Friday, 25 March 2016

लघु कविताएँ



1॰ प्रजातंत्र

अपना बाज़ार
अपनी दुकान ,
अपने ग्राहक
फिर भी नुकसान !

2. जातिवाद 

अपना कुनबा  
अपनी जाति ,  
अपनी ही संतति
फिर भी नहीं सदगति !

3॰ परिवारवाद / क्षेत्रवाद
  
अपना क्षेत्र
अपनी पार्टी
अपनी सरकार
अन्य की क्या सरोकार ।

4. माल्या और बैंक

अपनी टीमें
अपने कप्तान
अपने सब खिलाड़ी ,
तो फिर किसका गोल
और किसकी बाज़ी ?

5॰ कन्हैया की आज़ादी

न जाति  अर्जित
न गरीबी उपार्जित
तो क्यों बोले उत्पीड़न पोषित ?
न अपनी धरती
न अपना आकाश  
न अपना कोई जहान
फिर भी उन्मुक्त उड़ान ।

6॰ राहुल गांधी

खुद ही डॉक्टर
खुद ही बीमार
किसकी दवाई
से हो अब उपचार ?

7. अराजकता

अपना कोर्ट
अपने जज से भरा ,
तिस पर अपने वकील की बहस
तो फिर किस बात की सज़ा ?

8. लालू की सरकार

अपनी गाड़ी
अपना ड्राइवर
अपने यात्री
न अन्य  किसी को चढ़ाना
न किसी को उतारना
गाड़ी चले न चले
अपना पेट पले ।


 अमर नाथ ठाकुर , मार्च 2016 , कोलकाता । 

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...