Sunday, 4 December 2016

सरकारी नौकरी का सच



 सरकारी नौकरी में प्रवेश
 झील में डूबने - उपलाने - तैरने- सी इस जिंदगी की शुरुआत ।
झील का मीठा  पानी
आनन्द का अथाह स्रोत ।
डूबने में आनन्द
उपलाने में आनन्द
पीने में आनन्द
कुल्ला करने में भी आनन्द ।
ओर- छोर से रहित इस झील में
नौका में बैठकर विहार का भी आनन्द ।

 एक रेखा उसी समय खींची हुई थी
इस आनन्द के सीमा की रेखा ।
यह रेखा क्या थी झील के पानी की ऊपरी सतह थी
यही विभाजक रेखा या विभाजक सतह थी ।
 नीचे भ्रष्टाचार , और ऊपर सदाचार ?

 सदाचार के क्षेत्र में
अथवा झील में झील के ऊपर रहकर जीना
है एक मुश्किल काम ।
 सदाचारी की ऐसी जिंदगी कि
 हमेशा पानी में रहना है
तो हमेशा तैरते ही रहना है ।
दृढ इच्छा शक्ति से तय करना है
कि सिर ऊपर रखना है ।

यदि हमेशा भ्रष्टाचार में डूबे रहना है --
तो जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ
और मोतियाँ बटोरते रहिये
आनन्द मनाते रहिये ।

कुछ तो डूबते - उपलाते  हैं इस आनन्द झील में ।
कुछ भ्रष्टाचार और सदाचार के बीच के क्षेत्र में ,
और कुछ सदाचार की शुद्ध प्राण वायु का साँस भी लेते हुए
भ्रष्टाचार के पानी में आकण्ठ आजीवन होते हुए
सदाचार के जामे में हैं ।
और वे लोग कर भी क्या सकते हैं  !

कुछ को फिर एक नौका मिल जाती है
नौका विहार के लिये नहीं
यह होती है दृढ़ निश्चय की एक नौका
जिसमें चढ़ कर वे झील का किनारा खोज लेते हैं
और फिर वे जमीन पर होते हैं ,
जहाँ सिर्फ प्राण वायु की साँस उपलब्ध होती है
सिर्फ सदाचार की गरिमा होती है
पैरों में भ्रष्टाचार के पानी या कीचड़ तक से कोई सरोकार नहीं ,
और वे विशाल भूखण्ड पर पैदल विचरण का बेख़ौफ़ मौका पाते हैं ।
ये लीक से हट कर पक्का सदाचारी होते हैं
इन्हें साँस लेने के लिये सारा जहाँ  मिला होता है ।

वे भी जी लेते हैं सदाचारी की तरह ,
वे जो न तैरना जानते हैं या
जो न तैरना चाहते हैं ,
और जिसे न नौका मिलती है  ।
घुट-घुट कर ये भी नौकरी कर लेते हैं  ।
खामख्वाह उनके ऊपर सन्देह नहीं कर सकते ।

झील का पानी
झील का आनन्द
और सरकारी नौकरी का सच ।



अमर नाथ ठाकुर ,मेरठ , 1 दिसंबर , 2016 ।



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