घोर अव्यवस्था , चरम भ्रष्टाचार ।
लूट-खसोट , सीना जोरी का बाज़ार ।
चोरी – डाका , मार-काट का संसार ।
दुरात्कारियों का आतंक , नारियों का बलात्कार ।
‘आशाओं वाले बाबा’ करते शील हरण का व्यापार ।
आश्रम में होते गोरख धंधे , मंदिर-मस्जिद-गिरिजा
में व्यापार ।
संसद में चलते आरोप-प्रत्यारोप
, गाली-गलौज
की बौछार ।
कोई खेल लूटता , कोई फोन का करता
बंटाधार ।
कोयले से मुँह काला किया , चारा पहले ही
गए डकार ।
रेल तेल सब गए , हेलिकॉप्टर का भी हुआ बेड़ापार ।
ठेका पाने का सिर्फ कमीशन ही बना
नया आधार ।
कहीं मिलावट , कहीं जमाखोरी
का पूरा –पूरा बाज़ार ।
प्याज़-पेट्रोल सत्तर- अस्सी
के हुए , जनता करती हाहाकार ।
जन - सेवा व्यवसाय बना , नैतिकता से नहीं
कोई सरोकार ।
आँख दिखाते , सीमा लांघते
उत्तर में चीनी बारंबार ।
पश्चिम में गोली चलती , भीतर में माओवादियों
की बौछार ।
वोटों का ध्रुवीकरण कराते जिससे
अगली उनकी हो सरकार ।
जाति समीकरण का सूत्र बनाते , समरसता पर करते
प्रहार ।
देश टूटता , समाज बिगड़ता
, और बंट
रहा परिवार ।
हत्या होती प्रतिदिन , आम जन हुआ लाचार ।
जनता मालिक रोती जार – जार , अपनों से
गई हार ।
कहीं भगदड़ में सौ मरते , दंगों में हज़ार
– हज़ार ।
तिस पर प्रकृति का भी कहर बरपता बार – बार ।
आज ओड़ीशा तड़प रहा , कल सिसका था
केदार ।
हे ईश्वर विप्लव मचा दो , अव्यवस्था का
कर दो तार – तार ।
राम – राज्य को सार्थक कर दो , हे सृजनहार !
अब नहीं इंतजार ।
न कोई भय रहे , न कोई आतंक हो
, न कोई
लाचार – बीमार ।
सत्य और ईमान की पूछ हो , सपने हों साकार
।
पढ़ा – लिखा समाज हो , क्यों कहीं हो
दुर्विचार ।
अमर नाथ ठाकुर , 22 अक्तूबर , 2013, कोलकाता ।