छप्पर फाड़ कर मत देना भगवन ,
बरसात में हम कहाँ रहेंगे ।
खिड़कियाँ जब पट रहित हैं
दरवाजे जब ताला रहित हैं
नो इंट्री का भी न कोई बोर्ड लगाया
बेरोक –टोक चलकर आना भगवन ,
बाट जोहते हम खड़े निराधार मिलेंगे ।
ईंट पत्थर जोड़कर यह दीवार बनाया
तिनका – तिनका बटोरकर यह छत बनाया
घास – फूस की चटिया बिछाकर
दिन रात तुम्हारा ही गुण गाया
इस छत पर नाहक क्या हाथ आजमाना भगवन ,
जब आत्म – समर्पित हम खुद ही तैयार मिलेंगे ।
घास गिरेंगे , कंकड़ पड़ेंगे
सिर फटेंगे , रक्त बहेंगे
हम हाहाकार चीत्कार करेंगे
छत पर क्यों हथौड़ा चलाना भगवन ,
जब स्वागत में हम खुद ही साकार रहेंगे ।
निर्मल मन है ओठों पर तू ही विट्ठल है
जल है पुष्प है तुलसी दल है
यहाँ न कोई शबरी का जूठा फल है
तो क्यों तोड़ –फाड़ कर देना भगवन ,
जब ग्रहण कराने हम खुद ही साभार रहेंगे ।
हमारे हृदय में पैठकर
गले से लगा कर
गले से लगा कर
सिर पर हाथ फेरकर देना भगवन ,
अश्रुपूरित नयनों से हम सब स्वीकार करेंगे ।
छप्पर फाड़ कर मत देना भगवन ,
बरसात में हम कहाँ रहेंगे ।
अमर नाथ ठाकुर , 18 जनवरी , 2015 , कोलकाता ।