Friday, 26 September 2014

आसक्ति रहित कर्म : पुलिस विभाग

आसक्ति रहित कर्म : पुलिस विभाग 

कानून-व्यवस्था की सारी जिम्मेवारियों में  लिप्त रहकर अलिप्त रह लेना श्री मत भगवद गीता के कर्म योग के आसक्ति रहित कर्म की शिक्षा का अनुपम उदाहरण पेश करने वाली ये पुलिस विभाग भी कम रोचक नहीं । अकेले में भी बैठकर आप याद कर लें और आनंद लें । लेकिन यदि आप पुलिस से सम्बन्धित संस्मरण का हिस्सा हों तो फिर याद कर आप रो भी लें हँस भी लें , दोनों मज़े साथ – साथ ।
  पुलिस पर चुटकुलों की भरमार है । ये चुटकुले कुछ न कुछ तो इस विभाग की चारित्रिक विशेषताओं को निश्चित रूप से ही परिभाषित करते हैं । पुलिसिंग के गिरते स्तर हमें सोचने को विवश करते हैं किसी क्रांतिकारी परिवर्तन की जरूरत की। प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी महाशय से हम इस बारे में बेकरारी से कुछ आशा करते हैं ।
        आज हमने पुलिस का टॉपिक चुना है और तो  फिर इस एक चुटकुले को याद कर  पुलिस की कहानी शुरू करते हैं जिसमें आपने सुना होगा कि भारतीय पुलिस ने , अमेरिकी पुलिस  के इस दावे पर कि डाके कि घटना के कुछ ही घंटे में वह सुराग हासिल कर क्रिमिनल  को पकड़ने में समर्थ होते हैं , कहा कि यह कौन सी बड़ी बात है , डाके की घटना का तो उन्हें पहले से पता होता है । चुटकुले का आत्म भाव तो सिर्फ एक नमूना है जो हमारी पूरी पुलिस व्यवस्था का पोल खोल कर रख देती है । और इसमें एक कटु - सत्यता है जिसे हम किसी से छिपा नहीं सकते ।
यहाँ आज हम कुछ सच्ची घटनाओं का ही जिक्र करेंगे जो मज़ेदार होने के साथ – साथ हमारी पुलिस - तंत्र व्यवस्था की पोल खोल देने में समर्थ हैं । अपने कुछ ऑफिस मित्र की भाषा में शुरू करते हैं .....
2004 की घटना है । गर्मी की छुट्टियों में जब बच्चों के स्कूल बंद थे, अपने  परिवार और मित्र के परिवार के साथ  हमलोग भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने पुरी गये हुए थे । सुबह-सुबह मंदिर के मुख्य-द्वार पर नियमानुसार हम लोगों ने अपना-अपना मोबाइल ऑफ कर  फोन रख दिया । सिम का दुरूपयोग न हो इसलिए निकालकर अपने पर्स में रख लिया । भीड़ थी । धक्का-मुक्की  वहाँ आम बात होती है , फिर भी दर्शन तो हो ही जाते हैं । भगवान जगन्नाथ के दर्शनों से अविभूत हो शांत-चित्त जैसे ही निकला , हाथ अनायास ही पीछे वाले पॉकेट पर चला गया । कुछ सूना-सूना – सा , खाली - खाली – सा  , विचित्र - सा लगा । और फिर तो मेरे होश उड़ गये । मेरा पर्स गायब था । पॉकेट मार ली गई थी । अब क्या करें ? सब कुछ तो पर्स में ही था । तीन क्रेडिट कार्ड , दो डेबिट कार्ड , दो-दो मोबाइलों के दो सिम कार्ड , ड्राइविंग लाइसेन्स , गाड़ी का स्मार्ट कार्ड , परिचय –पत्र और रुपये । कुछ देर के लिए तो दिमाग चकरा गया । गर्मी तो थी किन्तु इतनी नहीं कि पसीना आय , समुद्र की तरफ जाने वाली हवा तेज़ थी । मैं किन्तु पूरा का पूरा भींग गया था । मैं वहीं बैठ गया । मित्र ने मुझे उठाया । ढाढ़स बँधाया । ड्यूप्लिकेट लाइसेंस , स्मार्ट – कार्ड , नये सिम कार्ड इत्यादि के लिए तो पुलिस रिपोर्ट लिखाना जरूरी था । सिम के दुरूपयोग के इल्ज़ाम से बचने के लिए तो और भी जरूरी था । पंडे से लोकेशन  पूछा और पुलिस स्टेशन की तरफ हमलोग चले ।
थाने के अहाते में घुसा । एक पुलिस एक कोने में तीन चार लोगों से बातचीत कर रही थी । दूसरे कोने में भी कुछ लोगों से एक की बात चल रही थी । बात क्या वे लोग फुस फुसा रहे थे । गेट के बाहर तो कुछ तीन – चार की चहल कदमी चल रही थी । ओसी के कक्ष में मैं और मेरा मित्र दाखिल हो चुके थे । वहाँ और कोई नहीं था । दस मिनट बैठा रहा किसी ने कोई खोज खबर नहीं ली । कई बार बाहर झाँका जो कोई अंदर आय और हम अपनी रिपोर्ट लिखावें । क्या करें क्या न करें के उधेड़ – बुन के बीच में ही एक पुलिस वाले भाई साहब दाखिल हुए । शायद उन्होंने उड़िया में कुछ कहा हो , हमने हिन्दी में अपनी व्यथा कहनी शुरू की , मेरा पर्स ....... कार्ड ....... सिम , परिचय – पत्र  सब के सब गायब ...... पॉकेट कट गई .... । बड़े ही अन्यमनस्क ढंग से उन्हों ने बातें सुनी । उनके चेहरे का भाव तो बिलकुल ही नहीं बता पा रहा था कि उन्हों ने कुछ रुचि भी ली । ये भाई साहब वही थे जो कोने में खड़े होकर तीन – चार लोगों से कुछ फुस फुसा रहे थे  । मैंने थोड़ा उतावलापन दिखाया । मैं चाहता था कि  रिपोर्ट लिखाऊँ , सबूत लूँ और चलता बनूँ । मेरा भरोसा था कि जब चीज़ मिलनी नहीं है तो फिर क्यों कर समय खराब करूँ । मैंने पुलिस वाले भाई साहब से जल्दी करने की प्रार्थना की ।  एक कागज भी मांगा ।  वह तो तुरत नाराज़ हो गया ।
हमें झाड पड़ने लगी , “अपनी पर्स की रखवाली जब नहीं कर सकता तो क्या कर सकता है । कोई तुम अकेले ऐसे थोड़े हो । दिन भर ऐसे – ऐसे ही लोग यहाँ आते रहते हैं । .......  और एक कागज भी नहीं ला सकते हो । अभी बैठो । बड़े बाबू आते हैं वह फैसला करेंगे । पूरी तहक़ीक़ात होगी । तुमको वहाँ चलना होगा स्पॉट पर ।”
मैं तो जल्दी में था । कोणार्क और चिल्का लेक भी देखना था । फिर रात में पूरी के बीच का भी आनंद लेना था । समय कहाँ है ।  भैया जल्दी करवाओ । हम लोग कोलकाता से आए हैं , समय कम है और बहुत जगह घूमना है ” यह कहते हुए हम उठ खड़े हो गये ।
 “चल बैठ, चला कहाँ ?” एक कडक की आवाज आयी , “ चले आते हैं कहाँ – कहाँ से , झूठ – मूठ का बहाना लेकर , अब तो जांच होगी , तुमको स्पॉट पर चलना होगा , तुम लोग पुरी को बदनाम करते हो , देखते हैं कहाँ पॉकेट कटी है ”
धम्म से हम दोनों कुर्सी में समा गये । पुलिस की आँखों ने रंग बदल ली थी । हम दोनों डर गये थे । एक पछतावा – सा हुआ , “ क्यों आ गये , रिपोर्ट लिखवाने । मालूम तो था चीज़ें मिलनी नहीं हैं । लेकिन , नहीं – नहीं , रिपोर्ट तो लिखवानी  ही पड़ेगी । सिम का क्रिमिनल यूस हो सकता है और हम इलज़ाम में फंस सकते हैं ।”
हमारी नज़रें अब कातर थीं । हम अब असहाय से लगने लग गये थे । लेकिन , मित्र था साथ में । कुछ हिम्मत बंधी । मैं ने मित्र से नज़र मिलाई , लेकिन मित्र की आँखों में भी वो रोब नज़र नहीं आया  । चुप चाप नज़र नीची चली गई थी ।
 कई मिनटों तक फिर बैठे रहे । विद्रोही स्वभाव इतना शोषण नहीं बरदाश्त कर सकता । हिम्मत बटोरा और प्रार्थना की , “भैया , जरा जल्दी नहीं करवा सकते । पास में एक भी पैसा नहीं रह गया है कि ......”
“क्यों अब बोलोगे कि पर्स में पैसा भी था । चला गया । घर जाने के टिकट का भी ........ ”
“हाँ तो , वह तो था ही । सब कट गये ।”
पुलिस वाला कुछ बोला नहीं । लेकिन उनकी हरकतों में  कुछ परिवर्तन सा मालूम पड़ने लगा  । उसका तना हुआ बदन थोड़ा ढीला पड़ गया था । जैसे हमारी दीनता पर उसमें कुछ करूणा जग गई हो । मैं ने सोचा , चलो शायद अब अपना काम जल्दी निपट जाय । एक पछतावा भी हुआ , क्यों न हमने अपनी दीनता पहले प्रकट की । अब तक में अपना काम हो भी जाता ।
भैया , खाने तक का भी नहीं रह गया है । अपने दोस्त से उधार लेनी पड़ेगी । पॉकेटमारों ने कहीं का नहीं छोड़ा । सारे के सारे चार हज़ार के करीब मार ले गये ।” मैं ने अपने चेहरे पर पूरी गरीबी बिखेर दी । मैं असहाय - सा दीखने भी लगा था  । माथे के बाल तो पहले से ही बिखरे थे  , मेरे सिर पकड़ने से मेरे फटेहाल अवस्था को यह और बढ़ा गया था ।   मैं ने सोचा , कि अब  मैं कामयाब हो जाऊंगा । वह मुझे कागज भी देगा । और रिपोर्ट लिखाने का सबूत (जी डी  , जनरल डायरी नंबर ) भी । लेकिन वह पुलिस वाला तो  झट से वहाँ से चल दिया । बरामदे पर खड़े दूसरे पुलिस वाले को उड़िया भाषा में कुछ बोला । मैं ने सिर्फ अनुमान लगाया , वह बोल रहा था कि ....... ये तो बता रहा है कि इसके पर्स में चार हज़ार था और सारा का सारा उसने मार लिया है ।
वह दूसरा पुलिस वाला भी  झट से वहाँ से बाहर निकल गया ।
पहले वाले ने पास आकर अब दिलासा दिलाया , “देखो कोशिश करता हूँ । बड़े बाबू आने ही वाले हैं ।”
 कुछ मिनटों तक फिर इंतजार किया । मुझे सिम कार्ड , क्रेडिट तथा डेबिट कार्ड ब्लॉक भी कराने थे । मुझे  अब और  कितना इंतजार करना पड़ेगा ?
गालियों की और थप्पड़ की  आवाज आ रही थी । लेकिन उड़िया में  दूसरा पुलिस वाला शायद यही कह रहा था कि ....... साले झूठ क्यों बोला .... बोला पाँच सौ काटा है ..... और स्साले काटा है चार हज़ार ।........... स्साले हमारे  मातहत में रहता है ...और हमें ही बुद्धू बनाता है ....... गुरु का ही गुरु बनता है .... जेल में ठूंस दूंगा ... सड़ा दूंगा लेकिन छोकरा कह रहा था कि लाकर दे दूंगा सर .... गलती हो गई ... अब नहीं करेंगे .........इस वार माफ कर दीजिये ....
इसके बाद दूसरा पुलिस वाला हाजिर था , मेरा पर्स लेकर , “ क्या यही है ?”
मैं पूरा चौंक गया था । मुझे मेरी  नज़रों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था  । मेरा पर्स मेरे हाथ में था सारे कार्डों सहित , लेकिन  मुद्रा रहित । मेरी खुशी का फिर भी ठिकाना नहीं था । मैं धन्यवाद दे रहा था पुलिस वाले को । शुक्रिया ...शुक्रिया  ....
“स्साला रुपया खा गया ....... कहिए तो स्साले को जेल में ........”
मैंने कहा छोड़िए भाई साहब ....पैसा भी क्या चीज़ है ....सारे इंपोर्टेंट कार्ड्स मिल गये बहुत है । बड़ी परेशानी होती .... मैं खुश था क्योंकि अब किसी से कुछ उधार नहीं  लेना पड़ता क्योंकि मेरा कार्ड अब मेरे पास था । मेरा मोबाइल भी अब चलेगा । गाड़ी के स्मार्ट कार्ड , परिचय पत्र , ड्राइविंग लाइसेन्स अब सब मेरे पास थे ।
पुलिस वाले मुस्कुरा रहे थे । उन्हों ने अपनी विलक्षण प्रतिभा का जो प्रदर्शन किया था । लेकिन कुछ ही क्षणों में मेरा माथा ठनका । क्या पुलिस व्यवस्था है । सारे पॉकेट मार पुलिस वाले के मातहत ही काम करते हैं क्या ? पुलिस वाले पॉकेट मारों से कमीशन पाते हैं , सुना था ।   कुछ पॉकेट मार तो पुलिस वाले से माहवारी पाते हैं , ऐसा भी सुना था ।  सच प्रतीत होती है । दोनों बातें ।
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दूसरी सत्य कथा प्रथम दृष्ट्या  लुटेरों की ईमानदारी और कर्त्तव्य की मिसाल स्थापित करता है । आप सोचते होंगे लुटेरों का क्या कर्त्तव्य ? पुलिसिया दबंगई  की भी  पोल खोलता है । मेरे मित्र के मामा की जुबानी में  ये रही ..........
अभी दो साल ही पुरानी बात है । मैं  सहारनपुर से दिल्ली जा रहा था एक्सप्रेस बस में । शाम हो रही थी । खेतों के बीच से हाइवे पर बस सरपट भागी जा रही थी । सुनसान - सा इलाका था  कुछ किलोमीटर का फासला । दूर आगे  सड़क पर कुछ नौजवान खड़े बस को रूकने का इशारा कर रहे थे । ड्राइवर ने खतरा भाँपा और बस की गति तेज कर दी । लेकिन उन लड़कों ने हवाई फायरिंग कर दी । ड्राइवर डर गया ।  उसने गाड़ी रोक दी । लड़कों ने गाड़ी घेर ली । कुछ बाहर में रहे और कुछ अंदर आ गये । ज्यादातर  लड़के हथियार बंद थे । सांसें रुक गई थीं ।
 “कोई अपनी जगह से उठेगा नहीं । सब नींचे की तरफ नज़र कर लेंगे । यदि किसी ने कोई हरकत की तो माँ कसम ....  गोली मार देंगे ।”  बाहर खड़े एक डाकू लड़के ने एक – दो और फायरिंग कर दी ।
अब सब के सब यात्री गण  काँपने लग गये थे । पर्स , ब्रीफकेस , पौकेटों का तलाशी अभियान जारी था । यात्री स्वयं भी डर के मारे  खोल कर सौंपते जा रहे थे ।  पाइप गन ताने हुए नौजवान गेट पर अपनी हरकतों से सबको डरा रहा था । उनके चेले - चपाटी लूँगी फैलाए सारे रुपये , गहने – जेवर सारे कीमती सामान इकट्ठे करते चले जा रहे थे । कुछ ही मिनटों में अभियान शेष हो चुका था । ड्राइवर संकेत के इंतजार में था कि गाड़ी चलाएं । यात्रियों  की फुस फुसी अब तेज़ हो गई थी । कोई कोई  अपने भाग्य को कोस रहे थे । आज की अशुभ यात्रा के  अपशकुन कारणों को  ढूँढ कर विश्लेषण कर रहे थे । कोई महिला  रो रही थी । कोई कोई यात्री राहत की सांस ले रहा था कि चलो कोई खून – खराबा तो नहीं  हुआ ।
लोग अभी भी इंतजारी में हैं कि कब बस खुले । बीस पच्चीस मिनट बीत चुके थे । शंका बढ़ती जा रही थी । कुछ और अनहोनी की संभावना परिलक्षित हो रही थी । लोग अब चुप चाप थे । कोई फुस फुसी नहीं । सबकी आँखेँ गेट की तरफ लगी थीं । बाहर कुछ ज्यादा ही हलचल थी । बच्चे अपनी कातर नज़रों से अपनी माँ के वक्ष से चिपक गए थे । माँएँ , बहनें अपनी इज्जत आबरू पर खतरे की आशंका से द्रौपदी की भाँति काँप गई थीं । चुस्त तंदुरुस्त  भीम अर्जुन  सरीखे जवान सारे डर के मारे भींगी बिल्ली नजर लगने लगे थे । भीष्म , द्रोण , कृपाचार्य ...... जैसे धुरंधर नजरें नीची कबके कर गए थे ।  मेरे बोलती तो कबकी बंद हो गई थी । मैं अब धृतराष्ट्र की भांति कुछ नहीं देख पा रहा था । चीर हरण के समय की द्रौपदी की कृष्ण से की गई कातर पुकार आज की इस सम्मिलित आह्वान से कई गुना फीकी रही होगी । किन्तु क्या कृष्ण प्रकट होंगे ? सबका ये सामूहिक समर्पण भी कृष्ण को द्रवित नहीं कर पाएगा क्या ? नज़रों के सामने संभावित चीख – पुकार , खून – खराबा  वाले दृश्य जैसे नग्न – नर्तन करने लग गया हो । सारी पब्लिक असहाय , निरूपाय ! मरघटी सन्नाटा सा पसरा हुआ !
इतने में ही वसूलने वाला वह डाकू जवान बस के गेट पर प्रकट होता है लूँगी की पोटली के साथ । उसके प्रविष्ट होने  में एक विशेष लचक थी । वह अब खूंखार नहीं लग रहा था । जैसे कुछ अविश्वसनीय - सा घटने जा रहा हो ।
“सरदार का आदेश है ....”
 “क्या ?” कुछ आवाजें सुनाई दी । नज़रें सारी केन्द्रित हो गई उस जवान के मुख पर ।
यही कि सब कोई ईमानदारी से अपने  रुपये , पर्स , मोबाइल , झुमके , अंगूठियाँ इत्यादि उठाएगा”
कुछ ही मिनटों में सबने अपने – अपने बहुमूल्य सामान बड़ी ईमानदारी और एकाग्रता से ले लिए थे । पूरी शांति फैली हुई थी । अब आगे क्या होगा ? यक्ष प्रश्न की संभावना से कोई इंकार नहीं था । लोग खुश हों या किसी और महाविकट की आशंका से काँपें , कुछ समझ नहीं आ रहा था । सरदार के अगले निर्देश की प्रतीक्षा में फिर एक और सस्पेंस ।
 ड्राइवर इंजन स्टार्ट कर चुका था । जरूर सरदार का निर्देश मिला होगा । लोगों ने राहत की सांस ली । लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है ? बिलकुल ही अविश्वसनीय ।  
  किन्तु अभी तक यह एक पहेली अनसुलझी - सी  सबके सामने थी ।
रुपये , गहने इत्यादि लौटाने वाला वह डाकू जवान बस से उतरने ही वाला था कि मैं ने ही यक्ष प्रश्न उसके सामने दाग दिया , “भैया , ऐसी मेहरबानी क्यों ?”
झट से बोला , “सरदार का आदेश मानना पड़ता है ।”
किन्तु यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं था ।
लेकिन उसने उत्तर आगे बढ़ाया , “अब फिफ्टी – फिफ्टी तो रहा नहीं । पुलिस अब भरोसा नहीं करती हमारे लूटे गए माल के अमाउण्ट के हमारे जुबान पर । फिक्स्ड है दो लाख प्रति डाका । यहाँ तो डेढ़ –पौने दो  लाख  कुल जमा हुआ होगा । बाँकी का अपने जेब से क्यों भरना ? फिर हमलोगों का भी खर्चा ।  कहाँ से इतना घाटा चलेगा ?”
इंजन की आवाज में उस डाकू की आवाज किसी ने सुनी किसी ने नहीं , किन्तु हमने सुनी । लोगों की कातर आंतरिक हार्दिक  पुकार पर यह मेहरबानी कृष्ण के अपराजेय  सुदर्शन की भाँति पुलिस की फिक्स की हुई दो लाख की राशि थी , सरदार की मेहरबानी नहीं । वाह रे जमाना ! चूंकि पब्लिक के सारे रुपये , गहने इत्यादि वापस मिल गए थे , इसलिये पब्लिक खुश थी , डाकू सरदार की भलमनसाहत की भूरि –भूरि प्रशंसा की जा रही थी और पुलिस में तो  शिकायत का सवाल ही नहीं उठता था । वैसे भी पुलिस क्या कर लेती । पुलिस तो ज्यादा ही खुश होती कि उसके द्वारा तय मानक का पूरी तरह अनुसरण हो रहा है । किसको इतना समय भी था । हमलोग अत्याचार , अव्यवस्था सहने के तो खानदानी आदी हैं ।

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अभी कुछ और है जो हमें परोसना है । इसे तीसरी कथा के तौर पर समझिये । मेरे एक और मित्र है जो बस मालिक हैं । भगवान की कृपा से इनके पास कई बस हैं । इनकी ये कहानी नहीं , पुलिस संगठन द्वारा सिर्फ कोलकाता शहर की बस यातायात की भूमि पर बिना खाद – बीज़ की खेती से होने वाली रुपये की उपज का  सिर्फ एक अनुमानित खाका देता है । इससे पूरे देश की अर्थ व्यवस्था पर पुलिस द्वारा चूना पड़ने वाले रकम का अंदाजा लगा सकते हैं । मेरे मित्र का कहना है कि पुलिस द्वारा प्रति दिन प्रति बस एक सौ रुपये वसूला जाता है । इस तरह प्रति बस प्रति महीना तीन हज़ार अथवा प्रति बस प्रति साल छत्तीस हज़ार की उपज देता है । यदि अनुमानित बस संख्या कोलकाता की दस हज़ार हो तो प्रति दिन दस लाख , प्रति महीना तीन करोड़ , प्रति वर्ष छत्तीस करोड़ की वसूली होती है । इस तरह की वसूली के लिए कोलकाता में कई अन औफ़ीसियल बूथ हैं , जहाँ पुलिस के पुलिस एजेंट कच्चे रजिस्टर के साथ मौजूद रहते हैं । ये रुपये कहाँ किस एकाउंट में जाते हैं ? नहीं जा सकते हैं न । इसलिये प्रतिदिन इन रुपयों का बंटवारा होता है ।
ये वसूली टैक्सियों , ट्रकों, ठेलों , टेम्पो , लाइसेंसों  इत्यादि से अलग हैं । सड़क - यातायात - पुलिस में फील्ड पोस्टिंग के लिए इसलिए पुलिस वाले स्थान और समय के हिसाब से अच्छी ख़ासी रकम चुकाकर अपनी पोस्टिंग लेते हैं और कई - कई गुने उगाहते हैं । क्या होगा यदि बस वाले ये पुलिसिया रंगदारी नहीं जमा करेंगे ? केसों का अंबार लग जाएगा । बस मालिक इन्हें चुकाने - निपटाने  में अपने बस को बेचने को विवश हो जाएंगे ।
बस अब और कभी , जब किसी अन्य विषय पर बात करेंगे । हम अब और आगे सुना भी नहीं सकते न क्योंकि सरदारका ऐसा ही आदेश है ।

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मेरा इरादा किसी को नाराज़ करने का नहीं । किसी विभाग को बदनाम करने का नहीं । अपने देश में ऐसा कौन सा विभाग है जो भ्रष्ट तरीकों से सराबोर न हो ।  लेकिन फिर भी यदि किसी को दुःख पहुंचे तो विना शर्त्त माफी माँगता हूँ ।
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अमर नाथ ठाकुर , 26 सितंबर , 2014 , कोलकाता । 




कैसे-कैसे लोग 

एक बार ट्रेन में आ रहे थे । डिब्बे के  दूर वाले कोने से आवाज आ रही थी । एक साहब किसी से मोबाइल पर बात कर रहे थे .... घर जल्दी आ जाना ..... गाड़ी भिजवा दी है हमने ...... प्लेटफॉर्म न॰ 8-9 (हावड़ा) के बीच में देख लेना नीले रंग की मरसीडीज़ होगी  WB 06 ......... समझ गया न ..... ये साहब इतनी ज़ोर – ज़ोर से बोल रहे थे कि पूरे डिब्बे में सबको सुनाई दे रहा था ।  वो साहब मन ही मन प्रफुल्लित हो रहे थे अपने स्टेटस का डंका पीट कर । और फिर मुझे अपने बेटे की बात याद आ रही थी जब मैं ज़ोर-ज़ोर से फोन पर बातें करता था तो यह अन्य लोगों के लिए कितनी असहज स्थिति उत्पन्न करता था और वह अनायास चिड़चिड़ा कर कह उठता था कि ...... पापा तुम्हें फोन पर बात पहुंचाने  की  क्या जरूरत है क्योंकि तुम्हारी आवाज इतनी बोल्ड है कि यह तो ऐसे ही कोने-कोने तक पहुँच जाती है ......हमें फिर ख्याल आता था कि फोन पर बात करते हुए आदमी सब कुछ भूल जाता है लेकिन अपनी चारित्रिक विशेषताएँ नहीं भूलता । इसलिए तो कहता हूँ  ये मोबाइल फोन  भी न , क्या अजूबा है । कैसों – कैसों की पोल खोल दे । बात करने वाले का चरित्र एक झटके में समझ में आ जाय । जो आप उसके सान्निध्य में रहकर उसे न पहचान सकें , उनकी बातों को सुनकर पहचान जाएँ ।

                                    ***

हमारे एक वरिष्ठ सहयोगी थे जो कुछ दिनों पहले यहीं कलकत्ते में ही हुआ करते थे । साथ-साथ उठना बैठना कोई ज्यादा न था । हम उनके बारे में ज्यादा जानते न थे । उस दिन उनसे मोबाइल पर बातचीत हुई और हम उन्हें बढ़िया से जान गए । आइये बताते है उनसे हुई बातचीत की एक बानगी 

मैं ने डायल किया उनका नंबर .....9434...............घंटी बजने लगी .... ट्रिङ्ग-ट्रिङ्ग ........... और साथ में एक उद्घोषणा भी होने लगी ........ बी एस एन एल मोबाइल भालो कवरेज दाय ...............म्यूज़िक के  साथ ....... फिर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ ... उधर से आवाज आयी 

हाँ , सर जी नमस्कार !

हाँ सर नमस्कार !

कैसे हैं सर जी ?’

अच्छे हैं । धन्यवाद ! आप कैसे हैं  सर ?’

ठीक हूँ , आपकी कृपा है । कहिए , कैसे याद किया ?’

कोई खास नहीं । आपको यहाँ नहीं पाया  तो पूछ लिया बस , आप कहाँ हैं ?’

मैं औफिस नहीं आया हूँ आज ।

तो कहाँ हैं ?’

कलकत्ते में नहीं हूँ सर जी ।

तो कहाँ हैं , सर ?’

कोलकाता से बाहर हूँ ।

सो तो समझ गया । किन्तु आप कहाँ गए  हैं, सर ?’

कोलकाता से दूर हूँ ।

मैं भी उनको छोड़ने वाला नहीं था । मैंने भी ठान लिया था उनको पूछ कर ही छोडूंगा । मैंने लगातार अपना प्रश्न जारी रखा । 
मैंने फिर पूछा , ‘सर आप कोलकाता से कितनी दूर हूँ ?’

कोई खास दूर नहीं , सर जी ।

उनके सरकारी ज्यूरिसडिक्सन का हमें पता था । इसलिए हमने आखिर अपना अनुमान बता दिया ।

सर , आप शायद खड़गपुर में हैं ?’

नहीं किन्तु पास ही ।

तो फिर कहाँ , कौन सी जगह है ?’

आज लौट जाएंगे , चिंता की  कोई बात नहीं ।

लेकिन आप हैं कहाँ ?’ फिर क्षण भर का एक सन्नाटा । 

आवाज गाड़ियों के हॉर्न की , कुछ कनिष्ठ अधिकारियों की उनकी आपस की बातचीत की कुछ अस्पष्ट  – सी सुनाई दे रही थी । मेरा अनुमान अब ऐसा लग रहा था कि हो न हो ये साहब खड़गपुर के आस-पास ही जरूर हो सकते हैं ।

मैं ने फिर प्रश्न दागा, सर क्या आप बांकुड़ा में हैं ?’

नहीं तो ।

तो फिर कहाँ हैं ?’

जैसे कि हम उनकी पहेली का हल ढूंढ रहे हों , और वो हमको भरपूर मौका दे रहे हों कि लो अब गेस करो और देखते हैं कि कितनी जल्दी हम उनकी पहेली का जवाब दे पाते हैं । मैं अब जरा भी नहीं झुंझला रहा था । मैं अब और दृढ़ होता जा रहा था । आज अब मैं इनसे उगलवा कर ही रहूँगा कि आखिर ये हैं कहाँ , मैं ने पूरी तरह मन में ये बात ठान ली थी ।

तो आसनसोल में होंगे ?’

नहीं , सर जी ।

अच्छा वहाँ भी नहीं तो फिर कहाँ हैं ?’

साइट इंसपेक्सन में आया था ।

सो तो समझ में आ रहा है सर । लेकिन आप कहाँ के साइट के इंसपेक्सन में आए हैं ?’

आज ही  लौट रहा हूँ । भेंट होगी शाम में ।

लेकिन आप गए कहाँ हैं सर ? क्या दुर्गापुर में हैं ?’

नहीं सर जी । फिर उसी  कोमलता से उन्होंने  जवाब दिया । 

मैं बार-बार उन्हें पूछता चला जा रहा था , फिर भी उनकी आवाज में कोई झुंझलाहट नहीं ।
लेकिन हमें अब तलक शांति नहीं मिली थी , मैं उतावला भी हो रहा था । मेरी उत्कंठा अब तीव्र होती जा रही थी । आखिर ये बात क्या है जो ये साहब नहीं बताना चाहते । क्या संशय है ? वह ऐसी कौन सी सीक्रेट है जो वह प्रकट नहीं करना चाहते हैं ।

मेरी उत्कंठा और मेरा उतावलापन अब मेरी  झुंझलाहट में तब्दील होती जा रही थी ।
लेकिन मैं कर क्या सकता था । जानना मुझे था , बताना उन्हें था ।

मैं थक-हार गया था । प्रोबाबिलिटी का सवाल हल जब करता था तो कई – कई बार उत्तर नहीं  मिल पाता था या गलत उत्तर पाता था । हल करने का तरीका बदलता था । दूसरी बार, तीसरी बार , फिर तो सही निशाना बैठता था, उत्तर पा जाता था  और खुश हो जाता था । ऐसा ही पर्म्यूटेशन-कंबीनेशन के सवालों का होता था जिनके उत्तर देखकर सवाल बनाने का सही तरीका ढूँढता था  । लेकिन यहाँ तो उत्तर-माला ही नहीं है जो अपना तरीका ठीक करूँ ।  आज जीवन में पहली बार ऐसा लग रहा था कि प्रोबाबिलिटी या परम्यूटेशन – कंबीनेशन  से भी कोई कठिन  प्रश्न हाथ आ गया हो और जिसका उत्तर हमें नहीं मिल सकता । यहाँ मैथ की कुंजी की तरह कुछ हो सकता है क्या ? लेकिन ऐसा यहाँ जरूरत ही क्या है , हमें कोई परीक्षा थोड़े देनी है , ऐसा हमने कुछ क्षणों के लिये सोचा  । लेकिन मन मानने के लिये तैयार नहीं था । जीवन में  ऐसी बड़ी हार पहले कभी नहीं  मिली थी । एक अदना सी बात , और वो भी पूछ नहीं पा रहे हैं । जबकी वो आदमी साक्षात मोबाइल  पर उपलब्ध हैं । वो चाहते तो मोबाइल काट भी दे सकते थे। दो बार हॅलो-हलू बोलते , फिर कुछ घिघियाते कि आवाज कट रही है , बी एस एन एल को दो गालियां दे देते और फिर जैसा होता है, जैसा कि लोग करते हैं वह भी फोन डिसकनेक्ट कर देते । हम भी समझ जाते कि साहब नहीं बताना चाह रहे हैं । कुछ सीक्रेट मिशन है । लेकिन ऐसा कुछ भी तो यहाँ नहीं हो रहा है । अब क्या करूँ , फोन जारी रखूँ यहाँ चोर पुलिस वाली स्थिति भी तो नहीं कि पीट-पीट कर या धमका-धमका कर बात पता कर लें ।  या हम ही हलू-हलू वाला फार्मूला लगा कर फोन काट डालें । या कोई और टॉपिक पर बात को ले आयें । अथवा सर गलती हो गई , फिर ऐसी गलती  नहीं  करेंगे कि आप से पूछेंगे कि आप कहाँ हैं आप सीधे - सीधे बता दें यदि बताना चाहें अथवा हम फोन रखते हैं । कुछ ही क्षणों में ये सारे सवाल और समाधान हमारे मन में कौंध गए । लेकिन हमारी भलमनसाहत ने हमें ऐसा कुछ उट-पटांग करने से रोक दिया । ये एक वरिष्ठ सहयोगी का अपमान होता । और ये हमारी आदत में  नहीं ।  और फिर हमने फिर बिना किसी देरी के अगला सवाल दाग दिया......

तब तो सर कौन सी जगह बची , आप वर्द्धमान में होंगे ?’

नहीं सर जी , हम तो इधर आए थे ।

किधर ?’

इधर ही 

छोड़िए सर जी ’ मेरे स्वर में आक्रोश की बू थी । 

क्योंकि अब मैं परेशान हो गया था । मेरा धैर्य जवाब दे गया था । इतने में कुछ सुनाई दिया.... 

इधर हलदिया की तरफ ।’ 

कुछ अप्रत्याशित सा लगा । अविश्वसनीय । और अब बेमज़ा सा भी था यह । 

मैंने फिर भी कहा ,   'सर धन्यवाद जो आपने आखिर सोलह प्रश्नों के उपरांत कुछ कहा । अच्छा सर शाम में मिलते हैं । मैं ने तुरत टरकाया क्योंकि यह यकायक असह्य लगने लग गया था । 

हाँ सर जी ।

नमस्कार।

नमस्कार ।

मैंने अपना कॉलर दोनों हाथों से पकड़कर  हिलाया विजयी मुद्रा में । मैं अब अपने इन वरिष्ठ सहयोगी के चरित्र को जान गया था । भविष्य में उनको फिर कभी कुशल-मंगल के अलावा कोई प्रश्न उनको फोन  पर या ऐसे भी नहीं पूछा ।

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एक दूसरे साहब हैं जिनके पास जाकर आपको कुछ पूछना ही नहीं पड़ेगा । ये टेपरिकोर्डर हैं । शुरू हो जाते है तो फिर पूरी कर  ही दम लेते हैं साथ-साथ प्रश्न और उत्तर दोनों दुहरा कर , क्योंकि उनको मालूम है कि उनके फोन में स्पीकर नहीं है जो ये हमें दूसरे सिरे वाले की बात सुना सकें । ये भी लंबी –लंबी बात करते  हैं पर ये फोन पर बातचीत के समय पूरा ख्याल रखते हैं कि सामने वाला बोर न हों । देखिये एक बानगी । हम उनके कक्ष में पहुँचते  हैं और उनका फोन बज़ उठता है ।

नमस्कार कदम साहब

..................

कहाँ हैं आज - कल ?’

‘……………..’

मुंबई में ।  वहाँ मेरे भाई साहब भी रहते हैं ।

‘………………….’
उनका पता न, लीजिये अभी दिये देता हूँ ... ¾ सांता क्रूज ............. इत्यादि-इत्यादि .... 

‘…………..’

धन्यवाद की क्या बात है ।

‘………………….’

भाभी जी ? ठीक हैं आपकी भाभी जी ।

‘……………………’

शुगर और प्रेशर, वो तो आप जानते हैं नॉर्मल  हो नहीं सकता ।

‘……………………..’

दवाइयाँ ? वो तो चलती ही रहती है लेकिन ....

‘……………’

परहेज ? वही तो नहीं हो सकता न 

‘………………..’

खाने-पीने का न , वो तो आप जानते ही होंगे । कोई समय-वमय का तो वह पालन करती नहीं । और फिर मिठाई इत्यादि तो चल ही जाती है । 

‘……………’

कार ? कैसे नहीं खरीदेंगे । इतना दवाव था बच्चों का न कि खरीदना ही पड़ा । 

‘……………………..’

माँ वो तो चली गई गाँव उसी समय जब आप यहाँ ही थे । कदम साहेब , आप भी इन सब बातों के भुक्त-भोगी हैं । जानते हैं  न , आज कल की बहू अपनी  सास से नहीं बना कर रख पाती है । सास बहू की आपस में नहीं पटी, रोज़-रोज़ का झगड़ा ..... अब क्या बताऊँ , छोड़िए इन सब बातों को 

‘…………………’

अगले महीने में । ठीक है आइये फिर विस्तार से बातें होंगी । 

‘…………………..’

नमस्कार 

तो आपको पता चल गया पूरी तरह कि गुप्ता जी की बात कदम साहेब से हो रही थी जो मुंबई गए हुए थे । गुप्ता जी के बड़े भाई भी मुंबई में रहते हैं सांता क्रूज इलाके में जिनका पता कदम साहेब को चाहिए था । मिसेज गुप्ता शुगर और प्रेशर की पेशेंट हैं जो कभी परहेज नहीं  करती हैं समय से दवा भी नहीं खाती हैं । बच्चों के दवाव में उन्होने कार खरीद ली । गुप्ता जी की माँ बहू मिसेज गुप्ता से झगड़ कर गाँव वापस चली गई । अगले महीने में जब कदम साहब कोलकाता आएंगे तो गुप्ता जी से उनकी भरपूर बातें होंगी । बताइये अब क्या शेष रहा । आप को भी पता चल गया न पूरा । क्या आप बोर हुए ? तो गुप्ता जी ऐसे ही खुले हुए हैं । लंबी-लंबी फेंकते हैं सही किन्तु दिल के साफ हैं और सब कुछ खोल कर रख भी देते हैं । 

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लेकिन अब इन चटर्जी साहेब की सुनिए । ये उस कदर के इंसान हैं कि आप समझ ही न पाएंगे कि ये भाई से , पत्नी से या बालक से या मित्र से या औफिस के किसी स्टाफ से बात कर रहे हैं । क्या बात हो रही है आप तो इसका अनुमान ही नहीं  लगा पाएंगे ।  जब कभी भी आप इनके कमरे में होंगे और इनका फोन आ जाय तो आप उनकी रहस्यमयी बात से बोर हो जाएंगे और आप को अपने उपर ग्लानि आ जाएगी । आप पछतावा करेंगे कि शायद उनके फोन के वक्त उनके कमरे में रहकर आप ने कोई भारी गलती कर ली , पाप कर लिया । सुन ही लीजिए  जरा ।

हॅलो , चटर्जी हियर 

‘…………….’

आपको भी 

‘…………’

अभी फोन पर ? कैसे होगा ?’

‘…………………’

अच्छा बोलो , फिर से बोलो 

‘……………..’

वो नहीं 

‘……………………..’

वो भी नहीं 

‘……………….’

हाँ , ये वाला 

‘……………..’

नहीं –नहीं , ये नहीं । 

‘……………….’ 
  
नहीं , उसके बाद वाला । 

‘……………………’

नहीं-नहीं , उसके भी बाद वाला ।

‘………………….’

हाँ , बिलकुल ठीक , यही वाला । 

‘………………..’

हम हैं , अभी रहेंगे वहीं पर । 

‘…………………….’

नहीं , सुबह जहां बोला था 

‘…………’

ओ के 

कुछ अनुमान लगा । बिलकुल नहीं लगा होगा । लेकिन हम हैं कि इस पर लगातार रिसर्च किए जा रहे हैं । हम पता लगा कर रहेंगे कि चटर्जी साहब किससे बातें कर रहे थे , किस चीज़ के लिए बातें कर रहे थे और इन्होंने क्या निर्णय सुनाया था । कुछ दिनों बाद चटर्जी साहब के पास नई नोकिया मोबाइल दिखा और यकायक हमने कड़ी सजाना जोड़ना शुरू किया । सेन साहब इनके बड़े करीबी हुआ करते हैं । शायद ये सेन साहब से बात कर रहे होंगे उस दिन । सुबह में उनसे किसी मोबाइल खरीदने की चर्चा चली होगी । जब चटर्जी साहब के लिए मोबाइल खरीदने के लिए  दुकान में पहुँचते हैं तो शायद सैमसंग , सोनी , मोटोरोला और नोकिया के मोडेलों की चर्चा करते हैं । चौथे क्रम पर सेन साहब ने नोकिया का नाम पुकारा होगा । चटर्जी साहब ने अपनी पसंद नोकिया बताई । लेकिन उनके सामने में हम बैठे हुए थे , हमसे छुपाते हुए उन्होने उसके बाद , उसके बाद ......... कह कर नोकिया नाम सेन साहब से पुकारबाया जो फोन पर दूसरी तरफ थे  और अपनी हामी भर दी । अपनी किसी खास स्थान पर उपलब्धता के बारे में भी उन्होने संकेतात्मक भाषा में सेन साहब को सब खुछ बता दिया । जो अपने को इस तरह की रहस्यमयी दुनिया में रखते हों आप उनके पास अत्यंत ही असहज पाएंगे । कभी इच्छा ही नहीं होगी कि आप उनके पास उठना बैठना करें । लेकिन लाचारी है चटर्जी साहब हमारे बॉस हैं । हमें दिन भर की रिपोर्ट लेकर प्रतिदिन उनके पास जाना होता है । यदि हमें विलंब हो तो उनकी घंटी बज़ जाती है और हम जाते ही हैं उनके कक्ष में ।

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एक और सुनाता हूँ यदि समय हो आपके पास । एक मित्र हैं जो अपनी पत्नी को सर कहकर जवाब देते हैं । एक बार इन साहब से भी पाला पड़ा । फोन की घंटी बज़ी । इन्होंने  तुरंत जबाव दिया .... सर , कमरे में हूँ ठाकुर साहब भी हैं (मेरा नाम बोलकर उन्होने सामने वाले को यह संदेश दे दिया कि और कोई गंभीर बात जारी नहीं रखी जा सकती )........ आ रहा हूँ सर .... फिर यकायक फोन कट गई । और ये साहब निकले झट से कमरे से । हमने समझा कि ये बॉस से मिलने जा रहे हैं । हम भी बॉस के कक्ष की तरफ चले । इन्होंने रास्ता बदल लिया ...... हमें कमरे के बाहर करके ये साहब पुनः कमरे में आ गए ..... फिर इन्होंने कुछ घुप - चुप  बात की और कक्ष से बाहर आकर हमसे माफी मांगकर दूसरी दिशा में चले गए ..... हम इस बेतुकी चाल - चलन को समझ नहीं पाए .... महीनों बाद हमने खूब खोज बीन के बाद पता किया कि इनकी पत्नी ही इनकी सर हैं । लेकिन आज फिर भी यह मित्र उतना बुरा नहीं लगा है । क्योंकि आज कुछ सीखने को मिला है । दुनियादारी सीखी हमने उनसे । बस आज फोन की बात यहीं समाप्त करते हैं फिर कभी किसी और टॉपिक पर चर्चा करेंगे । तब तक के लिए विदा क्योंकि कहीं सर’ न नाराज़ हो जाय ।

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( किसी के नाम या जगह के नाम का मिल जाना महज संयोग होगा मेरा किसी को दुःख पहुंचाने का नाम मात्र का भी इरादा नहीं )  


  अमर नाथ ठाकुर 30 अगस्त 2014 कोलकाता । 








                                                  

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...