चण्ड मुण्ड जब पास बसे ,
शुम्भ निशुम्भ अट्टहास करे ,
मधु कैटभों की गर्जना से दलमलित ,
धूम्र लोचनों से प्रताड़ित और पीड़ित ,
शिशु चीत्कार करे,
स्त्रियां हाहाकार करे ।
व्यभिचारियों की बढ़ती बाढ़,
सर्वत्र भय और काट- मार,
गली- गली लूट -मार , भ्रष्टाचार
सदाचारियों की होती जाती हार ।
महिषासुरों का नर्त्तन अब भी बांकी है,
ओह! अगणित रक्त बीज की भी झांकी है !
गांव -गांव नगर -नगर काली- दुर्गा सजे ,
दुष्ट विनाश की दुंदुभी शीघ्र बजे।
सिर्फ पूजन नहीं हवन भी हो,
अबकी नहीं मां का विसर्जन हो!
नहीं सिर्फ नर्तन हो, गर्जन भी हो
दुराचारियों का मान मर्दन भी हो ।
आतंकियों की क्यों दुविधा रहे,
रक्त मांस की समिधा जले,
अस्थिदान करने क्यों एक दधीचि उतरें,
हर बच्चा -बच्चा अब कूच करे !
शंख ध्वनि से युद्ध घोष करो,
पुष्प वृष्टि करो जय घोष करो !
दुष्ट दमन को कृपाण चलाओ,
मां, अब संहारक वाण निकालो !
युद्ध तो अब भीषण होगा,
अशिष्टों का न अब पोषण होगा,
पापियों का शीघ्र शमन हो
भय मुक्त , मां, अब चमन हो !
अब की नहीं माँ का विसर्जन हो !
अमर नाथ ठाकुर, 24अक्तूबर, 2023, कोलकाता।