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क्यों
मायूस है कोई
क्यों
कोई रोता ?
क्यों
भयभीत है कोई
क्यों
कोई काँपता ?
क्यों
थकता है कोई
क्यों
कोई हाँफता ?
क्यों
प्रफुल्लित है कोई
क्यों
कोई ठहाके लगाता ?
क्यों
बेचैन है कोई
क्यों
किसी को चैन ?
क्यों
चुप-चाप है कोई
क्यों
किसी को पश्चात्ताप ?
क्यों
कहीं उमंग है ?
क्यों
कहीं जंग है ?
कहीं
कोई नंग – धड़ंग रंक है ,
कहीं
कोई मद - मत्त मतंग है ।
कहीं
कोई लाचार – बीमार है ,
कहीं
खुशियों की बहार है ।
कहीं
शैतानों का हुड़दंग है ,
कहीं
साधुओं का सत्संग है ।
कोई फुट
– पाथ पर भी गहरी नींद सो लेता है ,
कोई अट्टालिकाओं
में भी रात भर जागता रहता है ।
कहीं
कोई अन्तरिक्ष की ऊँचाइयाँ नापता ,
कोई समुद्र
की गहराइयों में खाक छानता ।
मार-काट लूट-खसोट ठगी भ्रष्टाचार का जमाना है ,
फिर भी
राम – राज्य की जीवित परिकल्पना है ।
--2—
जीवन
है एक लहरियादार रेखा
यह उठा-पटक
की एक कथा
कोई खाता
– पीता यहाँ कोई भूखा
कोई शत्रु
यहाँ कोई सखा
कहीं
प्यार , कहीं धोखा ।
जीवन
निशा – दिवा का लेखा
शाम देखी
किसी ने ऊषा देखा
सूर्य
– रश्मियों की प्रखरता
चंद्र
– प्रभा की शीतलता
रंग सुनहरा
कभी इसका फीका
कभी दुःख
कभी सुखों का झोंका ।
जीवन
जीया जिसने इसे परखा
जीवन
जन्म – जन्मांतर की गाथा
जीवन
एक लहरियादार रेखा ।
अमर नाथ
ठाकुर , 14 अक्तूबर , 2014 , कोलकाता
।