Friday, 17 October 2014

जीवन एक लहरियादार रेखा


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क्यों मायूस है कोई
क्यों कोई रोता  ?
क्यों भयभीत है कोई
क्यों कोई काँपता ?
क्यों थकता है कोई
क्यों कोई  हाँफता ?
क्यों प्रफुल्लित है कोई
क्यों कोई ठहाके लगाता ?
क्यों बेचैन है कोई
क्यों किसी को चैन ?
क्यों चुप-चाप है कोई
क्यों किसी को पश्चात्ताप ?
क्यों कहीं उमंग है ?
क्यों कहीं जंग है ?

कहीं कोई नंग – धड़ंग  रंक है ,
कहीं कोई मद - मत्त मतंग है ।
कहीं कोई  लाचार – बीमार  है ,
कहीं खुशियों की बहार है ।
कहीं शैतानों का हुड़दंग है ,
कहीं साधुओं का सत्संग है ।
कोई फुट – पाथ पर भी गहरी नींद सो लेता है ,
कोई अट्टालिकाओं में भी रात भर जागता रहता है ।
कहीं  कोई अन्तरिक्ष की ऊँचाइयाँ नापता ,
कोई समुद्र की गहराइयों में खाक छानता ।
मार-काट लूट-खसोट ठगी भ्रष्टाचार का जमाना है ,
फिर भी  राम – राज्य की  जीवित परिकल्पना है ।

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जीवन है एक लहरियादार रेखा
यह उठा-पटक की एक   कथा
कोई खाता – पीता यहाँ कोई भूखा
कोई शत्रु  यहाँ कोई सखा
कहीं प्यार , कहीं धोखा ।

जीवन निशा – दिवा का लेखा
शाम देखी किसी ने ऊषा देखा
सूर्य – रश्मियों की प्रखरता
चंद्र – प्रभा की शीतलता
रंग सुनहरा कभी इसका फीका
कभी दुःख कभी सुखों का झोंका ।


जीवन जीया जिसने इसे परखा
जीवन जन्म – जन्मांतर की गाथा
जीवन एक लहरियादार रेखा ।

अमर नाथ ठाकुर , 14 अक्तूबर , 2014 , कोलकाता ।


मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...