भगवान श्री रामकृष्णदेव ने यह निम्नलिखित रहस्य इतने स्पष्ट ढंग से सबका अनुशीलन करने के बाद बताया । आप दंग रह जाएंगे किन साधारण उदाहरणों से उन्होंने यह बात बतायी .................
"एक व्यक्ति जंगल से बाह्य से आकर बोला , वृक्ष के नीचे एक सुन्दर लाल जानवर देखकर आया हूँ । और एक बोला , मैं तुम्हारे से पहले उसी पेड़ के नीचे गया था – वह तो हरा है , मैं ने अपनी आँखों से देखा है । और एक व्यक्ति बोला , उसे मैं खूब जानता हूँ , तुम लोगों से पहले मैं गया था – वह नीला है । और दो जन थे । वे बोले , पीला और खाकी – नाना रंग का । अन्त में खूब झगड़ा लग गया । सभी समझते हैं , मैं ने जो देखा है , वही ठीक है । उनका झगड़ा देखकर एक व्यक्ति ने पूछा , बात क्या है भाई ? जब समस्त विवरण सुन लिया , तब बोला , मैं उसी वृक्ष के नीचे रहता हूँ ; और वह जानवर क्या है , मैं पहचानता हूँ । तुम प्रत्येक जन जो-जो कह रहे हो , वह समस्त सत्य है ; वह गिरगिट है – कभी हरा , कभी नीला इसी प्रकार नाना रंगों का होता है ! और कभी देखता हूँ , बिल्कुल भी कोई रंग नहीं होता । निर्गुण । ईश्वर साकार भी है निराकार भी । ”
“ तो फिर ईश्वर को केवल साकार कहने से क्या होगा ? वे श्रीकृष्ण की न्यायीं मनुष्य-देह धारण करके आते हैं , यह भी सत्य है ; नाना रूप लेकर भक्त को दर्शन देते हैं , यह भी सत्य है । और फिर वे निराकार , अखण्ड सच्चिदानन्द हैं , यह भी सत्य है । वेद में उनको साकार , निराकार दोनों ही कहा है ; सगुण कहा है , निर्गुण भी कहा है । ”
अपने शिष्यों से ठाकुर श्री रामकृष्ण कहते थे :
“ मैं ने हिन्दू , मुसलमान , ईसाई सभी धर्मों का अनुशीलन किया है , हिन्दू धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के भिन्न – भिन्न पथों का भी अनुसरण किया है ... मैं ने देखा है कि उसी एक भगवान की तरफ ही सबके कदम बढ़ रहे हैं , यद्यपि उनके पथ भिन्न – भिन्न हैं । तुम्हें भी एक बार प्रत्येक विश्वास की परीक्षा तथा भिन्न – भिन्न पथों पर पर्यटन करना चाहिये । मैं जिधर भी दृष्टि डालता हूँ उधर ही हिन्दू , मुसलमान , ब्राह्म , वैष्णव व अन्य सभी संप्रदायवादियों को धर्म के नाम पर परस्पर लड़ते हुए देखता हूँ । परन्तु वे कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि जिसे हम कृष्ण के नाम से पुकारते हैं , वही शिव है , वही आद्याशक्ति है , वही ईसा है , वही अल्लाह है , सब उसी के नाम हैं –एक ही राम के सहस्रों नाम हैं । ”
"एक व्यक्ति जंगल से बाह्य से आकर बोला , वृक्ष के नीचे एक सुन्दर लाल जानवर देखकर आया हूँ । और एक बोला , मैं तुम्हारे से पहले उसी पेड़ के नीचे गया था – वह तो हरा है , मैं ने अपनी आँखों से देखा है । और एक व्यक्ति बोला , उसे मैं खूब जानता हूँ , तुम लोगों से पहले मैं गया था – वह नीला है । और दो जन थे । वे बोले , पीला और खाकी – नाना रंग का । अन्त में खूब झगड़ा लग गया । सभी समझते हैं , मैं ने जो देखा है , वही ठीक है । उनका झगड़ा देखकर एक व्यक्ति ने पूछा , बात क्या है भाई ? जब समस्त विवरण सुन लिया , तब बोला , मैं उसी वृक्ष के नीचे रहता हूँ ; और वह जानवर क्या है , मैं पहचानता हूँ । तुम प्रत्येक जन जो-जो कह रहे हो , वह समस्त सत्य है ; वह गिरगिट है – कभी हरा , कभी नीला इसी प्रकार नाना रंगों का होता है ! और कभी देखता हूँ , बिल्कुल भी कोई रंग नहीं होता । निर्गुण । ईश्वर साकार भी है निराकार भी । ”
“ तो फिर ईश्वर को केवल साकार कहने से क्या होगा ? वे श्रीकृष्ण की न्यायीं मनुष्य-देह धारण करके आते हैं , यह भी सत्य है ; नाना रूप लेकर भक्त को दर्शन देते हैं , यह भी सत्य है । और फिर वे निराकार , अखण्ड सच्चिदानन्द हैं , यह भी सत्य है । वेद में उनको साकार , निराकार दोनों ही कहा है ; सगुण कहा है , निर्गुण भी कहा है । ”
अपने शिष्यों से ठाकुर श्री रामकृष्ण कहते थे :
“ मैं ने हिन्दू , मुसलमान , ईसाई सभी धर्मों का अनुशीलन किया है , हिन्दू धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के भिन्न – भिन्न पथों का भी अनुसरण किया है ... मैं ने देखा है कि उसी एक भगवान की तरफ ही सबके कदम बढ़ रहे हैं , यद्यपि उनके पथ भिन्न – भिन्न हैं । तुम्हें भी एक बार प्रत्येक विश्वास की परीक्षा तथा भिन्न – भिन्न पथों पर पर्यटन करना चाहिये । मैं जिधर भी दृष्टि डालता हूँ उधर ही हिन्दू , मुसलमान , ब्राह्म , वैष्णव व अन्य सभी संप्रदायवादियों को धर्म के नाम पर परस्पर लड़ते हुए देखता हूँ । परन्तु वे कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि जिसे हम कृष्ण के नाम से पुकारते हैं , वही शिव है , वही आद्याशक्ति है , वही ईसा है , वही अल्लाह है , सब उसी के नाम हैं –एक ही राम के सहस्रों नाम हैं । ”