Thursday, 3 July 2014

वर्षा – ऋतु का आगमन




सावन   के  मेघों  का  हुआ  आगमन

कर  गया  नील  नभ  का  आच्छादन

तेजोमय   रवि     सहमा     तत्क्षण

कर    शीघ्र    साष्टांग      समर्पण

अंधियारी   देख   लौट  पड़े  खग-गण

सिहकने   लगी   मनमोहक     पवन

झूमते  वृक्ष  पल्लव  पुष्पों  का  नर्तन

कड़कती  बिजली  मेघों का गर्जन-तर्जन

दिशाएँ  थर्रा  जाती  झन-झन  घन-घन

फिर  टिप-टिप बूंदों  का मधुर  कीर्त्तन

रुक-रुक  कर मूसलाधार  झम-झमा-झम 

नाली पगडंडी गलियाँ सड़क मैदान उपवन

सब बन जाते मृदु  जब  होते जल मगन

शिशु कूदे-फाँदे जल-क्रीडा करते नग्न वदन

बरसात  में  बनता  यह  दृश्य  विलक्षण

याद आता तब अपना  गाँव अपना बचपन

कितना  भी  क्यों   न  हो  आहत  मन

थिरक-थिरक  जाता  सब मन-मयूर  बन ।




अमर नाथ ठाकुर , 3 जुलाई , 2014 , कोलकाता ।   

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...