लंगड़े की सरपट चाल की कामना
अंधे की दिव्य -ज्योति की साधना
गूंगे की अट्टहास की कल्पना
कनफुसकी पर बहरे का शुरू हो जाना
ये सब तुम करे , हे कृष्ण लले---
निर्धनों के धन में
भिखारियों के मन में
किन्तु मंदिरों के बाहर कण-कण में
तुम गगन के ऊपर , गगन के भी तले--
दुखियों के क्रंदन में
अपाहिजों के चरण में
शबरी के जूठन में
घायलों के रक्त-रंजित घावन में
हे हरे ! तुम वहाँ पले, तो फिर कैसे मिले --
क्षितिज का पीछा हम करें, क्षितिज के पार तुम चले --
कष्टों का भी आनंद और दुखों का भी सुख
अतः क्यों न मिले , जहां तुम खिले -----------
अमर नाथ ठाकुर , १४ अप्रैल , कोलकाता .
अंधे की दिव्य -ज्योति की साधना
गूंगे की अट्टहास की कल्पना
कनफुसकी पर बहरे का शुरू हो जाना
ये सब तुम करे , हे कृष्ण लले---
निर्धनों के धन में
भिखारियों के मन में
किन्तु मंदिरों के बाहर कण-कण में
तुम गगन के ऊपर , गगन के भी तले--
दुखियों के क्रंदन में
अपाहिजों के चरण में
शबरी के जूठन में
घायलों के रक्त-रंजित घावन में
हे हरे ! तुम वहाँ पले, तो फिर कैसे मिले --
क्षितिज का पीछा हम करें, क्षितिज के पार तुम चले --
कष्टों का भी आनंद और दुखों का भी सुख
अतः क्यों न मिले , जहां तुम खिले -----------
अमर नाथ ठाकुर , १४ अप्रैल , कोलकाता .