शांत , नीरव , निश्छल क्षण ।
सहस्र रश्मियाँ सूर्य – रथ अश्व बन
अट्टालिकाओं के बीच से छन-छन ।
पंक्ति-बद्ध वृक्ष-पुष्पों से
सुसज्जित उपवन
मोती बन चमक उठा तृण - फुनगी
जल कण ।
पक्षियों के कलरव से झंकृत उन्मुक्त
गगन ।
शीतल-शीतल मंद-मंद पवन
कोमल-कोमल लघु-लघु स्पंदन ।
विस्फारित नयन और मुक्त वदन का
सिहरण ।
कुत्सित विचारों का कर लेगा हरण
न शेष ईर्ष्या – द्वेष , न कोई जलन
और न अब रहेगा कलुषित भी मन ।
आएगा शीघ्र वह क्षण सुप्रभात बन
चिर हास से कर देगा जगमग-जगमग
जीवन ।
अमर नाथ ठाकुर , 9 मई , 2014 , कोलकाता ।