Sunday, 20 December 2015

अंधेर नगरी चौपट राजा

-1-

बोरा भर पानी हो
और  चुल्लू भर अनाज
तो फिर क्या कहने

दाना-दाना चूता हो पानी
और बूँद-बूँद रिसता हो अनाज
तो भी फिर क्या कहने

क्विंटल  भर लोगों  का जमावड़ा हो
और बीघा भर की हो सूझ - बूझ  की बातें 
तो भी  फिर क्या कहने

आदमी की मौत से आतंकित कुत्ता भागे
तलवा जब जीभ को चाटे
डोरी जब फन्दे में  लटके
स्वान-मुख में रोटी देख आदमी का जीभ लपलपाए
तो भी फिर क्या कहने

चोर करने लगे  जब  पहरेदारी
और पुलिस रखे डाका-लूट जारी
और तब भी शायद किन्तु संभवतः कुछ-कुछ  सीधा-सीधा- सा ही लागे
तो फिर क्या होता है अंधेर नगरी और चौपट राजा ?
जब  बिके टके सेर भाजी और टके सेर खाजा ?

-2-

लँगड़ा दौड़-कूद की प्रतियोगिता जीते
अँधा राई और सरसों बीन अलग करे 
दल- दल भूमि  पर लोग निर्भीक चलें
नदी-जल सतह पर हर कोई करे कदम ताल
पाताल की ऊँचाई - से वादे  हों
आकाश जैसी गहराई- सी नैतिकता की मिशाल
तारे जमीन पर लोट-पोट करे
चाँद और सूरज जब  दीपक ढूंढे
अन्धकार की वाह - वाही में ताली बजे
प्रकाश की हाज़िरी पर जब सन्नाटा  सजे
राम- राज्य के मज़े भाई या लोकतन्त्र के मज़े ?

अँधेर नगरी चौपट राजा 
टके सेर भाजी टके सेर खाजा ।

अमर नाथ ठाकुर , 19 दिसम्बर , 2015 , कोलकाता ।

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...