Saturday, 11 August 2012

विस्मृति --- जेना किछु बिसरि गेल हो





इजौड़िया राति में
मांझ अँगना में
गोनारि(पटिया) पर चित्तांग लेटल
बुढ़िया दादी के छाती पर दंगल करैत
खीसा सुनैत
बुचकुनमा  छौंड़ा---

हाथ में पियरका लोटकी लेने
डांड़ में करिया डोराडोरि पहिरने
गरदनि में बाघक दांत झूलैत
कल लग ठाढ़
पानि हँसोथि रहल
नंगटे
उछलि-उछलि क
किलकारि मारैत
नहा रहल  छौंड़ा----

फटलाहा किताब ,
टुटलाहा सिलेट लेने
भैयाक संगे इसकूल जेबाक लेल
चीत्कार करैत
कानैत
आँखि स नोर चुअबैत  छौंड़ा ---

आँखि में कांची
नाक स सरकैत पोटा के सम्हारैत
ठोर के दूनू कात स लेर बहकैत
मुत्ती केने
भिजलाहा गमछी के धरिया पहिरने
लजाइत
कनखी स देखैत छौंड़ा---

माँ के कन्हा पर स
लटकल आँचर के खींचैत
भनसा घर के दिस ठेलैत
'बसिया भात नून-पानि संगे सुरकब '
जिद्द करैत
हल्ला करैत छौंड़ा ---

सांझ में
देहरि पर
बजार स फिरल
बाबू के पैर पर
पैर चढ़ेने
चलैत
खुराठैत
जेब में हाथ फँसौने
झिलिया-मुड़ही के पुड़िया निकालैत
किसना (कृष्ण ) छौंड़ा---

हाथ में एके टा ठुर्री
मुदा अछि मुस्कराइत
पिपही बजबैत
नाचैत
दौड़ैत
खसैत-पड़ैत
धुल-धूसरित छौंड़ा ---
माँ-बाबू के
सबके आँखिक तारा
दुलरुवा छौंड़ा ---



जुत्ता पहिरने
महीसक पीठ पर अधलेटल
रेडियो बजबैत
गाना सुनैत
चरवाहा छौंड़ा ---


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर .
अमर नाथ ठाकुर , ११ अगस्त , कोलकाता.


मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...