हमारे देश के हमारे आदरणीय , यशस्वी एवं लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्रीमान् मोदी जी ,
हमें कुछ कहना है किंतु पता नहीं यह पत्र आपके पास पहुँचकर भी आपके सम्मुख रखी जाएगी या नहीं।हमारी बात इस पत्र के माध्यम से आपके पास पहुँचकर भी शायद आपको न बतायी जाये।आपके पास तो हज़ारों , लाखों प्रतिवेदन प्रति दिन पहुँचते होंगे और संभव नहीं कि उन सारी बातों को आपके सम्मुख रखी जाती हो।एक सफल जन प्रतिनिधि या कहें राजा के लिए यह धर्म है प्रजा की हर सुख दुःख वाली बातें अपने तक पहुँचाने की व्यवस्था करे । आपके 'मन की बात' कार्यक्रम से तो लगता है कि कुछ महत्त्वपूर्ण बातें ज़रूर आपके पास पहुँचती हैं और इसी विश्वास के साथ कि हमारी बात भी जरुर आपके पास पहुँचेगी और बीएसएनएल/एमटीएनएल के 1 अक्तूबर , 2000 के बाद से सेवा निवृत्त क़रीब साढ़े चार लाख पेंशन भोगियों की कटु व्यथा जरूर आपके कानों तक जाएगी , निम्नलिखित बातें आपके विचारार्थ रख रहा हूँ :
DOT के अधीन DTS एवं DTO के सभी कमर्शियल कामों के लिए उनकी सभी परिसंपत्तियों, कर्मचारियों एवं अधिकारियों को ट्रांसफ़र करते हुए 1 अक्तूबर , 2000 से बीएसएनएल का गठन किया गया । मुंबई और दिल्ली के लिए पहले से ही एमटीएनएल था।बीएसएनएल में ट्रांसफ़र कर दिये गए सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को बिना किसी डेप्यूटेशन भत्ते के डेप्यूटेशन पर माना गया और इनकी सेवा शर्त्तें सभी सरकारी ही रहीं। सरकारी नियमों के तहत इस तरह के डेप्यूटेशन की अवधि अधिकतम पाँच वर्षों तक ही हो सकती थी , अतः बीएसएनएल के हिसाब से सभी सेवा शर्त्तों को बनाने की प्रक्रिया भी शुरू की गयी । 2003-04 तक ग्रुप B, C एवं D वर्ग के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को बीएसएनएल एवं एमटीएनएल में शामिल (Absorb) कर लिया गया। 2005 में ग्रुप A वर्ग के अधिकारियों को भी शामिल करने की कोशिश शुरू की गयी। ग्रुप A संवर्ग के अधिकांश ITS एवं P&TAFS के अधिकारियों ने सेवा शर्त्तें मनोनुकूल नहीं होने की वजह से बीएसएनएल एवं एमटीएनएल में शामिल नहीं होने की इच्छा व्यक्त की। सरकार की तरफ़ से कुछ ज़बरदस्ती भी की गयी और ग्रुप A संवर्ग के कई अधिकारियों को बीएसएनएल एवं एमटीएनएल से निकाला भी गया । नियम के मुताबिक़ बीएसएनएल से निकाले गए इन अधिकारियों को विभिन्न विभागों में पद की कमी होने से सरप्लस सेल में भी रखा जाना था एवं निवर्तमान नियमों के तहत कार्रवायी होनी थी। लेकिन बाद में ऐसा नहीं हुआ और ITS के सदस्य बीएसएनएल में बार-बार डेप्यूटेशन पर लिए जाते रहे और यही अधिकारी गण बीएसएनएल की प्रगति में सेंध मारते रहे। इन सब में विस्तार से न जाकर हमें यह बताना है कि वह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बिन्दु जिसने लगभग सभी कर्मचारियों एवं कुछ अधिकारियों को बीएसएनएल में शामिल होने के लिए आकर्षित किया वह था केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों की भाँति सरकारी कोष से सरकारी पेंशन की सुविधा और वह भी DOT और बीएसएनएल की संपूर्ण संयुक्त सेवा वर्ष के आधार पर। इसके लिए केंद्रीय कैबिनेट ने उस समय के निवर्तमान पेंशन नियम में ज़रूरी संशोधन करके ग़ज़ट के द्वारा नोटिफाई भी कर दिया था। पेंशन नियम में यह ज़रूरी संशोधन वाला रूल 37A था। साथ ही बीएसएनएल में शामिल सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए सरकार ने यह नियम बनाया कि इनको वेतन केंद्रीय वेतन CDA आधारित न देकर पीएसयू के लिए निर्धारित CDA के समानान्तर IDA आधारित वेतन दिया जाएगा जो एक प्रक्रिया के तहत किया गया, जो सरकार चाहती तो इस ढंग से मजबूर न भी कर सकती थी और आज पेंशन संशोधन की भारी समस्या आती ही नहीं ।
उसके बाद निवर्तमान सरकार ने बीएसएनएल कर्मचारियों के साथ खिलवाड़ करना शुरू किया। कुछ वर्षों बाद यह नियम बना दिया कि बीएसएनएल से सेवा निवृत्त कर्मचारियों के पेंशन का 60 % हिस्सा बीएसएनएल के खाते से देना होगा एवं बकाया 40 % हिस्सा सरकार देगी। यह सरकार के लिखित आश्वासन और करार के प्रतिकूल था जिस आधार पर कर्मचारियों ने DOT छोड़कर सरकार की इच्छा के अनुरूप बीएसएनएल का काम व्यवधान रहित चले इसलिये बीएसएनएल जॉइन किया था। सरकार के इस पलटी का बीएसएनएल के कर्मचारियों ने भारी विरोध किया और अंततः सरकार को वह संशोधन , जिसके तहत पेंशन का 60 % हिस्सा बीएसएनएल को वहन करना था , वापस लेना पड़ा । अतः दूरसंचार विभाग से 1 अक्तूबर, 2000 को बीएसएनएल में शामिल (Absorbed) सभी कर्मचारियों एवं अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के उपरांत केंद्रीय सरकार की भाँति केंद्रीय सरकार के कंसोलिडेटेड फण्ड से पेंशन मिलने की व्यवस्था पूर्ण रूप से स्थापित हो गयी।
बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन/बढ़ोत्तरी को लेकर सरकार ने अपनी खोट नियत का प्रदर्शन 2008-09 में भी किया था । छठे वेतन आयोग की अनुसंशा के उपरांत केंद्रीय सेवा निवृत्त कर्मियों के पेंशन की बढ़ोत्तरी 1 जनवरी , 2006 से हो गयी। पब्लिक सेक्टर उपक्रमों के कर्मियों के वेतन संशोधन के द्वितीय वेतन आयोग की अनुसंशा 1 जनवरी , 2007 से लागू होनी थी, अतः बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन 1 जनवरी , 2006 से न संशोधित कर 1 जनवरी, 2007 से संशोधित की गयी। लेकिन ये संशोधन लागू करने में सरकार ने चार - पाँच वर्षों का समय लिया, अनुनय विनय जब नहीं प्रभावी रहे तब बीएसएनएल कर्मियों को वृहद् आंदोलन करके दबाव बनाना पड़ा। इस समय पता चल गया कि सरकार बीएसएनएल से सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के केंद्रीय कर्मियों के सेवा निवृत्त कर्मियों के संशोधित पेंशन के अनुरूप पेंशन संशोधन नहीं देना चाहती है । यह पेंशन रूल 37A का सरासर उल्लंघन था । सरकार के लिखित आश्वासन के बावजूद, पेंशन नियम में रूल 37A जोड़ने के बाद भी केंद्रीय कर्मियों के समानांतर बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों को पेंशन संशोधन के लाभ से वंचित रखना संविधान प्रदत्त समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं तो क्या था/है !
सरकार की नियत में खोट का खुल्लम-खुल्ला एक और प्रदर्शन फिर तब हुआ जब केंद्रीय कर्मियों के सातवें वेतन आयोग की अनुसंशा 1 जनवरी , 2016 से लागू की गयी और केंद्रीय उपक्रमों के कर्मियों के तृतीय वेतन संशोधन की अनुसशा 1 जनवरी , 2017 से लागू हुई। केंद्र सरकार के पेंशन भोगियों के संशोधित पेंशन 1 जनवरी , 2016 से लागू हुए लेकिन बीएसएनएल से सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन पिछली स्थापित परंपरा के मुताबिक़ 1 जनवरी, 2017 से लागू नहीं किए गये ( पिछला संशोधन 1 जनवरी , 2006 से नहीं लागू कर 1 जनवरी, 2007 से लागू हुआ और इसलिए इस बार भी 1 जनवरी , 2016 से न लागू होकर पिछले संशोधन के दस वर्ष बाद 1 जनवरी 2017 से लागू हो जाना चाहिये था ) । बीएसएनएल से सेवा निवृत्त पेंशन भोगी क़रीब साढ़े चार लाख की संख्या में हैं और पल-पल दिन रात लगभग सात वर्षों से आशा में और बीएसएनएल जॉइन करने के पश्चात्ताप की ज्वाला में तपते रहे हैं। ये अधिकांश सत्तर साल की उम्र में आ गये हैं और दर्जनों के हिसाब से प्रति महीने पेंशन बढ़ोत्तरी की आशा में स्वर्ग सिधारते जा रहे हैं।
बीएसएनएल पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन 2017 से न लागू किए जाने के संबंध में बड़े ही अस्वाभाविक और हास्यास्पद तर्क ये दिये गये कि चूँकि कई वर्षों से घाटे में चल रहे बीएसएनएल में केंद्रीय उपक्रमों के लिए अनुमोदित तृतीय वेतनमान के शर्तों के मुताबिक़ वर्तमान में कार्यरत कर्मियों को 1 जनवरी, 2017 से लागू होने वाले संशोधित वेतनमान 1 जनवरी, 2017 से नहीं दिये जा सकते, इसलिए बीएसएनएल से सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधित नहीं किए जा सकते। उनका तर्क था कि ऐसा करने से 2017 से पूर्व सेवा निवृत्त और बाद में सेवा निवृत्त होने वालों के बीच पेंशन में बहुत बड़ी असमानता पैदा हो जाएगी। यह ऐसा विध्वंसकारी और अराजक तर्क है कि भविष्य में बीएसएनएल के साथ होने वाली किसी भी दुर्घटना का दोष पूर्व में बीएसएनएल से सेवा निवृत हो चुके कर्मियों पर डाला जा रहा है। यह उसी तरह का तर्क है कि शेर के द्वारा पहाड़ पर पिया जा रहा नदी का पानी नीचे नदी में पानी पी रहे मेमने ने जूठा कर दिया हो। आश्चर्य तो तब हुआ जब संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद जी ने संसद में बीएसएनएल पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन को यही तर्क देकर नकार दिया। पूर्व संचार मंत्री मनोज सिन्हा जी भी यही तर्क देकर पेंशन संशोधन की माँग को टालते रहे थे और आज तक केंद्रीय पेंशन भोगियों के मुक़ाबले में बीएसएनएल पेंशन भोगी जो पेंशन रूल 37A के सहारे से बराबरी के हक़दार थे, कभी भी उनके समकक्ष नहीं आ सके। बीएसएनएल पेंशन भोगी इस तरह वर्षों से उपेक्षा, भेद-भाव और असमानता के शिकार बने रहे हैं। इस तरह के तर्क इस बात को पुष्ट करता है कि भविष्य में बीएसएनएल का अस्तित्व न हो तो बीएसएनएल से सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन वृद्धि या संशोधन की बात कल्पनातीत ही होगी क्योंकि तब यहाँ कोई वेतनमान ही नहीं होगा। यदि बीएसएनएल को पूर्ण रूप से प्राइवेट हाथों में दे दिया जाय तो वहाँ कोई केंद्रीय सरकार या किसी केंद्रीय उपक्रम का कोई वेतनमान नहीं बल्कि कोई और वेतनमान होगा जो बहुत कम भी हो सकता है तो इन स्थिति में पूर्व में बीएसएनएल से सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन वृद्धि या संशोधन का मामला एक काल्पनिक बात होगी या अप्रत्याशित रूप से वर्तमान तर्क के अनुसार उनके पेंशन कम भी कर दिये जा सकेंगे। कुछ वर्षों के उपरांत दूर संचार विभाग से आकर 1 अक्तूबर, 2000 से बीएसएनएल में शामिल (Absorbed) सब के सब कर्मी सेवा निवृत्त हो जाएँगे और इस वर्तमान तर्क के आधार पर पेंशन में कौन सी असमानता रहेगी ? क्या उसके बाद जीवित पेंशन भोगी अपने पेंशन संशोधन की आशा को तब त्यागने को बाध्य हो जाएँगे ? अतः कुतर्क के द्वारा पेंशन संशोधन को अटकाया या टरकाया या अन्यायोचित घोषित नहीं किया जा सकता।
बीएसएनएल पेंशन भोगियों के कई संगठन वर्त्तमान में संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव जी से पिछले एक साल से ज़्यादे समय से मिलते रहे हैं और अंत में श्रीमान वैष्णव जी ने इनकी बात सुनी, पेंशन संशोधन की तार्किकता को समझा और उन्होंने कई बार यह बात उनके साथ के बाद के मीटिंगों में दुहरायी भी कि बीएसएनएल में संशोधित वेतनमान लागू हो या न हो, सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों की पेंशन संशोधन की माँग रूल 37A के आलोक में जायज है और वर्तमान में कार्यरत कर्मचारियों के वेतन संशोधन से पेंशन संशोधन के मामले को डिलिंक करने की बात मान ली। लेकिन ढाक के वही तीन पात। अभी तक मंत्री महोदय ने इस संबंध में कोई आदेश नहीं निकलवाया।
बाद में एक प्रस्ताव बना मंत्री वैष्णव जी के प्रयासों की वजह से ही , और DOP&PW में भी भेजा गया जो प्रस्ताव दूरसंचार विभाग के संचार भवन में कार्यरत ITS और फाइनेंस के अधिकारियों की देखरेख में तैयार किया गया था। यह प्रस्ताव विसंगतियों से भरा पूरा था। इसमें केंद्रीय सरकार के उपक्रमों के लिए तृतीय वेतन संशोधन आयोग की अनुसंशा के मुताबिक़ वेतनमानों पर 5 %, 10 % या 15 % की वेतनवृद्धि के बिना ही शून्य प्रतिशत की वृद्धि के साथ तैयार किया गया था जिससे अधिकांश पेंशन भोगियीं के पेंशन में शून्य बढ़ोत्तरी हो रही थी। वैसे इस प्रस्ताव में ख़ामियों की वजह से DOP&PW ने भी संभवतः अपनी सहमति नहीं दी थी, साथ ही बीएसएनएल के पेंशन भोगी संगठनों ने भी दूर संचार विभाग के द्वारा इस पर चर्चा के लिए बाद में बुलाये मीटिंग में शून्य प्रतिशत वृद्धि वाले इस प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया था। बीएसएनएल के पेंशन भोगी इस प्रस्ताव में विभिन्न वेतनमानों में तृतीय वेतन आयोग की अनुसंशा के मुताबिक़ 15% बढ़ोत्तरी के साथ पेंशन संशोधन की माँग कर रहे थे। क्योंकि ऐसी स्थिति में ही ये पेंशन के मामले में केंद्रीय पेंशन भोगियों के समकक्ष आ पाते। 5 %, 10 % या शून्य प्रतिशत की वृद्धि से पेंशन निर्धारित करना बीएसएनएल के अभी के घाटे और स्थिति का दोष पूर्व में सेवा निवृत्त कर्मियों के ऊपर डालने जैसी बात होती और इसलिए 15 % के इतर कोई भी बढ़ोत्तरी अन्यायोचित ही होती/होगी। इसके बाद ऐसा भी पता चला कि बीएसएनएल के पेंशन भोगियों को पेंशन संशोधन देने में अनुमानित खर्च निकालने के लिए दूर संचार विभाग ने एक फाइनेंसियल इम्प्लिकेशन भी तैयार करवाया जिसमें DOE को भी शामिल करवाया गया। फिर यह फाइल किसी निर्णय के लिए मंत्री श्री वैष्णवजी एवम् दूर संचार सचिव के बीच संभवतः झूलती रही। चार-पाँच महीने पहले सचिव महोदय किसी अन्य उत्तरदायित्व के लिए चुन लिए गये और पेंशन संशोधन का वह फ़ाइल किसी निर्णय या अनिर्णय के मुताबिक़ कहीं रख दे गये और इस तरह बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन का मामला अधर में ही अटका रह गया ।
इस बीच में एक और महत्त्वपूर्ण घटना घटी । विभिन्न पेंशन भोगी संगठन ठोकरें खाने के बाद निराश होकर तीन साल पहले ही सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के प्रिंसिपल बेंच दिल्ली की शरण में न्याय की गुहार में में भी चले गये थे। इसका निर्णय पिछले सवा दो महीने पहले बीएसएनएल पेंशन भोगियों के पक्ष में आया। ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट कहा कि सरकार अपने वादे से मुकर नहीं सकती और बीएसएनएल पेंशन भोगियों का पेंशन किसी भी हालत में उनके समकक्ष केंद्रीय पेंशन भोगियों के पेंशन के समरूप होना चाहिए। टिब्यूनल ने यह भी कहा कि केंद्रीय वेतन आयोग का पेंशन संशोधन का निर्देश बीएसएनएल से सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के लिये भी लागू होना चाहिए। इस प्रकार बिना किसी लाग-लपेट के यह आदेश पेंशन संशोधन को स्थापित करता है। आदेश को लागू करने का दस सप्ताह का समय दिया गया जो समाप्त हो चुका है। दस सप्ताह बीतने के उपरांत भी न्यायाधिकरण का आदेश न तो लागू हुआ है और न तो इसे हाई कोर्ट में चैलेंज ही किया गया है।
यहाँ बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि दूर संचार विभाग में ये हो क्या रहा है, ये क्यों अराजक सी स्थिति है कि एक तरफ़ तो दूर संचार विभाग बीएसएनएल से सेवा निवृत्ति के उपरांत सातवें वेतन आयोग अथवा केंद्रीय उपक्रमों के लिए तीसरे वेतन आयोग के द्वारा अनुशंसित वेतनमान के अनुसार पेंशन संशोधन की फाइल चलाता है और दूसरी तरफ़ ठीक इसके विपरीत सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के प्रिंसिपल बेंच दिल्ली में बीएसएनएल से सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों के किसी भी पेंशन संशोधन को रोकने की ज़ोरदार क़वायद करता है । इस तरह का उदाहरण क्या केंद्रीय सरकार के किसी भी विभाग में देखा गया है ? हमारी सीमित जानकारी में हमें ऐसा नहीं लगता ।
मामला ऐसा है कि जब बीएसएनएल का गठन हुआ तो सरकार की नीतियों के मुताबिक़ दूर संचार विभाग के सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को बीएसएनएल/एमटीएनएल में शामिल होना था । इस बात का विरोध ITS और P&TFAS कैडर के अधिकारियों ने ज़ोरदार तरीक़े से किया (इन दो कैडरों के अधिकांश अधिकारी बीएसएनएल/एमटीएनएल में absorb भी नहीं हुए ) और इसलिए आज भी बीएसएनएल में कार्यरत कर्मचारियों अथवा बीएसएनएल के सेवा निवृत पेंशन भोगियों के कल्याण या सुविधाओं से संबंधित किसी भी प्रस्ताव में ये व्यवधान डालते हैं । वर्तमान बीएसएनएल के सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन का प्रस्ताव इसी घालमेल का शिकार हो रखा है। दूरसंचार विभाग के संचार भवन में इन्हीं ITS एवं P&TAFS के अधिकारियों का वर्चस्व है और ये दूरसंचार विभाग में किसी भी सरकारी निर्णय को बदलने और तोड़ने - मरोड़ने में लगकर व्यवस्था को प्रदूषित करते रहते हैं।
बीएसएनएल के पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन में स्पष्ट पेंशन रूल 37A होने के बावजूद उपर्युक्त दो कैडर वाले ने हर बार प्रस्ताव को रोका और मंत्री तक को गुमराह किया जिस कारण मंत्री तक ने संसद में प्रश्नोत्तर में कहा कि बिना बीएसएनएल के कर्मचारियों के वेतन संशोधन के बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशनभोगियों का पेंशन संशोधन संभव नहीं और बीएसएनएल के लगातार घाटे में रहने के कारण वेतन आयोग के शर्त्तों के हिसाब से वेतन संशोधन संभव नहीं। इन्होंने DOP&PW के बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन से संबंधित परामर्श को वर्षों तक लटकाकर रखा और इसे मंत्री तक प्रस्तुत ही नहीं किया। फिर मंत्री अश्विनी वैष्णव जी के निर्देश पर पेंशन संशोधन प्रस्ताव को पिछले साल आगे बढ़ाया तो शून्य वृद्धि के साथ और उस प्रस्तावित टिप्पणी में यह भी नेगेटिव कथन लिखा कि बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन वैसे ही पहले से ज्यादा है। इतना ही नहीं जब सातवें वेतन आयोग की पेंशन वृद्धि की अनुशंसा को सरकार ने 4 अगस्त, 2016 में स्वीकार कर आदेश पारित किया तो उसमें भी केंद्रीय उपक्रमों के पेन्शन संशोधन की बात मानी गयी थी और उस आदेश में स्पष्ट उल्लेख भी किया गया था , लेकिन इन दो कैडर के अधिकारियों ने इस निर्णय को फलीभूत ही नहीं होने दिया।
संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव जी ने कई बार विभिन्न पेंशन भोगी संगठनों से कहा कि बीएसएनएल के वेतन से बीएसएनएल के पेंशन वृद्धि का मामला डिलिंक कर दिया गया है जिससे पेंशन भोगियों के पेंशन वृद्धि में सर्वाधिक अड़चन दूर हो गया है। लेकिन उपर्युक्त दो कैडर के वर्चस्व ने संचार भवन को अपनी गिरफ़्त में इस कदर ले रखा है कि ये वेतन और पेंशन वृद्धि के डिलिंकिंग का मामला अधिसूचित नहीं हो पाया। जब आरटीआई के द्वारा इस बावत पूछा गया तो स्पष्ट रूप से कहा गया कि डिलिंकिंग का ऐसा कोई प्रस्ताव विचारार्थ नहीं है। श्री मान प्रधान मंत्री जी, ये दूरसंचार विभाग में हो क्या रहा है ? ऊपर जो बात एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में लंबित पेंशन वृद्धि के मामले में हमने प्रस्तुत किया है यह चौंकाने वाली, आश्चर्य में डालने वाली और चिंताजनक है कि एक तरफ़ मंत्री पेंशन वृद्धि का प्रस्ताव बनवाते हैं, वेतन और पेंशन वृद्धि को डिलिंक करने की बात बार-बार दुहराते हैं, और दूसरी तरफ़ ट्रिब्यूनल में डायरेक्टर लेवल के ऑफिसर संचार विभाग के प्रतिनिधि के तौर पर भेजा जाकर पेंशन वृद्धि की बात का लिखित और मौखिक तौर पर भारी विरोध करते हैं, वेतन और पेंशन वृद्धि के संबंध को डिलिंक करने को हर संभव तर्क से नकारते हैं। यह घोर अराजकता है और स्पष्ट तौर से बताता है कि सरकार कैसे तत्वों को संचार भवन में प्रश्रय देती है जो बीएसएनएल के कर्मियों और पेंशन भोगियों के न्यायोचित कल्याण की बात में भी विरोधाभासी कदम उठाती है, अड़चन डालने का काम करती है , गुमराह करती है और टरकाती है।
हम एक बीएसएनएल पेंशन भोगी क्या सोचें ? क्या संचार मंत्री प्रधान मंत्री कार्यालय के दबाव में होते हैं कि पेंशन संशोधन से क्यों कुछ सौ करोड़ के अतिरिक्त दबाव सरकार पर पड़े ? क्या संचार मंत्रालय ऊपर कथित इन कैडरों के इंटेलेक्चुअल करप्शन की गिरफ़्त में है ? क्या IAS बैकग्राउंड वाले अश्विनी वैष्णव जी इन इंटेलेक्चुअली करप्ट ऑफ़िसरों की गिरफ़्त में काम करते हैं ? क्या सरकार किसी भी सूरत में बीएसएनएल पेंशन भोगियों को न्यायोचित पेंशन वृद्धि भी नहीं देना चाहती है ? प्रधानमंत्री श्री मान मोदी जी से करबद्ध निवेदन है कि पेंशन संशोधन के लिए स्पष्ट पेंशन रूल 37A के होते हुए भी ये जो तत्व हैं जो मंत्री को , संसद को गुमराह करते हैं और बीएसएनएल के पेंशन भोगियों के पेन्शन संशोधन पर इंटेलेक्चुअल करप्शन करके मामले को अटकाते हैं, की जाँच करके उसे दंडित करके सिस्टम को साफ़ करेंगे ? क्या अब जब कि सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के प्रिसिपल बेंच दिल्ली ने पेंशन वृद्धि में स्पष्ट आदेश दिया है उसको शीघ्र लागू करेंगे या इन इंटेलेक्चुअली करप्ट ऑफ़िसरों के परामर्श के अनुसार हाई कोर्ट/सुप्रीम कोर्ट में मामले को लटकाएँगे और सभी साढ़े चार लाख बीएसएनएल/एमटीएनएल पेंशन भोगियों के तिल-तिल कर पेन्शन वृद्धि के इंतज़ार में स्वर्गीय होने का इंतज़ार करेंगे ?
श्रीमान जी, ऊपर जो बातें हमने बीएसएनएल के लिए की है वही पेंशन वृद्धि के लिए एमटीएनएल के लिए भी सच है। अतः ये सारी बातें बीएसएनएल/एमटीएनएल के लिये मानी जाएँ। हम विभिन्न आदेशों अथवा अन्य दस्तावेज को यहाँ संलग्न नहीं कर रहे हैं क्योंकि ये प्रतिवेदन तब भारी-भरकम हो जाएगा। वैसे भी सारे तथ्य संचार मंत्रालय के संबंधित अनुभाग में उपलब्ध है और बीएसएनएल/एमटीएनएल का हर पेंशन भोगी एवं संचार भवन का हर संबंधित कर्मचारी और अधिकारी इन तथ्यों से पूर्णतः अवगत होना चाहिए ।
अंत में हम हमारे प्रिय प्रधानमंत्री जी से आशा कर सकते हैं कि ये पत्र आपके पास ज़रूर पहुँचेगा और इस पर अविलंब दो तरह की कार्रवायी होगी : पहला , स्पष्ट पेंशन रूल 37A होने के बाद भी बीएसएनएल/एमटीएनएल के पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन के मामले को ईर्ष्या, द्वेष और अविवेकपूर्ण ढंग से उलझाने वाले, अटकाने वाले, टरकाने वाले और मंत्रियों तक को गुमराह करने वाले, बाल की खाल निकालने वाले संचार भवन में बैठे अधिकारियों के विरुद्ध इंटेलेक्चुअल करप्शन का मामला दर्ज हो और शीघ्र जाँच बैठे और सिस्टम की शीघ्र सफ़ाई हो ; दूसरा, बीएसएनएल/एमटीएनएल के पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन के लिए प्रिंसिपल बेंच, सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल , दिल्ली के आदेश के अनुसार उसे असीमित काल तक अटकाने के लिये उच्च अथवा उच्चतम न्यायालय में चैलेंज न कर एवं सरकार के वायदे के मुताबिक़ पेंशन रूल 37A का उपयोग करके सातवें वेतन आयोग की अनुशंसा के मुताबिक़ केंद्रीय सरकार के पेंशन भोगियों के समकक्ष और उनके समरूप पेंशन संशोधन की अति शीघ्र व्यवस्था की जाये, जिससे साल 2000 से अब तक बीएसएनएल/एमटीएनएल से सेवा निवृत्त हुए अधिकांश पेंशन भोगी जो सत्तर की उम्र को भी पार कर गये हैं, उनको पेंशन वृद्धि की और अधिक प्रतीक्षा न करनी पड़े और ये निरीह पेंशन भोगी केंद्रीय पेंशन भोगियों के साथ समानता से अपने न्यायोचित पेंशन वृद्धि को प्राप्त कर कुछ और वर्षों तक चैन से जी सकें।
जय हिन्द !
धन्यवाद के साथ हम हैं बीएसएनएल से सेवानिवृत्त एक पीड़ित पेंशन भोगी ,
अमर नाथ ठाकुर , फ्लैट - 4C , टावर-5, पनाश , महीष बथान , साल्ट लेक , सेक्टर - 5 , कोलकाता-700102.
मोबाइल नंबर : 6290169743/9434735796 ईमेल : thakuran@rediffmail.com