-1-
एम्बूलेंस
भागती कभी अग्निशामक वाहन टनटनाती
बसों
कारों वाहनों की कतार की कतार निकलती
लाल
बत्ती पर रूकती कभी पड़ाव पर ठमकती
टकराती
चूमती कभी ओवरटेक करती रगड़ खाती
कभी
पलटती कभी उलटती कभी पिचकती
कभी
घायल कर कभी रौंद कर भाग पड़ती
आगे
निकलती कोई पीछे छूटती कोई साथ चलती
कोई
धुआँ छोड़ती घड़घड़ाती कोई सरसराती
कोई
सुरीली हॉर्न बजाती बिना रुके चलती जाती
कोई
लक्ष्य पर पहूंचती कोई विपथ हो भटकती
पंप
पर पेट्रोल-डीजल खाती कोई हवा पीती
कोई
पंकचर होती किसी की हवा निकलती
कोई
धुएँ टेस्ट में पास होती कोई फेल होती
किसी
का चालान कटता कोई बेदाग निकलती
कोई
गड्ढे में उछलती कोई कीचड़ में अटकती
कहीं
ठेलकर कहीं ब्रेक वैन से गैरेज पहुँचती
फिर
डेंटिंग-पेंटिंग ओवरहौलिंग कराती
नई
बॉडी में चम चमा कर निकलती ।
और फिर
ये गाडियाँ चलती जाती चलती ही जाती ।
-2-
यह
जीवन वाहन भी ऐसे ही चलता जाता
भटकता
टकराता रगड़ खाता गिरता उठता पड़ता
कभी
धूल फाँकता कभी कीचड़ में सनता
पसीने
में लथ-पथ कभी ठंढ में कंपकंपाता
बिखरे
बालों में कभी सुलझे कपालों में झलकता ।
मंदिर
के सहारे मस्जिद के किनारे कभी गिरिजाघर के द्वारे
ये जीवन
वाहन चलता जाता ये जीवन वाहन चलता जाता ।
किसी
का साथ मिलता कोई बिछुड़ता
कोई
धोखा देता कोई जार-जार रूलाता
कोई
फँसाता कोई झिड़कता कोई हँसाता ।
कभी
मधुर संगीत की ध्वनि आती कभी होता कोलाहल
अमृत
सदृश शीतल पावन जल कभी मिलता कड़वा हालाहल
कहीं
झंकाड़ झोंपड़ी मिलती कभी आलीशान महल ।
कभी झकझोरती
आंधी कभी मूसलाधार बरसात मिलती
कभी सपाट
मैदानी रास्ता कभी रास्ते पर झाड़ मिलती
टिमटिमाते
सितारों का सहारा कभी सूरज की गर्मी विलखाती
कभी
कड़कती बिजली राह दिखाती कभी चाँदनी भी भटकाती
कभी
कांटे कभी रंग-बिरंगी मद भरी फूलों की क्यारी मिलती
कभी निर्जल
बलुआही रेगिस्तान कभी मैदानी हरियाली मिलती ।
कभी कटाक्ष
गालियाँ मिलती कभी प्रसंशा का मधुर पान
कभी
एक का साथ मिलता कभी विरुद्ध सारा जहान ।
फिर भी ये जीवन वाहन चलता जाता चलता जाता ।
फिर भी ये जीवन वाहन चलता जाता चलता जाता ।
मरहम
पट्टी लगती कभी किडनी हृदय फेफड़ा बदलता
अस्पताली
गैरेज से नूतन तन धारण कर जब भी निकलता
ये
जीवन वाहन चलता जाता , ये जीवन वाहन चलता जाता
।
अमर
नाथ ठाकुर , 9 नवंबर , 2014 ,
कोलकाता ।