कितने ईमानदार हैं हम भाई ये देखो ,
अपनी सारी बेईमानी का एक-एक
हिसाब हम हैं रखते ।
हम कितने सत्यवादी हैं भाई ये
देखो ,
अपने झूठ का पूरा पुलिंदा खोल
कर हम हैं बताते ।
ये साबुन भी घिस – घिस कर कितना
गंदा हो गया भाई ,
बार – बार हमारी – तुम्हारी गंदगी
धोते - धोते ।
ये जिंदगी भी क्या जिंदगी है भाई
,
जो बची है पूरी की पूरी बार –
बार भी मर के ।
अमर नाथ ठाकुर , 8 नवंबर , 2013, कोलकाता ।