धान काट कर घर नहीं लाते अब अगहन में
इसलिए मेह नहीं गड़ते दालान या आंगन में
न बाँस काटना होता अब दबिया या कटार से
और न मेह सजाना होता सिंदूर एवं पिठार से
न पंडितजी का वेदोच्चार न मुहूर्त्त की गणना
जरूरत नहीं मेह को छीलना या सजाना
मेह में न दर्जनों धान के शीश ही बाँधना
न इसकी फुनगी से धान का गुच्छ लटकाना
गांव में अब नहीं बनते खलिहान
इसलिए नहीं होता दौनी धान
मेह नहीं सो नहीं इसमें दर्जन बैल बहते
न इसे धान खाने से रोकने को जाबी पहनाते
बैलों को ललकारने की अब आवाज कहाँ
न जुआली की सट सट फटकार वहाँ
धान पुआल अलग करने की रीति
यह अब कहां दिखाई देती
अब न होती धान की सूप से ओसाई
रामैह जी राम से न गिनती और न तौलाई
कहां होता अब धान की उसनाई
और न ही होती धान की सुखाई
और न फिर ढेकी में इसकी कुटाई
धान रखने को न दिखती बांस की बखारी
न चावल रखने को माटी की कोठी न्यारी
अब न खुद्दी का आंटा न ही रोटी बनती
और न खुद्दी की खिचड़ी ही उबलती
पुबरिया ओसरा पर सबेरे की धूप में बैठ कर,
अब न मुड़ही खाते बच्चे गांती बांध कर ,
अब नहीं होता घूरा घेरकर बैठने का इंतजाम
न घूरा में आलू अल्हुआ पकाने का बच्चों का काम
अब न होता नार - पुआल का गर्म बिछौना
और न बच्चों का उस पर उछल कूद करना
अब न लगता नार -पुआल का ऊँचा टाल
जो खाए सभी माल - जाल जी भर साल
अब न गोहाली के सामने धूप में कुर्सी लगाना
इसलिए न कोई बैठक , न कोई मजमा जमाना
न फिर फिकर कि शाम के पहले कुर्सियां उठाना
और घर के अंदर इसे रख ओस से बचाना
अब न तौनी कंबल न कोई गमछी ओढ़ना
अब तो ओवरकोट जैकेट और कैप का जमाना
ये अब अगहन पूष नहीं भई दिसंबर का है महीना
अब नहीं रहा अगहन पूष का वो महीना
अब धान कटाने को न मजदूर बुलाना
अब न कटे धान की ओगाही करना
न धान को कटाकर बैल गाड़ी से ढोना
अब क्या मतलब बोझों की गिनती से
कौन खोद निकाले धान चूहे के बिल से
न धन लोढ़नी से तकरार होना
न आँटी बांधने का दरकार होना
अब न बोइन देने का कोई झमेला
न बोझ बराबर करने का कोई बखेड़ा
अब तो खेतों में थ्रेशर भेज दिया जाता है
धान अलग कर ट्रैक्टर में लादा जाता है
और सीधे व्यापारी को बेच दिया जाता है
नार पुआल अब समेट रखने का विधान नहीं
क्योंकि गाय बैल पालने में कोई शान नहीं
खेतों में ही नार पुआल जला देते हैं
धुएँ के ग़ुबार से दिशायें भभका देते हैं
नहीं कूटा जाता है हरे धान का ऊखल में करारा चूड़ा
अब न बगिया, न मुड़ही की लाई , न कोई शक्कर का ढेला
अब न नवान्न पूजन का कोई अनुष्ठान
न अग्नि को समर्पण का कोई विधान
बाजार से खरीद लाते अब सारे अन्न- पान
अब नहीं रहा अगहन पूष का वो महीना
लुप्त हो रही रीति चलन संस्कार ,क्या कहना !
अमर नाथ ठाकुर
21 दिसंबर, 2023, कोलकाता ।