जी लेना ही नहीं जीवन
है
मर जाना ही नहीं मरण ।
जन्मना ही नहीं शुरूआत है
न प्राण – पखेरू उड़ जाना अंत ।
जन्म-मरण तो सिलसिला है
जैसे रथ-चक्र का अनन्त घूर्णन ।
सुख-दुःख की तीलियों पर आधारित
यह जीवन-यात्रा का मायावी नर्त्तन ।
अहंकार त्याग दीनों के संग रमना होगा
अपाहिजों के संग करना होगा कीर्त्तन ।
कदम मिला लंगड़ों के संग चलना होगा
भिखारियों के संग करना होगा भोजन ।
दया प्रेम करूणा को अपनाना होगा
लालच ईर्ष्या-द्वेष स्वार्थ का निष्कासन ।
बीमारों और बूढ़ों की सेवा करनी होगी
उनकी पद-धूलि से करना होगा चन्दन ।
अनाथों की सेवा में लगना होगा
तन-मन-धन कर देना होगा अर्पण ।
पर-दुःख पर जब चक्षु से अश्रु बहेंगे
और जब हृदय करेगा कातर क्रंदन ,
और जब हृदय करेगा कातर क्रंदन ,
तब श्री कृष्ण का मधुर संग मिलेगा
मोक्ष मिलेगा , सफल होगा जीवन
।
अमर नाथ ठाकुर , 17 मई , 2015 , कोलकाता ।