होली तूँ कितनी भोली
लाल पीली हरी नीली
पत्नी हो या कि शाली
या हो कोई बाहरवाली
साधु हो या कि मवाली
जब फाग मधुर गावे
सब एक नज़र आवे
जब फाग मधुर गावे
सब एक नज़र आवे
भेद-भाव की दीवार मिटे
बिखरते रिश्तों की दरार पटे
बिखरते रिश्तों की दरार पटे
कीचड़ सनी गली हो या हो पथ कंकरीली
हर जगह मौजूद होली भाई होली
उड़े जब अबीर और गुलाल
उड़े जब अबीर और गुलाल
कर दे सब को रंगे हाल
रंगों से तब न तन खाली
दुर्विचार से न मन भारी
रंग - धन की जब वर्षा चली
फिर क्यों हो कहीँ कोई कंगाली
दुर्विचार से न मन भारी
रंग - धन की जब वर्षा चली
फिर क्यों हो कहीँ कोई कंगाली
चारों ओर होली की खुशियाली ।
होली की खुशियाली ।
अमर नाथ ठाकुर 21.03.2008 कोलकाता ।