-->
ब्रह्ममयी माँ , मुझे पागल कर
दे !
अब ज्ञान-विचार से मुझे
विरक्त कर दे
अपनी प्रेम की सुरा-पान से मुझे मतवाला कर दे
भक्त-चित्त को हरनेवाली, प्रेम-सागर में मुझे डुबो दे !
माँ , तुम्हारे इस जेल घर में
कोई हँसे कोई रोए कोई आनंद
करे
गद – गद हो सब नाच करे
ब्रह्ममयी माँ, मुझे भी इस
जेल में बंद कर दे !
ईसा, मूसा, श्री चैतन्य
प्रेम से भर कर हुए सभी अचैतन्य
मुझे कब करोगी माँ धन्य ?
अपने भीतर समाहित कर मुझे
भी प्रेम में मिला दे !
( नहीं चाहिये मुझे स्वर्ग )
स्वर्ग में ये कैसा पागलों का मेला
स्वर्ग में ये कैसा पागलों का मेला
जैसा गुरु वहाँ वैसा ही चेला
प्रेम का खेला वहाँ कौन
समझे भला !
स्वर्ग से दूर अपने प्रेम में माँ , गद-गद कर दे !
माँ , तू प्रेम की उन्मादिनी
माँ , तू (प्रेम में) पागलों (भक्तों) की शिरोमणि
मुझ कंगाल प्रेमदास को
प्रेमधन से भर दे !
ब्रह्ममयी माँ , मुझको भी
अपने जैसा पागल कर दे !
कथामृत से साभार , रामकृष्ण
परमहंस के अति प्रिय बांगला भजन का मेरे द्वारा हिंदी रूपांतरण .
अमर नाथ ठाकुर , 14 मार्च , 2015 , कोलकाता .