

मैं खुद बॉस बन जाता हूँ



मेरा सीधापन और मेरी दो टूक बातें 
मेरा देहातीपन और मेरा सादा वस्त्र 
तिस पर मेरा साधारण केश विन्यास 
बिना विशेष प्रतिरोध मेरा हाँ में हाँ मिलाना 
मेरा बॉस प्रथम मिलन में ही प्रभावित हो जाता है
मेरी समझ - बूझ या किसी नियोजित ढंग से ऐसा नहीं होता 
मैं तो ऐसा ही हूँ 
मेरा बॉस इसे मेरी कमजोरी समझ 
मुझे गलत आकलित कर लेता है 
और मुझे अपने वाग्जाल में फंसाने की कोशिश करता है 
मैं बॉस के जाल में फँस नहीं पाता हूँ
बॉस मुझे लगाम नहीं पहना पाता है 
क्योंकि मेरा सीधा रास्ता बिना गड्ढे वाला होता है 
मेरा रास्ता शुरू से अन्त तक ले जाने वाला होता है 
 नियमों और ईमानदारी के सपाट मुक्त बंधनों वाला
फिर मेरा बॉस मुझसे नफ़रत करने लगता है 
और शीघ्र अन्तिम मिलन होता है 
 बॉस शुभकामनाओं सहित मुझे गुड बाय बोल देता है 
खबर दूर तक फैल जाती है 
मेरे भावी बॉस से भी मिलन का सारा प्रोग्राम रद्द हो जाता है 
मिलने के पहले ही गुड बाय हो जाता है 
फिर मुझे अरसे तक कोई बॉस ही नहीं मिलता है 
मैं शत-प्रतिशत जन सेवा में नहीं दे पाता हूँ 
क्योंकि मैं इम्प्रैक्टिकल जो हूँ ,
और मेरी कोशिश होती है फिर अकेले चलने की ।
मैं गुनगुनाने लगता हूँ ...
एकला चलो रे 
डाक दिये जदि ना कियो आसे
एकला चलो रे 
और एक दिन मैं खुद बॉस बन जाता हूँ 
मेरा किन्तु फिर कोई सबऑर्डिनेट नहीं होता ।।

अमर नाथ ठाकुर
मेरठ , 2 अक्टूबर , 2016 ।

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