शनैः शनैः दिन ढल रहा
पल-पल सूर्य मलिन हो रहा
घने काले बादलों में ओझल
नीचे शान्त नीरव भूतल
मन्द-मन्द शीतल-शीतल पवन
छुप-छुप गुदगुदाता तन-मन ।
अँधियारी छाने लगी है
समझदारी जाने लगी है ।
हे ईश्वर ! कैसा ये विकट समय
गुनगुनाएँ तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
एक अकेला निश्तेज चंद्र
प्रकट हुआ है पहरेदारी में
मुस्करा-मुस्करा सहस्र तारे भी हैं
उसकी सेवादारी में ।
राह कँटीला है
जीवन पथरीला है
और दीप एक डटा है
तिल-तिल जो जला है
आशा और विश्वास में जो पला है
अकेले - अकेले यह लड़ा है
ठान लिया है इसने दृढ़ मन में
लड़ेगा सूरज निकलने तक इस जीवन में ।
अमर नाथ ठाकुर , 7 जुलाई, 2021,कोलकाता ।