Friday, 11 April 2014

हमारी पार्टियां

कभी कालिमामयी
कभी रक्त-रंजित-सा  हुआ पंजा  
कीचड़ में लथपथ विद्रूप कमल । 

धुआँ छोड़ता फूटे शीशे वाला लालटेन
घूमी हैंडिल वाली पंकचर हुई साइकल ।

संगमरमरी पत्थर के बोझ से लदा हाथी पागल ।

निशाने से बेखबर तीर
जनता का सिर फोड़ता हथौड़ा
जेब काटता फसल लूटता  हँसुआ
सूख-सूख कर कृषकाय हुआ- सा तृण दल ।



अस्थि –पंजर लंगोट धारी के कंधे पर लटका एक हल । 
कचड़े के अंबार में बेतरतीब फंसा झाड़ू का कौशल । 

हमारी पार्टियाँ अपनी चुनाव चिह्नों के अनुरूप , 
चुनावी दंगल में उड़ा रही पार्टियाँ वोटरों को चूस-चूस । 



अमर नाथ ठाकुर , 10 अप्रैल, 2014 , कोलकाता । 

हमारे नेता


पहाड़-सरीखे विशाल झूठे वादे की फेहरिस्त लिये
सागर की गहराइयों –सी आचरण की निम्नता वाले

कभी धमकाते
कभी पुचकारते

कोयल की मधुरता
कौवे की कर्कशता
हंस की शालीनता
बाज़ की आक्रामकता
 सब साथ लिये

बरसाती मेढ़क की तरह टर्र-टर्र करते  
चुनाव समय जो प्रकट होते
वो हमारे नेता होते ।




अमर नाथ ठाकुर , 10 अप्रैल , 2014 , कोलकाता । 


Wednesday, 9 April 2014

मोदी से कुछ अनुत्तरित सवाल

मोदी , क्या सचमुच तुम दंगे कराते हो ?

तो ये 2002 में क्या हुआ था ?
कहते हैं बहुत मुस्लिम मारे गए थे ।
माना , गोधरा में ट्रेन जलायी गई थी ।
बहुत हिन्दू जलाए गए थे ।
खून –के बदले –खून का हिसाब तो सर्वसाधारण को मालूम है ।
क्या, सचमुच यह हिसाब तुम्हें भी मालूम है ?
क्या, तुम भी सर्वसाधारण में से एक हो ?
क्या, तुम भी हम जैसे हो ?

कितने जलाए गए थे
कितने काटे गए थे
कितने बेघर हुए थे
कितने लूटे गये थे
माई के बेटे , बेटों की माई
भाई की बहन , बहन का  भाई
न जाने कितने-कितनों के खून बहे थे ।

हिंसा खेल बन गया था
कानून मज़ाक बना था
पुलिस मूक बनी रही थी
रक्षक भक्षक बना पड़ा था
और , मोदी क्या तुम सचमुच मौन रहे थे ?

गलियां वीरान हो गई थीं
झोपड़ियाँ बेजान हो गयी थीं
भयाक्रांत बच्चे सिसकते रहे थे
चील-कौए जश्न मना रहे थे
भूख से भूख तड़पी थी
प्यास से प्यास प्यासी हुई थी
निस्सहाय मानवता कराह रही थी
दया,माया,करुणा को मोदी, कौन ले उड़ा था ?

क्या मोदी , ये सचमुच भूल गये ?
मान लिया , चलो मान लिया ।

आज मोदी जब तुम दहाड़ते हो
सीना चौड़ी कर जब हुंकारते हो
शत्रुओं को जब ललकारते हो
तो लगता है सचमुच वीर दीवाने हो ।

भ्रष्टाचार मिटाने को
मानवता बरसाने को
सचमुच तुम प्रतिबद्ध हो ।
कंधे पे गमछी डालकर
भाल पर तिलक सजाकर
क्योंकि सचमुच द्वेष भुलाकर तुम करबद्ध हो ।

तो भारत- भक्ति के नाम पर
दस वादे  चाहिए --

भ्रष्टाचारियों से कोई समझौता नहीं करोगे
जुल्मी-आरोपी को मंत्री नहीं बनाओगे
सेठ – साहूकारों के संग नहीं उड़ोगे
कालाधन वापस लाओगे
विकास का बिगुल बजाओगे
भाईचारा बढ़ाओगे
न होने दोगे दंगे- फसाद
न झगड़ा न कोई वाद-विवाद ।

हम सर्वसाधारण हैं
भूत को भूलकर
करतल ध्वनि से
तुम्हारी आरती करेंगे ।
तुम भी सर्वसाधारण बन सर्वसाधारण के दिलों में निवासोगे ।
भारत-भारती के सिंहासन-रथ का सारथी बनोगे ।

चलो माफ किया ।

लेकिन यह कैसे मानेंगे
कि उस ललना की तुमने जासूसी नहीं की थी
उसकी निजता में दखल नहीं दी थी ?
अंबानी के जहाज़ में तुम अब तक नहीं उड़े ?
अदानी को ज़मीनों का उपहार नहीं दिया ?
जुल्मियों को मंत्री नहीं बनाया ?
टाटा को ज़मीनें नहीं लुटायीं ?
अंबानी को खुश करने दामाद को मंत्री नहीं बनाया ?
भुज के सिख किसानों को नहीं भगाया ?
जनता को आतंकित नहीं करते ?

ये प्रश्न क्यों अनुत्तरित हैं ?

ज्यों-ज्यों चुनाव नज़दीक आता जाता है
विकास का गुजरात मॉडल क्यों बकवास लगता है ?
क्यों गुजरात में भी अशिक्षित और निर्धन बसता है ?
प्रथम – चरण के चुनाव तक हमें  ये जबाव चाहिए ।
क्योंकि कौंग्रेस को हमने दरकिनार किया है
आप का किन्तु हमने नहीं परित्याग किया है ।



अमर नाथ ठाकुर , 6 अप्रैल , 2014 , कोलकाता ।  

Tuesday, 8 April 2014

निराशा के चुनाव




ये दल इकतारा , गिटार , फिर सितार के तार
सब की एक-सी तान सब-के-सब तार-तार ।

ढोल की ढाल –सी
बांसुरी के बेसुरी राग- सी
इन दलों के वादे हैं
सबके दावे हैं
सब- के- सब खोखले हैं
सब ढकोसले हैं ।

कोई शालीन बगुले –सी पेश करता है प्रतिमूर्त्तियाँ
कोई बाज़-बहादुर की चालाकियों की झलकियाँ
शासन-जल-तंत्र के सब शिकारी हैं
सब-के-सब खाते हैं मछलियाँ ।

जो सांप्रदायिकता पर वोट मांगते
जो आरोपियों को टिकट बांटते
जो जुल्मियों से हाथ मिलाते
जो जाति-भाषा-प्रांत का विष फैलाते
जो सिर्फ घाव –पीव करे
उनसे क्या उम्मीद करें ।

नक्सली आक्रमण बढ़ेंगे ,
फसादों की होगी भरमार
कहीं बम फटेंगे
कहीं होगी तकरार ।

तेल बहता ही रहेगा
गैस रिसता ही रहेगा
काले –धन पर नहीं होगा विचार
रेल-फोन-कोयले का जारी रहेगा बंटाधार । 

चलता रहा यूपीए का भ्रष्टाचार
चलता रहेगा एनडीए का भी व्यापार ।

कभी ममता मूल्य मांगेगी , कभी जयललिता करेगी साभार
मुलायम कठोर ही रहेंगे , माया का हाथी करेगा चिङ्ग्घाड़ ।
यदि बनेगी मिली-जुली अधमरी सरकार
तो कहाँ रहेगी समरसता , कहाँ होगा प्यार ।



अमरनाथ ठाकुर , 7 अप्रैल , 2014 , कोलकाता । 

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...