सावन के मेघों का हुआ आगमन
कर गया नील नभ का आच्छादन
तेजोमय रवि सहमा तत्क्षण
कर शीघ्र साष्टांग समर्पण
अंधियारी देख लौट पड़े खग-गण
सिहकने लगी मनमोहक पवन
झूमते वृक्ष पल्लव पुष्पों का नर्तन
कड़कती बिजली मेघों का गर्जन-तर्जन
दिशाएँ थर्रा जाती झन-झन घन-घन
फिर टिप-टिप बूंदों का मधुर कीर्त्तन
रुक-रुक कर मूसलाधार झम-झमा-झम
नाली पगडंडी गलियाँ सड़क मैदान
उपवन
सब बन जाते मृदु जब होते जल मगन
शिशु कूदे-फाँदे जल-क्रीडा करते
नग्न वदन
बरसात में बनता यह दृश्य विलक्षण
याद आता तब अपना गाँव अपना बचपन
कितना भी क्यों न हो आहत मन
थिरक-थिरक जाता सब मन-मयूर बन ।
अमर नाथ ठाकुर , 3 जुलाई , 2014 , कोलकाता ।