Tuesday, 25 August 2015

हिम्मत क्यों हारता वीर बटोही

चोटी पर खड़ा क्या सोच रहा 
नीचे ताक - ताक कर क्यों डर रहा 
ऊपर देख आसमान कितना पास है 
चाँद और तारे कितने ख़ास हैं 

कर कुछ ऐसा शान से 
मौका पाया है खेल ले तूँ जान से 
ये क्या पग-पग भूमि तूँ नाप रहा 
ठंड के बारे में सोच क्यों काँप रहा 
लगा लंबी छलाँग- अब उसकी ही जरूरत है 
इंतज़ार किसका अब हर क्षण शुभ मुहूरत है
पास है दूसरी चोटी उसे मील-स्तम्भ बना ले 
अपनी ताकत का आज तूँ दम्भ भर ले 

गिन-गिन कर चोटियाँ मत पार कर 
हिम्मत क्यों खोता है थक हार कर
काम अनगिनत है समय  तूँ न बरबाद कर
म्यान से   तलवार अब खींचकर
बढ़ तूँ अब दहाड़ मार हुँकार कर
समय कहाँ न अब शृंगार कर 
रौंद चलता जा तूँ वीर बटोही 
 बाधाओं को अविलंब फाड़ कर 

चिन्ता न कर गालियों की 
आशा न कर तालियों की 
काले बादल तुम्हारी नजरें विकलित करेगा 
तूफान तुम्हें हिला - हिला कर विचलित करेगा 
पहाड़ - पथ में रोड़े बेशुमार मिलेंगे 
मौसम के बखेड़े हजार मिलेंगे 
खुशबू गुलाब की  पानी है 
तो काँटे क्या कटार मिलेंगे 

तीक्ष्ण नजरों से दूर तक देख 
लक्ष्य साफ - साफ दीखता है 
हिम्मत क्यों हारता वीर बटोही
जब यम भी तुमसे दूर भागता है ।

अमर नाथ ठाकुर , 25 अगस्त , 2015 , कोलकाता ।

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