Friday, 19 January 2018

मित्रता का बाज़ार


1.
कितने दिन बाद मिले
महीनों वर्षों बाद मिले
शुरू हो गए गिले-शिकबे
उन पुराने दिनों की बातें हुईं
जब उन्होंने फरमाया था
जिस पर मेरा मन डगमगाया था
और  मैं ने नहीं कुछ कर दिखाया था,
तिस पर उनका मन भी नहीं हरषाया था ।
आज उस दिन को बार-बार याद किया
कई क्षण उस पर बरबाद किया
फिर इस पर मुश्किल से बात बनी
उस दिन और उस घटना को स्मृति-पटल से बाद किया ।


बातों का  सिलसिला आगे बढ़ा
चाय की चुस्कियों का जोर चला,
पकौड़े भी बीच-बीच में चल रहे थे
और हम दोनों यादों में तैर रहे थे,
कभी डूब भी रहे थे कभी उपला भी रहे थे,
तू-तू, मैं-मैं तथा नोंक-झोंक के पुराने
 खरोंच पर मरहम पट्टी कर रहे थे,
कुछ विस्मृत पल को खंगाल भी रहे थे ।

हाँ, उस दिन तुमने अपनी हठधर्मी
दिखाई थी
मित्र ने कहा, बात नहीं मेरी तू ने मानी थी
वह तुम्हारा निरा हठ था
तुम्हारी मनमानी थी,
मेरी बात काट कर बढ़ना
मेरा अपमान था
अपनों का यह तिरस्कार था
और रक्त-पान समान था
इसलिये फेवर्ड फ्रेंड लिस्ट से तूुम्हें
तुरन्त निकाल बाहर किया था
तुझे हमने सदा के लिये अनजान किया था
और फिर अन्य कृत्यों द्वारा लाँछना भी प्रदान किया था ।

2.
आजकल ‘मित्रता’ में पहले कुछ लिया जाता है,
और फिर हिसाब से लौटाया जाता है ।
लेन-देन आधारित जब हो मित्रता
तो क्या कम है बदले की शत्रुता ।

शत्रुता में शत्रु को कुछ न कुछ दिया जाता है,
ज्यादे लौटाने का शत्रुओं का भी एक धर्म होता है,
तभी तो ईंट का जबाव पत्थर होता है ।
हिंसा का जबाव प्रति हिंसा से
ईर्ष्या-द्वेष का कटुता से दिया जाता है ।
शत्रु के साथ जो किया जाता है
वह तो आशानुरूप और सम्भावित होता है।

‘मित्र’ के साथ सब प्रतिकूल होता है
और सब अप्रत्याशित होता है ।
यहाँ मुस्कान की ओट होती  है
और हृदय में शूल चुभाया जाता है,
यहाँ अपनों की चोट होती है
और सम्बन्धों में खोट ही खोट होती है ।

3.
जब लेन-देन ही आधार हो,
और सम्बन्ध एक व्यापार हो,
क्या जरूरत है ऐसी छद्म मित्रता की !
क्यों न पूछ हो सिर्फ ‘साफ’ शत्रुता की !
क्यों न खुला एक बाजार हो,
जहाँ ‘शत्रुता’ और ‘मित्रता’ का
क्रय-विक्रय वाला तुला साकार हो
और `बदले` के बटखरे की भरमार हो।

सम्बन्धों के तराज़ू पर ‘मित्रता’ और ‘शत्रुता’
का जब मोल-तोल होगा
इस आधुनिक जगत में निष्कपट ‘शत्रुता’ के
पलड़ा का ही भारी बोल होगा !

अमर नाथ ठाकुर , 23 नवम्बर , 2017, मेरठ ।



मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...