खूब तुम मुझे गालियां दो
खूब तुम मुझे दुत्कारो
और खूब तुम मुझे उलाहने सुनाओ
मैं सब सुन लूँगा ।
लाख तुम मेरी निंदा करो
खूब तुम मेरा गला दबाओ
लाख तुम मेरी अवहेलना करो
और लाख तुम मेरा परित्याग करो
मैं विरक्त नहीं होऊँगा ।
लाख तुम मुझे चोर-ठग कहो
लाख तुम मुझे लूटेरा समझो
और लाख तुम मुझे व्यभिचारी बुलाओ
मैं लक्ष्यहीन नहीं होऊँगा ।
लाख तुम मुझे चोर-ठग कहो
लाख तुम मुझे लूटेरा समझो
और लाख तुम मुझे व्यभिचारी बुलाओ
मैं लक्ष्यहीन नहीं होऊँगा ।
खूब तुम मेरा गला दबाओ
खूब तुम मेरे ऊपर लात चलाओ
और खूब तुम मुझे मारो
मैं सब स्वीकार करूंगा ।
खूब तुम मेरी कमीज़ फाड़ो
खूब तुम मेरे बाल नोंचो
और खूब तुम मेरे मुख पर कालिख
पोतो
मैं और नज़दीक खड़ा हो जाऊंगा ।
खूब तुम मेरे ऊपर चीत्कार करो
खूब तुम मेरा तिरस्कार करो
और खूब तुम मुझे अभिशप्त करो
मैं सब सहन कर लूँगा ।
खूब तुम मुझे अविश्वासी कहो
खूब तुम मुझे बेईमान कहो
और खूब तुम मुझे पागल-शैतान कहो
मैं सब भूल जाऊंगा ।
खूब तुम मुझे भगोड़ा कहो
खूब तुम मुझे स्वार्थी कहो
और खूब तुम मुझे ढोंगी कहो
मैं ऐसा ही प्रतीत होऊंगा ।
खूब तुम मुझे आतंकी कहो
खूब तुम मुझे देशद्रोही कहो
और खूब तुम मुझे भ्रष्टाचारी कहो
मैं सब पचा जाऊंगा ।
खूब तुम मुझे आग लगाओ
खूब तुम मुझे पानी में डूबाओ
और खूब तुम मेरे ऊपर गँड़ासे चलाओ
मैं नहीं विमुख होऊंगा ।
खूब तुम मुझे गोलियों से भून डालो
खूब तुम मेरी बोटी-बोटी नोच डालो
मुझे खौलते झील में फेंक डालो
चाहे हिमालय की चोटी से गिरा डालो
चाहे हिमालय की चोटी से गिरा डालो
'मैं' अविच्छिन्न रहूँगा , ‘मैं’ नहीं मरूँगा
।
क्योंकि मैं ऐसा ही हूँ ।
मैं अजर-अमर अविनाशी हूँ ।
लोग मुझे नहीं समझ पाते हैं ।
ये गालियां , ये अपमान और ये मार
ये दुत्कार ,ये उलाहने और ये
तिरस्कार
मुझे नहीं डिगाते
मुझे नहीं सताते
मुझे नहीं मालूम 'तुम' ऐसा करते हो
या तुम्हारी आत्मा करती है ?
जब मुझे यह पता हो जाएगा
तो उस दिन यह फैसले की घड़ी
होगी
क्योंकि मेरी ड्यूटी उस दिन
सुनने सहने खाने – पीने की
पूरी हो जाएगी ।
मैं नूतन वस्त्र धारण करने
चला जाऊंगा ।
मैं एक दिन चला जाऊंगा सदा के लिए उस
पार
जहाँ बसता है परमात्मा निराकार ।
अमर नाथ ठाकुर , 11 जून , 2014 , कोलकाता ।