Sunday, 17 May 2015

जी लेना ही नहीं जीवन है



जी लेना ही नहीं  जीवन है
मर जाना ही नहीं मरण ।
जन्मना ही नहीं शुरूआत है
न प्राण – पखेरू उड़ जाना अंत ।

जन्म-मरण तो सिलसिला है
जैसे रथ-चक्र का अनन्त घूर्णन ।
सुख-दुःख की तीलियों पर आधारित
यह जीवन-यात्रा का मायावी नर्त्तन ।

अहंकार  त्याग  दीनों के संग रमना होगा
अपाहिजों के संग करना होगा कीर्त्तन । 
कदम मिला लंगड़ों के संग चलना होगा
भिखारियों के संग करना होगा भोजन ।

दया प्रेम  करूणा को अपनाना होगा
लालच ईर्ष्या-द्वेष स्वार्थ का निष्कासन । 
बीमारों और बूढ़ों की सेवा करनी होगी
उनकी पद-धूलि से करना होगा चन्दन ।
अनाथों की सेवा में लगना होगा  
तन-मन-धन कर देना होगा अर्पण ।

पर-दुःख पर जब चक्षु से अश्रु बहेंगे
और जब  हृदय करेगा कातर क्रंदन ,
तब श्री कृष्ण का मधुर संग मिलेगा
मोक्ष मिलेगा , सफल होगा जीवन ।


अमर नाथ ठाकुर , 17 मई , 2015 , कोलकाता । 

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...