Thursday, 29 January 2015

जितने लोग उतने धर्म


 -1-

क्या लोग वहाँ अपाहिज नहीं होते
क्या लोग वहाँ बीमार नहीं होते
क्या लोग वहाँ नहीं मरते
क्या लोग वहाँ नहीं रोते ?

क्या वहाँ ठगी नहीं होती
क्या वहाँ चोरी-डाका नहीं पड़ते
क्या वहाँ घूसख़ोरी नहीं चलती
क्या वहाँ लोग गरीब नहीं होते  ?

क्या वहाँ मित्रता निभायी जाती है
क्या वहाँ रिश्ते निभाये जाते हैं
दया-करूणा-सत्य की चलन होती है  
बच्चा खोने पर माँ का दिल पसीजता है ?

क्या वहाँ खेती होती है
क्या वहाँ फैक्टरियाँ चलती हैं
क्या वहाँ व्यापार चलता है
क्या वहाँ झोंपड़ियाँ नहीं होती हैं ?

क्या दुःख आने पर आँसू झरते हैं 
क्या खुश होने पर ठहाके चलते हैं ?

  -2-
   
जो वहाँ है वही तो यहाँ है भाई
इधर कुआं है तो उधर भी है खाई
हर जगह जहर का सागर है ,
सोचो तो हर जगह अमृत की अमराई
क्योंकि एक ने ही तो यह दुनिया रचायी ।


 -3-

क्यों छोड़े कोई अपना धर्म
यदि जान ले धर्म का ये मर्म
जितने लोग उतने धर्म
सारे धर्म एक धर्म ।
फिर क्यों समरसता का खेल बिगड़े
क्यों धर्म-अधर्म के हो बखड़े
हे मानव कुछ तो करो शर्म
निभाओ अपना- अपना धर्म !

शहीद दिवस –30 जनवरी के लिए , बापू से अभिप्रेरित ।
अमर नाथ ठाकुर , 28 जनवरी , 2015 , कोलकाता ।   


मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...