Thursday, 24 October 2013

अशर्फ़ियाँ ढूँढती सरकार उन्नाव में



राज नेता समय गँवाते कांव – कांव में ।
राष्ट्र को छोड़ डगमगाती नाव में ।
मुंगेरी लाल के हसीन ख्वाब में ।
अशर्फ़ियाँ ढूँढती सरकार उन्नाव में ।
फिर वादे होंगे अगले चुनाव में ।
मंहगाई फुनगी छूती , किलो बिकता पाव में ।
नेताओं ने नमक डाली है घाव में ।
सब कुछ पढ़ लो भाई उसके हाव – भाव में ।
जनता अब आ रही ताव में ।
जाग - जाग भाई शहर में और गाँव में ।
यदि समय बिताना है अगला पाँच बरस छांव में ।
लगा दो सब कुछ इस बार दांव में ।
बदल डालो व्यवस्था , मिटा डालो गंदगी !
कूद पड़ो चुनाव क्षेत्र में , हे बहना , हे संगी !


अमर नाथ ठाकुर , 23 अक्तूबर , 2013 , कोलकाता । 

अव्यवस्था का कर दो तार-तार

घोर अव्यवस्था , चरम भ्रष्टाचार ।
लूट-खसोट , सीना जोरी का बाज़ार ।
चोरी – डाका , मार-काट का संसार ।

दुरात्कारियों का आतंक , नारियों का बलात्कार ।
आशाओं वाले बाबा करते शील हरण का व्यापार ।
आश्रम में होते गोरख धंधे , मंदिर-मस्जिद-गिरिजा में व्यापार ।
संसद में चलते आरोप-प्रत्यारोप , गाली-गलौज की बौछार ।

कोई खेल लूटता , कोई फोन का करता बंटाधार ।
कोयले से मुँह काला किया , चारा पहले ही गए डकार ।
रेल तेल सब गए , हेलिकॉप्टर का भी हुआ बेड़ापार ।

ठेका पाने का सिर्फ कमीशन ही बना नया आधार ।
कहीं मिलावट , कहीं जमाखोरी का पूरा –पूरा बाज़ार ।
प्याज़-पेट्रोल सत्तर- अस्सी के हुए , जनता करती हाहाकार ।
जन - सेवा व्यवसाय बना , नैतिकता से नहीं कोई सरोकार ।

आँख दिखाते , सीमा लांघते उत्तर में चीनी बारंबार ।
पश्चिम में गोली चलती , भीतर में माओवादियों की बौछार ।
वोटों का ध्रुवीकरण कराते जिससे अगली उनकी हो सरकार ।
जाति समीकरण का सूत्र बनाते , समरसता पर करते प्रहार ।
देश टूटता , समाज बिगड़ता , और बंट रहा परिवार ।

हत्या  होती  प्रतिदिन , आम जन  हुआ लाचार ।
जनता मालिक रोती जार – जार अपनों से गई हार ।
कहीं भगदड़ में सौ मरते , दंगों में हज़ार – हज़ार ।
तिस पर प्रकृति का भी  कहर बरपता बार – बार ।
आज ओड़ीशा तड़प रहा , कल सिसका था केदार ।

हे ईश्वर विप्लव मचा दो , अव्यवस्था का कर दो तार – तार ।
राम – राज्य को सार्थक कर दो , हे सृजनहार ! अब नहीं इंतजार ।
न कोई भय रहे , न कोई आतंक हो , न कोई लाचार – बीमार ।
सत्य और ईमान की पूछ हो , सपने हों साकार ।
पढ़ा – लिखा समाज हो , क्यों कहीं हो दुर्विचार ।


अमर नाथ ठाकुर , 22 अक्तूबर , 2013, कोलकाता । 

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...