-1-
ऊंची , मोटी , रंगीन , दीवारों वाले घर के
अंदर की बातें ।
एँड़ियों पर तनकर , उचक – उचक कर ,
खिड़कियों और दरवाजों की
खांचों से झाँककर ,
फुस – फुसी ध्वनि को सुनकर ,
धुंधले दृश्य को देखकर ,
बिखरी कड़ियों को सजाकर ,
लिख डालते थे शोध ।
कल्पना , अंदाज़ , संभावना ,
तर्क से परिपूर्ण बोध ।
रहस्य – रोमांच के आवरण से
जैसे बीज़ से अंकुरित पौध ।
-2-
तेज़ हवा , वारिश और तूफान
क्रांतिकारी भूकम्प से हुई जब
कम्पायमान
कबके उतर गए रंग बेजान ।
निकलने लगीं पपड़ियाँ ।
दीखने लगी खुरदरी ईंटें
, दर्जनों
सूराखें
और चौड़ी – चौड़ी दरारों की धारियाँ
।
ढहते कोने – किनारे ।
और स्पष्ट होते जाते घर के जीवंत –दृश्य
के नज़ारे ।
नज़र आते बंदर – बाँट , लूट – खसोट
और भूत - भविष्य की योजना सारे
– के - सारे ।
आ जाती है जब ट्रांसपेरेंसी
होता रहस्य का पर्दाफाश ।
नज़र आने लगती है दिशाएँ ,
पाताल और आकाश ।
अमर नाथ ठाकुर , 29.10.2013 , कोलकाता ।