Tuesday, 21 April 2015

मेरे ईश्वर



अनंत मत
अनंत पथ
किन्तु एक लक्ष्य ।
विभिन्न रूप
विभिन्न तथ्य
किन्तु एक सत्य ।
कभी साकार
कभी निराकार
किन्तु वह फिर भी निर्विकार ।
वही कर्त्ता-धर्त्ता
वही संहार-कर्त्ता
किन्तु वही होता पालन - कर्त्ता । 
कभी सगुण  
कभी निर्गुण  
किन्तु गुण-अगुण से भी वह तटस्थ ।
वही दुःख - हर्त्ता
वही सुख - दाता
किन्तु  सुख-दुःख से भी वह विरक्त ।

वह असीम दया का सागर  , 
वह स्रोत अजस्र प्रेम  का । 
अनन्त आनंद का अक्षुण्ण धरोहर , 
मालिक कुशल-क्षेम का ।  
मेरा ईश्वर तेरा अल्ला उसका ईसा  । 
मेरे तेरे उसके हृदय में  बसा एक-सा ।  


अमर नाथ ठाकुर , 21 अप्रैल , 2015 , कोलकाता । 

चोर जब पहरेदार बनेंगे



चोर जब पहरेदार बनेंगे
डाकू जब थानेदार सजेंगे ...
कोलाहल से क्यों न भंग होगी नीरवता
क्रन्दन से पस्त होगी मुस्कान की मधुरता
कायरता से तब पराजित होगी वीरता 
चारों तरफ रहेगी ईमानदारी की विवशता 
लूट से प्रताड़ित होती रहेगी पूरी व्यवस्था । 


दुर्योधनों का मान बढ़ेगा
दुःशासनों का शान चढ़ेगा । 
शकुनि के पाशे तब और जीतेंगे
पांडव आजीवन वनवास करेंगे । 
पूरा होगा द्रौपदियों का चीरहरण 
होलिकाएँ  करेंगीं बेशुमार नर्त्तन ।

हिरण्यकशिपुओं के जब भजन-कीर्त्तन चलेंगे ,
प्रह्लादों की सिसकी और क्रंदन फिर क्यों रूकेंगे ! 


चोर जब पहरेदार बनेंगे  
डाकू जब थानेदार सजेंगे ...


अमर नाथ ठाकुर , 30 मार्च , 2015 , कोलकाता ।   

Monday, 20 April 2015

हमारी सोच कैसी सोच




बिना सोचे ये क्या किया ?
क्या सोचा और क्या कर डाला ?
जो नहीं सोचना था वह भी सोचा
लेकिन जो सोचना था वह नहीं सोचा ।

क्षण-क्षण बदलती सोच ,
लेकिन वही भेद-भाव-पूर्ण सोच ।  
वही घिसी-पिटी , दकियानूसी सोच  
विवेकहीन और लूट-मार वाली सोच
झूठी सोच , स्वार्थ-पूर्ण सोच
लक्ष्य से विमुख करनेवाली , डूबने-डूबाने वाली सोच ।
चरित्र में ओत-प्रोत सोच
सोच से ओत-प्रोत चरित्र
जैसी सोच वैसा चरित्र ।
असंतुलित सोच से ही अनियंत्रित व्यवहार ।
चरमराती व्यवस्था और बिगड़ता संसार ।

हर वक्त ये सोच फिसलती है !
ये सोच क्यों नहीं सुधरती है ?
निःस्वार्थ सोच , स्वस्थ सोच 
सबको साथ ले चलने वाली सोच 
निर्मल और  सार्थक सोच 
ईमानदार सोच से करना होगा ओत-प्रोत ।
मन को व्यवस्थित कर ईश्वर को समर्पित
वचन और कर्म से भी होना होगा अनुशासित ।  
हमारी सोच से हमारा चरित्र
आपकी सोच से आपका चरित्र ।  
फिर होनी है राष्ट्र की सोच पवित्र ,
और तब बनेगा राष्ट्र का मन-भावन चित्र ।  


अमर नाथ ठाकुर , 09 जनवरी  , 2015  , कोलकाता । 

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...