Friday, 26 June 2015

लूट का साम्राज्य



लूट का एक राजा होता है और होता है एक संविधान
लूट का साम्राज्य चलता है फिर बिना कोई व्यवधान

वहाँ  लूट का एक बाज़ार भी होता है
जहाँ लूट बिकती है
बाज़ार हमेशा खुला होता है
और बेहिसाब लूट , बेहद लूट , बेशुमार लूट जारी रहती है ।

लूट का पर्व मनता है  
पिछली बार लूट की पूजा मनी थी
उस पूजा में लूट का गजब का आनंद था
पूरा वातावरण लूटमय था
लूट की प्रतिमा पर लूट की माला
लूट की अगरबत्तियाँ , लूट के प्रसाद का डाला 
लूट के गाजे-बाजे की व्यवस्था 
लूटातिरेक से लुटे मन को थिरकाता ,
लूट पर छूट की भी व्यवस्था थी
एक लूट पर एक लूट की छूट थी
इस तरह लूट खूब पली - बढ़ी थी
लूट वाली कम्पनियों में लूट का लाभांश भी मिला था
फिर लूट की दीवाली आई थी
जिसमें लूट की लक्ष्मी और काली सजी थी
लूट के पटाखे , लूट के रॉकेट , लूट की फुलझड़ियाँ
लूट की मिठाइयाँ और लूट की लड़ियाँ
लूट के रंग से लूट की मनी होली
जो लोगोँ ने खूब खेली
लूट का क्रिसमश सज़ा
फिर मिला लूट के  ईद का भी मज़ा  
लूट धर्म से आह्लादित मन
लूट से विभूषित पूरा लूट - जीवन ।

लूट के आवेश में
गले मिले लूट के वेश में
लूटाभिषेक से लूट के तिलक-चन्दन में
लूट की टोपी और लूट के ही  बंधन में
हिन्दू मुस्लिम और ईसाई
लूट में होते हैं सब सेकुलर भाई
यह है मौन लूट सही 
इसमें दंगा फसाद नहीं ,
लूट के सेठ होते हैं , लूट के भिखारी 
लूट के साधु होते हैं , लूट के अधिकारी
जाति-धर्म-भेद रहित होता है लूट
ऊँच-नीच-पिछड़ा-दलित भाव से मुक्त होता है लूट   
लूट में बरती जाती पूरी ईमानदारी
लूट की ऐश में लूट की खातिरदारी
लूट में सब तत्क्षण है 
लूट में न कोई आरक्षण है 
लूट कहाँ किसी को सताती है
इसलिये लूट सबको भाती है ।



अबकी लूट जीती है
पिछली लूट हारी है
चरित्र की जब लूट होती है 
तब भी लूट का चरित्र होता है  
लूट का न कोई दुश्मन होता है 
लूट का सब मित्र ही  होता है 
चाहे क्यों न हो अपना लूट 
चाहे क्यों न हो पराया लूट
लूट का मैदान , लूट का खाट
लूट की कमाई , लूट का ठाठ
लूट का कर्ज़ , लूट का भुगतान
लूट से मालामाल ,लूट की शान
लूट की जान, लूट का खान-पान
लूट से क्यों हों साभार , लूट से क्यों हों सावधान
लूट का हर  कोई चोर , लूट का हर कोई सिपाही
लूट का हर कोई अपना , लूट का हर कोई  भाई
लूट केशरी भी लूट शिरोमणि भी 
लूट का झण्डा लूट की पाणि भी 
लूट का न कोई दुःख लूट का सिर्फ सुख
ताबड़-तोड़ चले लूट फिर भी लूट की भूख
लूट के इस साम्राज्य में सब कुछ समभाव से लूटा जाता है
क्योंकि लूट का सरदार होता है जो लूट का उस्ताद होता है 



लूट के साम्राज्य में लूट का मान
लूट के खेल में होता हर नियम का पालन 
लूट की फैक्ट्री में लूट का उत्पादन
लूट के स्कूल में लूट का प्रशिक्षण
लूट की शिक्षा – दीक्षा से बनता है लूट का भविष्य
लूट के माहौल से बनता है लूट का परिदृश्य ।

लूट की कथा 
लूट का दर्शन 
लूट की आत्मा लूट का भगवान
लूट का पुनर्जन्म लूट का विधान
लूट अकाट्य है लूट सत्य है
लूट अमिट है लूट नित्य है
लूट ही महाधन है
लूट हमारा जीवन है
लूट में हम जीते हैं
लूट में हम मरते हैं
लूट फल से हमारा पुनर्जन्म निर्धारित होता है
लूट के कानून से तो हमारा जीवन बाधित होता है
लूट की ही ये कलाकारी है
कि लूट अनवरत जारी है

लूट परमो धर्म:
लूटं परमं सुखं
सर्वे लूटानि पश्यन्तु
मा कश्चित दुःखभाग्भवेत
लूट हमारी माता लूट हमारा पिता
लूट हमारा भाई लूट हमारी सखा
लूट मेरे देव ! लूट ! लूट मेरे देव !

अमर नाथ ठाकुर , 25 जून , 2015 , कोलकाता ।









Tuesday, 23 June 2015

ये कर्म देवता



जेठ दुपहरिया की गाथा

पत्तों की ओट में पत्ता छुप रहा होता 
छाया भी जब साया ढूँढता
तब ये  कर्म देवता
सिर के ऊपर सूरज ढोते हुए 
तलवे तले छाया को आश्रय देते हुए 
स्वयं के पसीने से पसीना धोता
ये कर्म देवता ।

खेत में निकौनी  करते हुए 
मेंड़ें बनाते  धरती  कोड़ते हुए 
ढेले से ढेला फोड़ते हुए 
सिर के ऊपर न कोई छत्तर रखता
धूप में पसीना सुखाता
चलता जाता चलता जाता 
ये कर्म देवता ।

ग्रीष्म की दहकती लहर
सिकुड़ता झील पोखर
संकरी नदी सूखता नहर ।
हवा भी जब सिहकती नहीं
चिड़िया भी चहचहाती नहीं
तब  भी अनवरत कर्म करता जाता 
ये कर्म देवता ।

सूखाड़ की ठूँठ से लड़ते हुए  
हरियाली से प्रकृति को सजाते हुए  
पत्थर तोड़-तोड़  पथ बनाते हुए 
ईंटें जोड़-जोड़  घर बनाते हुए 
प्रखर ग्रीष्म से लापरवाह 
विलासिता की न लिये कोई चाह 
हर पल आगे बढ़ता जाता 
ये कर्म देवता ।

अमर नाथ ठाकुर , 7 जून , 2015, कोलकाता ।


मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...