Sunday, 6 December 2015

न मेरा कोई परिचय हो .....



मेरे नाम में है मेरा परिचय 
मेरे परिचय में मेरा नाम
उसके नाम में भी उसका परिचय
उसके नाम में उसकी पहचान
मेरे नाम में है मेरे धर्म की पहचान
उसके नाम में भी उसके धर्म की शान
मैं हिन्दू हूँ वह  है सिख या ईसाई
या हो सकता है मुस्लिम भाई ।

मेरे नाम में छुपा  मेरी जाति का पता
नाम से ही मिलता बाप और गाँव का नाता
मेरे खान-पान से मेरा प्रदेश 
मेरी भाषा से पता चलता है  मेरा देश 
मेरी बोली मेरा परिवेश बताता 
मेरा उच्चारण  मेरा क्षेत्र दर्शाता ।
मेरे सिर की चोटी मेरे माथे का टीका
क्यों कर जाता मेरा परिचय फीका ?

मेरे कपड़े मेरी वेश-भूषा भी बहुत कुछ बताता
मेरी  टोपी-पगड़ी में भी होता मेरे परिचय का खाता ।
मेरे चमड़े के रंग में मेरी राष्ट्रीयता 
कोई गोरा होता कोई काला कहलाता ।


कोई प्रोटेस्टेंट कहलाए या कहलाए कैथोलिक
पारसी यहूदी होवे या होवे जैन बौद्ध या सिख 
उसका  परिचय ही शिया या सुन्नी करता 
किसी का परिचय ब्राह्मण क्षत्रिय या वैश्य बनाता 
या बनाता पिछड़ा अति पिछड़ा या दलित शूद्र 
परिचय से ही स्पष्ट होता  धनवान या दरिद्र ।

क्यों  होऊँ आई एस आई एस का लड़ाका दरिन्दा
मुझे नहीं पसन्द लश्कर न पसन्द तालिबानी धंधा ।

छोड़ो अपना परिचय छोड़ो अपना नाम
जो बढ़ावे भेद-भाव जो करे बदनाम ।
मैं गेहूँ चावल  जैसा  क्यों न बन जाऊँ
नाम और परिचय त्याग कर गुम हो जाऊँ
या  मैं जल बूँद सरीखा बन जाऊँ
नदी समुद्र या झील में समा रमा जाऊँ ।

न मेरा परिचय हो न हो कोई नाम । 
ईश्वर के बन्दे क्यों करे  गन्दा काम ।

अमर नाथ ठाकुर , 5 दिसंबर , 2015 , कोलकाता ।

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