१
बैलों को हल में जुतते देखा -
आसनसोल और अंडाल के बीच की मनभावन
हरियाली देखी -
दुर्गापुर की चिमनी का धुआँ देखा -
धान की हरियाली , जल-प्लावित नालों की रेखा -
देखा मजदूरिनों की वही पुरानी व्यथा
कीचड़ में लथपथ , ठेहुनों तक सिमटी साड़ी , हाथ में कचिया (हँसुआ ) सखा -
ठूंठ बांस ,फूस के घर का सिलसिला देखा -
लाल माटी वाली सड़कें देखीं -
सफेद - काले बादलों की उमड़ -घुमड़
फिर इन मेघों को बरसते देखा -
२
वही कोलाहल , वही मस्त भीड़
अर्द्ध - दशक उपरांत वही कोलकाता देखा -
वही सरकती बस और कारें
तथा अब भी खरासती ट्राम देखा -
कचोटता एक दृश्य जो अभी-अभी देखा
टुन-टुन करता , हांफता एक मनुज-बैल देखा -
फिर भी वही गरिमा, क्या दूं उपमा
भारत-बंग-संस्कृति-केन्द्र महानगरी कोलकाता
अनगिनत देश-भक्तों की कर्म-भूमि कोलकाता
कोलकाता कोलकाता कोलकाता
अमर नाथ ठाकुर , २२.०८.२००२ कोलकाता पुनर्वापसी पर