Saturday, 5 November 2016

भ्रष्टाचार का रावण

-1-

भ्रष्टाचार का रावण बहुत गरजता है
यह फौलादी शरीर वाला है
लाल - लाल हैं इसकी आँखें
काली - काली और कड़ी- कड़ी मूंछें
अस्त्र - शस्त्र से  है सुसज्जित
इसके संहारक हथियारों की टंकार से
दिशाएँ थर्रा उठती हैं
जल थल और आकाश दलमलित हो उठते हैं
रुग्ण शरीर वाले विरोध का राम
पसीने से लथपथ भय से काँपता
भागते हुए छुप जाता है पहाड़ी की ओट में
कहता है वो आराम कर रहे हैं
या शक्ति संचय की तपस्या चल रही है
आश्वस्त हैं कि रावण रूपी भ्रष्टाचार का वध होगा , किन्तु समय आने पर ।
अभी तो भ्रष्टाचार सीमा के भीतर ही है
अभी क्या परवाह है !


-2-

भ्रष्टाचारी रावण के प्राण को कोई खतरा नहीं
नाना प्रकार के सुरक्षा कवच प्राप्त यह महादानव
अमृत कलश में सुरक्षित रख अपने प्राण
राज नेताओं तथा न्यायालयों की छाया में
जेड सुरक्षा प्रणाली की लक्ष्मण रेखा की परिधि में
निवास करता है
फलता - फूलता इस भ्रष्टाचारी रावण का साम्राज्य
हम सब को आकर्षित कर लेता है
अब हम लोग इसकी ही पूजा करते हैं

हम सब आकंठ भ्रष्टाचार में ही डूबे हुए उपला रहे हैं
हम लोग आनंद में हैं

तपस्या में लीन राम अभी तक ओझल हैं
वैसे भी भगवान को पाना कितना कठिन है
अब राम की क्या जरूरत है
और अभी क्या परवाह है !

अमर नाथ ठाकुर
मेरठ , 5 नवम्बर , 2016 ।









Wednesday, 2 November 2016

बिहार का चुनाव

बिहार का चुनाव !

वर्षों का कांग्रेसी शासन।कांग्रेसी करते रहे और करते ही रह गये।पूरा न कर पाये।कुछ भी नहीं हुआ और बिहार कराहता रहा ।

कर्पूरी जी भी कुछ करना चाह रहे थे शायद समय ज्यादा न मिला।
एक दशक से ज्यादा उसी समय जातीय संघर्ष का दौर चला - बैकवर्ड-फॉरवर्ड की लड़ाई।जनजागरण जरूर हुआ होगा किन्तु बिहार की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गयी। क़ानून-व्यवस्था का गिरता स्तर और बढ़ता भ्रष्टाचार बिहार का पर्याय हो गया।

फिर लालू का युग आया। इन्होंने ने तो जैसे ठान रखा था, कुछ नहीं करना है। और इन्होंने कुछ नहीं किया। बिहार रसातल में चला गया। यही दौर था जब गाली और बिहारी एक दूसरे के समानार्थी होने लग गये। लालू के फूहड़ सस्ते मजाकिये अंदाज ने स्तर और गिरा दिया। अपहरण एक फलता-फूलता व्यवसाय बन गया।

फिर नीतीश का उदय होता है जब कि जनता ने काफी उम्मीदें पाली हुई थीं। कुछ काम बना। जनता ने साँसें लेनी शुरू कर दी थीं। क़ानून-व्यवस्था की हालत सुधरी ,अपहरण कम होने लगे । भ्रष्टाचार भी कम हुआ । सड़क और बिजली के क्षेत्र में भी काम होने  लगे। आंगनबाड़ी,शिक्षामित्र  आदि अनेक तरह की बहालियाँ हुईं। कुछ लाख शिक्षकों की भी बहाली हुई। गुणवत्ता में ये सब खरे नहीं थे । फिर भी इतने रोज़गार पाकर बिहार की जनता में नयी आशा का संचार हुआ। लोग जाति आधारित झगड़े फसाद को भूलने लग गये। किन्तु इन सबका सारा श्रेय नीतीश को ही नहीं दिया जा सकता है, उनके पीछे भारतीय जनता पार्टी का सशक्त समर्थन और सहयोग भी था ।

 किन्तु शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो जो भी हुआ उसे ऊँट के मुँह में जीरा समान कार्य ही कहा जा सकता है।
जो हो बिहारियों की घर वापसी शुरू नहीं हुई और न ही बिहारियों का पलायन रुका। लगता है अभी प्रवासी बिहारी कुछ और देखकर आश्वस्त हो लेना चाहते थे। लेकिन बिहार के नसीब में अच्छे दिन नहीं लिखे थे। नीतीश और भाजपा  झगड़ पड़े। बिहार की जनता के हित में ये लड़ाई रोक सकते थे। लड़ाई किन्तु रुकी नहीं। बिहार का दुर्भाग्य जो था ।

 किसकी गलती थी गहराई में अभी नहीं जाना, किन्तु नीतीश का अहंकार जरूर परिलक्षित हुआ।

बिहार के विकास की पटरी उखड़ गयी थी । बिहार तेजी से नीचे की तरफ जाने लगा। नीतीश अपने धुर विरोधी कांग्रेसी और लालू के नजदीक आकर अपनी सरकार के स्थायित्व के लिये ज्यादा मेहनत करने लग गये। बिहार के विकास का एजेंडा गौण हो गया। राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गयी।

नीतीश की गिरती लोकप्रियता का परिणाम यह हुआ कि अगले चुनाव में नीतीश पूरी तरह धराशायी हो चुके थे। नरेंद्र मोदी का भगवा झंडा आसमान में लहरा रहा था। नीतीश ने जनता की  नब्ज़ नहीं पहचानी । उसका अहंकारी मन पराजय को नहीं स्वीकार कर सका।

मांझी को मुख्यमंत्रीत्व सौंप कर एक अनूठा एवं आदर्श उदाहरण पेश करना चाहते थे, लेकिन उनके मन का मैल ऊपर आ गया। वह लालू और सोनिया स्टाइल में मांझी को हांकना चाहते थे। मांझी राबड़ी और मनमोहन से आगे निकले।फिर नीतीश ने अपना असली रंग दिखा ही दिया । नीतीश सत्ता पर फिर से कब्ज़ा कर बैठे। सत्ता का अतीव लालच नज़र आया जनता को नीतीश की कारगुज़ारियों में।

नीतीश के द्वारा लालू का समर्थन लेना सबसे बड़ा पहलू बनता है नीतीश के कमज़ोर राजनीतिक चारित्रिक व्यक्तित्व का। जनता  लालू के जंगल राज को अभी पूरी तरह भूली  भी नहीं थी।जनता के अध पके घाव को नीतीश ने फिर से खरोंच लगा दिया था। स्राव होने लगा।

चुनाव के इस अंतिम चरण में जनता क्या यह समझती है ----

1. कांग्रेसियों के समय में  15 पैसे सरकारी पैसे जनता तक रिस - रिस कर आते थे ।
2. लालू के समय में जनता तक पैसे रिसने बंद हो गए थे।
3. नीतीश के समय में 25-30 पैसे तक जनता तक रिस कर आने लगे थे ।

तो जनता उसको क्यों न मौका दे जो पूरा का पूरा सौ पैसे जनता तक रिस कर आने देने का वादा करे। वैसे भरोसा क्या है ? जो किन्तु फेल हो गये उस पर फिर क्यों का भरोसा।

जनता को यह समझना होगा कि

1. कांग्रेस काम करती रही , करती ही रह गयी और कर ही नहीं सकी।इसलिए कुछ हुआ ही नहीं।
2. लालू ने करना ही नहीं चाहा और इसलिए कुछ नहीं हुआ।
3. नीतीश करना चाह रहे थे लेकिन कर ही नहीं सके।

इसलिए मौका उसे मिले जो अब नया हो , करना चाहता हो। और कोई च्वाइस भी तो नहीं है। बार - बार किसी आज़माए हुए को फिर क्यों आज़माऍं।

जय बिहार !
जय हिन्द !

अमर नाथ ठाकुर
2 नवम्बर ,2015, कोलकाता ।

Tuesday, 1 November 2016

मैं कुत्ता बनना चाहता हूँ


मैं ने देखा एक हकलाता कुत्ता
मालिक के साथ वाक करते हुए
मालिक के साथ समानान्तर चलते हुए
मालिक खड़ा होता है
वह भी खड़ा हो जाता है
मालिक किसी से बात करता है
वह सुनता रहता है
मालिक दौड़ता है
वह भी दौड़ता है
चहलकदमी करते मालिक के साथ
वह कुत्ता भी जमीन सूँघते चलता रहता है
मैं रोज़ देखता हूँ एक हकलाता कुत्ता ....

मालिक के साथ
मालिक की छाया की तरह
मालिक की रक्षा में
मालिक की ढाल बनकर
हर संदिग्ध पर भौंकता है
वह वफादार कुत्ता ...
पूँछ हिलाता जमीन नोंचता
वह नुकीले दाँतों वाला नंगा कुत्ता ....
मैं रोज़ देखता हूँ एक हकलाता कुत्ता .....
मैं रोज देखता हूँ एक वफादार कुत्ता ......

मालिक जब पुकारता है
मालिक जब सहलाता है
कूद पड़ता है पूँछ हिलाते हुए
मालिक के कन्धे पर दोनों पैरों को डालकर
मालिक के होंठों को चूमते हुए
हकलाता हुआ वह समझदार कुत्ता ....


वह मालिक के बच्चे को पहचानता है
वह मालकिन को पहचानता है
और हर अनजाने पर भौंकता है वह सावधान कुत्ता
खुद जागकर मालिक को चैन की नीन्द सुलाता है
वह दमदार पहरेदार कुत्ता ....

क्या पाता है बदले में वह कुत्ता
थाली का जूठन और हाड़-माँस का अवशेष
न कोई सैलरी न कोई बोनस
और न रहता कभी कोई प्रोमोसन का भूखा
फिर भी होता है वह कर्मठ और ईमानदार कुत्ता
वह तंदुरुस्त हँसता मुस्कराता कुत्ता ...
मैं रोज़ देखता  हूँ एक वफादार कुत्ता .....



मैं कुत्ते की कर्त्तव्य निष्ठा , ईमानदारी , वफादारी का कायल हूँ
क्योंकि चोर , उचक्के और डाकू डरते हैं कुत्ते से
आज तक कोई कुत्ता नमक हराम  नहीं हुआ
आज तक किसी कुत्ते पर भ्रष्टाचार
 या विश्वासघात का कोई आरोप नहीं लगा
इसलिये कोई कुत्ता कभी बर्खास्त नहीं हुआ
इतिहास में नहीं कोई ऐसा दस्तावेज़
कि किसी कुत्ते पर कोई चार्जशीट हुआ

आज तक नहीं बनाया किसी कुत्ते ने कोई यूनियन !
अकेला कुत्ता अपना कर्त्तव्य करता रहा
मालिक का खाया नमक चुकाता रहा ।
आज तक नहीं मिला किसी कुत्ते को कोई पद्म पुरस्कार
न कोई सर्टिफिकेट अथवा वीरता का कोई चक्र
जब भी मालिक पर कोई आक्रमण हुआ
पहली गोली कुत्ते ने खायी

इसलिये कुत्ते की मौत पर हर मालिक रोया है ।



आप में से कितने कुत्ता बनना चाहते हैं
छिः मैं यह क्या बोल गया !
यह तो परले दरजे की गाली है
लेकिन इस तिरस्कारी विचार से
कुत्ते को कितना दुःख होता होगा
क्या आपने सोचा है ?
लेकिन मैं ने सोच लिया है
अपनी बात बताना चाहता हूँ
मैं तो कुत्ता बनना चाहता हूँ
अपनी कम्पनी का कुत्ता
क्योंकि मैं कम्पनी के टुकड़ों पर ही तो पल रहा हूँ
फिर क्यों न बनूँ अपनी कम्पनी का कुत्ता
वफादार , कर्त्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार कुत्ता !
फिर मैं भ्रष्टाचारियों पर भौंक पाऊँगा
इसे लूटने वालों को काट खा पाउँगा
जिस दिन हम सब कुत्ते बन जाएँगे
कंपनी रफ़्तार में चलने लगेगा और
तभी हमें हाड़- माँस का लाभांस मिलता रहेगा !!!


अमर नाथ ठाकुर
30 अक्टूबर , 2016 , मेरठ ।






मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...