देश में सर्दी है , शीत लहरी है ।
सब काँपते हैं , थरथराते हैं ।
चलो मौसम की इस मार से टकराते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।
सर्वत्र अव्यवस्था है, भ्रष्टाचार है
सब भोगते हैं , कराहते हैं ।
चलो इस कदाचार से लड़ते हैं , इसे मिटाते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।
शहर - शहर में कचड़ों का अम्बार है
सब देखते हैं और नाक-भौं सिकुड़ते हैं ।
चलो झाड़ू चलाते हैं , फावड़े से इसे खोद फेंकते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।
वातावरण में धूआँ है, बदबू है ।
लोग रोज सूँघते हैं , बीमार पड़ते हैं ।
चलो परिष्कार करते हैं, इसका उद्धार करते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।
कौन हैं जो काले को सफ़ेद करते हैं ?
लोग क्यों ऐसे लूटे जाते हैं ?
चलो पर्दाफ़ाश करते हैं , इनका बहिष्कार करते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।
हिन्दू लड़ते हैं , मुस्लिम झगड़ते हैं , कहीं ईसाई आग लगाते हैं ।
रक्त बह रहा है , हिन्दुस्तान कराह रहा है ।
चलो सद्भावना का सन्देश फैलाते हैं , भाई-भाई का द्वेष मिटाते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।
नेताओं के मन में नफ़रत के बीज हैं
सबको मालूम है , वो ही इसे अँकुराते हैं ।
चलो इनके अरमानों को ध्वस्त करते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।
कहीं चोरी है , कहीं रिश्वतखोरी है
कहीं आतंक है , कहीं सीनाजोरी है
कहीं अपहरण है , कहीं नशाखोरी है ।
हर जगह जनता की बेवशी है ,जनता की लाचारी है ।
चलो इसे उखाड़ फेंकते हैं , अव्यवस्था का तार-तार करते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।
नये साल का यही सब संकल्प हो
और हमें न कोई विकल्प हो ।
चलो सपने अब सजाते हैं
राग वीर रस का गाते हैं ।
भ्रष्ट काल से दो-दो हाथ करते हैं
इस धर्म-युद्ध में अब ताल ठोंकते है ।
जो अब टकराएगा
गर्दिश में मिल जाएगा ।
बहुत मज़ा आएगा नये साल में ।
अमर नाथ ठाकुर , 25 दिसम्बर , 2016 , मेरठ ।