Wednesday, 12 October 2016

अभी क्या परवाह है



-1-

माँ ने अपना कटार नहीं चलाया
माँ आयी और चली गयी
चण्ड-मुण्ड और शुम्भ-निशुम्भ को पुचकार कर
महिषासुर और रक्त-बीज को आशीर्वाद देकर ।
माँ आखिर माँ होती है
दया और करूणा की मूर्त्ति ।
माँ से उम्मीद नहीँ कि अपने कुपुत्रों का तिरस्कार करे
माता कुमाता नहीं हो सकती ।
माँ को आशा है कि उनका पुत्र सुधरेगा ।
और हर बार की तरह इस बार भी विजया दशमी के बाद चांस देकर चली गयी है माँ दुर्गा....

-2-

राम के अग्नि वाण से रावण का पुतला इस बार भी धू-धू कर जला
किन्तु रावण अट्टहास करता फिर बाहर आ गया
शूर्पणखा , कुम्भ - कर्ण और मेघनाद सब धूम-चौकड़ी करते ही रहे
मर्यादा पुरुषोत्तम राम से आशा नहीं कि मर्यादा का उल्लंघन करें
और बात-बात पर तरकश से संहारक वाण निकालें
वह इन्हें  सुधरने का भरपूर मौका दे रहे हैं हर बार की तरह इस बार भी  ।
दशहरे के बाद मर्यादा में रहकर भरपूर चांस देकर विदा लेकर चले गये हैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम .....

माँ चण्डी की दया और करुणा और
पुरुषोत्तम राम की मर्यादा
के अधीन ही सब आतंक और लूट-मार है ,
अभी क्या परवाह है ।

अमर नाथ ठाकुर
12 अक्टूबर 2016
कोलकाता / मेरठ ।


मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...