Saturday, 14 March 2015

आमाय दे मा पागल करे ( माँ मुझे पागल कर दे )

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ब्रह्ममयी माँ , मुझे पागल कर दे !
अब ज्ञान-विचार से मुझे विरक्त कर दे  
अपनी प्रेम की सुरा-पान से मुझे मतवाला कर दे  
भक्त-चित्त को हरनेवाली, प्रेम-सागर में मुझे डुबो दे !

माँ , तुम्हारे इस जेल घर में
कोई हँसे कोई रोए कोई आनंद करे
गद – गद हो सब नाच करे
ब्रह्ममयी माँ, मुझे भी इस जेल में बंद कर दे !

ईसा, मूसा, श्री चैतन्य
प्रेम से भर कर हुए सभी अचैतन्य
मुझे कब करोगी माँ धन्य ?
अपने भीतर समाहित कर मुझे भी प्रेम में मिला दे !

( नहीं चाहिये मुझे स्वर्ग )
स्वर्ग में ये कैसा पागलों का मेला
जैसा गुरु वहाँ वैसा ही चेला
प्रेम का खेला वहाँ कौन समझे भला !
स्वर्ग से दूर अपने प्रेम में माँ , गद-गद कर दे !

माँ , तू प्रेम की उन्मादिनी
माँ , तू (प्रेम में) पागलों (भक्तों) की शिरोमणि
मुझ कंगाल प्रेमदास को प्रेमधन से भर दे !
ब्रह्ममयी माँ , मुझको भी अपने जैसा पागल कर दे !

कथामृत से साभार , रामकृष्ण परमहंस के अति प्रिय बांगला भजन का मेरे द्वारा हिंदी रूपांतरण .
अमर नाथ ठाकुर , 14 मार्च , 2015 , कोलकाता .

Friday, 13 March 2015

माँ तूँ साकार तूँ ही निराकार



भवदारा  भयहारा  नाम सुना है तुम्हारा
तारो या न तारो तुम्हारे ऊपर है भार सारा
माँ तुम हो ब्रह्मांड व्यापक तुम ही ब्रह्मांड धारिणी सारा
न जाने तुम काली हो या हो राधा रानी
तुम घट-घट निवासिनी ओ जननी
मूलाधार कमल की कुंडलिनी
सुषुम्ना में ऊपर उठती स्वाधिष्ठान तक
फिर शनैः-शनैः चतुर्दल अधिष्ठान तक
चतुर्दल में निवासनेवाली कुलकुंडलिनी
षटदल वज्रासन में  वसनेवाली मानिनी
उससे ऊपर नाभिस्थान में मणिपुर चक्र धाम
वहाँ नीलवर्ण दशदल कमल सुनाम
सुषुम्ना पथ से आओ जननी
कमल कमल में रुको कमल रूपिणी
उसके ऊपर सुधा सरोवर
रक्त वर्ण द्वादश दल पद्म मंदिर
कर दो माँ पादपद्म से पद्म प्रकाश
हृदय में विभावरी तिमिर विनाश
और ऊपर जो है कंठस्थल
धूम्र वर्ण पद्म षोडशदल
इस पद्म के मध्य में अंबुज प्रकाश
यह आकाशरुद्ध सारा ही है आकाश
और ऊपर ललाट स्थान में द्विदल कमल
जिसे पाने को हर कोई  विह्वल 
जहां हो जाता मन सदा आबद्ध
आनंद में रहना चाहता मन वहाँ निबद्ध  
उससे भी ऊपर मस्तक में अति मनोहर
सहस्रदल पद्म है क्योंकि उनके  भीतर
परम शिव है स्थित तहाँ  
माँ आद्याशक्ति जितेंद्रिय जहाँ
ध्यावें योगींद्र मुनीन्द्र नगेन्द्र्कुमारी
वहाँ ही शिव की शक्ति माँ तुम सारी  
तुम आद्याशक्ति तुम पंचतत्व तुम तत्वातीत निर्विकार
माँ पार करा दो भवसागर नाश करो वासना अहंकार
हे माँ तूँ साकार तूँ ही है     निराकार !

कथामृत से साभार , रामकृष्ण परमहंस द्वारा गाये जाने वाले बांगला भजन का मेरे द्वारा हिन्दी रूपान्तरण ।

अमर नाथ ठाकुर , 13 मार्च , 2015 , कोलकाता । 

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...