Thursday, 30 October 2014

प्रकृति का मनमोहक नज़ारा


          दूर हिमालय  की चोटी  रजत  धवल बर्फीली
          नीचे दूर–दूर तक पसरी भारतवर्ष की हरियाली
कहीं झर–झर  झर–झर  झरता  झरना
कहीं कल-कल करता नदी जल सुहाना ।
              वृक्ष  शाखाओं  पर पक्षी  वृंद  का  कलरव
              झील तट का वातावरण शांत स्निग्ध नीरव । 
तालाबों में तैरते मगर , मछलियाँ , उपलाते कमल
क्रीडा करते  हंस, बत्तख , बगुला और सारस दल ।     
              मंद–मंद कोमल वायु का शीतल स्पंदन
              रंग-बिरंगे पुष्प-लताओं से सज़ा उपवन ।
सागर तट पर ध्वनि हाहाकार
दौड़ती कूदती फाँदती लहरें दैत्याकार
ऊपर नीला आकाश , पूर्ण चंद्र निराकार
और टिमटिमाते तारों का असंख्य परिवार
कभी कड़कती बिजली , चमचमाती दिशाएँ
उफनते सागर में दूर दिखती तैरती नावें ।
         क्षितिज पर छिपता दिन , क्षितिज से ही झाँकता सवेरा
         बाघ ,  कुत्ता ,  हाथी ,  मानव  सबका यहाँ  बसेरा ।
प्रकृति का नज़ारा , मनमोहक , मनभावन कितना प्यारा !!!


अमर नाथ ठाकुर , 30, अक्तूबर , 2014 , कोलकाता ।  

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...