Monday, 11 November 2013

ये जिंदगी भी क्या जिंदगी है भाई




कितने ईमानदार हैं हम भाई ये देखो ,

अपनी सारी बेईमानी का एक-एक हिसाब हम हैं रखते ।

हम कितने सत्यवादी हैं भाई ये देखो ,

अपने झूठ का पूरा पुलिंदा खोल कर हम हैं बताते ।

ये साबुन भी घिस – घिस कर कितना गंदा हो गया भाई ,

बार – बार हमारी – तुम्हारी गंदगी धोते - धोते ।

ये जिंदगी भी क्या जिंदगी है भाई ,


जो बची है पूरी की पूरी बार – बार भी मर के । 



अमर नाथ ठाकुर , 8 नवंबर , 2013, कोलकाता । 

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...