जब मोल-भाव हो चुका हो
गहने कपड़े खरीदे जा चुके हों
तब तो घर वापस जाना ही होगा।
सूरज जब ढल चुका हो
अंधियारी छाने लगी हो
पाखियों को घोंसलों में लौटना ही होगा ।
खेल जब खेला जा चुका हो
हार-जीत का फैसला हो चुका हो
दर्शकों को स्टेडियम से जाना ही होगा।
जब ट्रांसफर आर्डर आ गया
हो
अधूरे फाइलों को निपटाना ही होगा
कुर्सी छोड़ अब नई जगह जाना ही होगा।
पहाड़ों से उतर उछलती-कूदती
गंगा
मैदानों से गुजर शिथिल हो
गयी होती गंगा
अब गंगा-सागर में एकाकार होना ही होगा ।
अब जबकि यात्रा पूरी हो गयी
हो
'गट्ठर' ले ट्रेन से उतरना ही
होगा
ब्रज की गोधूलि में लोट-पोट
हो
श्री कृष्ण के चरणों में जाना ही होगा ।
उनका 'गट्ठर' उनको समर्पित कर
मैले-कुचैले-फटे वस्त्र त्याग कर
नव वस्त्र धारण करना ही होगा ।
समय शेष नहीं,अब जाना ही होगा !
अमर नाथ ठाकुर , 29 जून,
2021, कोलकाता