Wednesday, 14 January 2015

सिंहावलोकन


बचपन के दिन थे
जब समझ थोड़ी थी
ज्ञान की पहुँच सीमित थी
तो साफ पता था
कि आप अपने थे
यह भी अपने थे
वह भी अपने थे
दुनियाँ में बहुतेरे अपने थे ।
आदर्श वाक्य था वसुधैव कुटुम्बकम । 

वर्षों बाद युवावस्था के दिन में
बहुत कुछ ज्ञान अर्जित कर चुके
तो जानने लग गए थे कि
आप भी अपने नहीं
यह भी अपने नहीं
वह तो पड़ोसी थे
जो अपने  हो नहीं सकते ।

आज उमर की इस दहलीज़ पर
जब जानने को कुछ भी नहीं रह गया है
तो जानते हैं कि
स्वयं को भी नहीं जानते ।
मन क्या सोचता है
वाणी क्या निकलती है
कर्मेन्द्रियाँ क्या कर जाती हैं ।
यह ज्ञान है या अविश्वास !

अमर नाथ ठाकुर , 14 जनवरी , 2015 (20.07.2013) , कोलकाता ।


Tuesday, 13 January 2015

पग-पग राह दिखाता असीम अनंत ज्योति



जिसका रूप नहीं
वह है हर रूप में
जिसका रंग नहीं
वह है हर रंग में
जो इस जगह नहीं
वह है हर जगह में
जिसका कोई घर नहीं
किन्तु सब हैं उसके घर में 
जिससे कोई छोटा नहीं
किन्तु जिससे कोई बड़ा भी नहीं
जो सब में है
जिसमें सब है
उसकी कोई छाया नहीं
सब किन्तु हैं उसकी छाया में
स्वयं जो अदृश्य है
किन्तु जो सबको है देखता
जिसको हम नहीं सुनते
किन्तु जो सबको है सुनता
जिसकी आहट हम नहीं पाते
किन्तु जो सबकी आहट लेता
जिसे हम नहीं गिन सकते
किन्तु जो सबकी है गिनती रखता
सबका प्रसाद वह ग्रहण करता है
सब उसका ही प्रसाद है ग्रहण करता
वह राजा की चाह में है
वह दरिद्र की आह में है  
दुश्मनों की डाह में है वह
दोस्तों की वाह-वाह में है वह
उसे नहीं कोई मार सकता
वह सबको किन्तु है तारता
नहीं उसका कोई पालन करता
वह सबका है पालन करता
उसकी नहीं है कोई काया
किन्तु सत्य उसका साया  
कौन है वह
क्या है वह
कहाँ है वह
किस कण में है वह
कण-कण में है वह
वह अक्षय अक्षुण्ण आनंद स्रोत
पग-पग राह दिखाता असीम अनंत ज्योति

स्वामी विवेकानंद से अभिप्रेरित

अमर नाथ ठाकुर , 12 जनवरी , 2015 , कोलकाता । 

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...