मैं सनातनी हिन्दू हूँ ।
मैं अद्वैतवादी , द्वैतवादी या विशिष्टाद्वैतवादी में से कुछ भी हो सकता हूँ । इसके लिये मेरे ऊपर कोई भी बन्दिश नहीं है ।
मैं शैव हो सकता हूँ , शाक्त या वैष्णव । मैं कबीर पंथी , नानक पंथी इत्यादि में से कुछ भी हो सकता हूँ । मैं मूर्त्ति पूजक हो सकता हूँ या नहीं भी । मैं मन्दिर पूजा के लिये जा सकता हूँ या नहीं भी । मैं नाना प्रकार के पेड़ों , पक्षियों , जानवरों , नदियों , पहाड़ों की पूजा कर सकता हूँ या नहीं भी । मैं व्रत रख सकता हूँ या नहीं भी । मैं मन्त्रों का जाप कर सकता हूँ , नहीं भी ।
मैं शाकाहारी हो सकता हूँ या माँसाहारी भी । मैं नाना प्रकार के जानवरों का माँस खा सकता हूँ । मैं नाना प्रकार की मछलियाँ भी खा सकता हूँ । मुझे समाज वालों ने या धर्म के ठेकेदारों ने समाज या धर्म से निष्कासित या बहिष्कृत नहीं किया या इसकी कोई धमकी भी नहीं दी ।
मैं मन्दिर जा सकता हूँ , मज़ार , मस्ज़िद , गुरुद्वारे में या चर्च में जाकर ईश्वर की वन्दना कर सकता हूँ । मुझे माथे पर रुमाल या जाली दार टोपी लगाने में ज़रा भी हिचक नहीं होती । मैं धोती या लूँगी या पतलून बेहिचक धारण कर लेता हूँ । इन धार्मिक स्थलों में , इन अजीबोगरीब पोशाकों में मुझे ईश्वर के प्रति निष्ठा या श्रद्धा दर्शाने में कोई संकोच नहीं हुआ । मेरा धर्म कभी इसमें बाधक नहीं हुआ । मुझे सिख , जैन , बौद्ध , मुस्लिम , पारसी , यहूदी या ईसाई धर्मावलंबियों से कोई परहेज़ नहीं । इन सबों से हमारी सनातनी परम्परा ने कभी घृणा या द्वेष नहीं सिखाया । मैं रामकृष्ण , साईं बाबा को सामान दृष्टि से पूजता हूँ । मैं कई चर्च में जाकर क्राइस्ट के सामने सर नवा कर आया हूँ । मैं अपनी अनेक दिनों की इच्छा पूर्ति के लिये अजमेर शरीफ भी शीघ्र जाना चाहता हूँ । हमारी परम्परा , हमारा धर्म , हमारी संस्कृति हमें ऐसा करने को हमें प्रेरित करते हैं ।
हमारा धर्म घृणा या हिंसा का कभी महिमा - मण्डन नहीं करता । जाति - प्रथा या स्त्रियों के सम्बन्ध में आपत्ति जनक बातों के उल्लेख वाले धार्मिक ग्रंथों के हिस्सों को सनातनी हिन्दूओं ने तहे दिल से नकारा है , तिरस्कृत किया है । इन भागों की खुले आम निन्दा होती है । ऐसी निन्दा या आलोचना पर कभी कोई रोक या धमकी का अहसास नहीं हुआ ।
हमारी सीमित जानकारी में हमारे सनातन धर्म में जिहाद , फतवा या काफ़िर जैसे शब्दों का समतुल्य शब्द नहीं । यदि ऐसा हो तो उसे नकारने या त्यागने में कोई भी प्रतिरोध नहीं । जो सबका है वह सनातन धर्म है । जो सबको स्वीकारता है वह सनातन धर्म है । जो आज़ादी देता है , जहाँ बंधन नहीं , भेद-भाव नहीं ,घृणा या द्वेष नहीं जो सिर्फ प्रेम और विश्वास का पाठ फैलाता है वह सनातन धर्म है । हम यह कहना पसंद करते हैं कि जहाँ प्रेम और करुणा , विश्वास , आज़ादी , श्रद्धा और निष्ठा इत्यादि का वास हो वहीं सनातन धर्म है ।
सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म ही सार्वभौमिकता की कसौटी पर खरा उतरता दीखता है । सनातन हिन्दू धर्म में दुनियाँ की अन्य सारी धार्मिक मान्यताओं को आत्मसात करने की क्षमता है ।
अमर नाथ ठाकुर , 23 जुलाई , 2016 , कोलकाता ।
मैं अद्वैतवादी , द्वैतवादी या विशिष्टाद्वैतवादी में से कुछ भी हो सकता हूँ । इसके लिये मेरे ऊपर कोई भी बन्दिश नहीं है ।
मैं शैव हो सकता हूँ , शाक्त या वैष्णव । मैं कबीर पंथी , नानक पंथी इत्यादि में से कुछ भी हो सकता हूँ । मैं मूर्त्ति पूजक हो सकता हूँ या नहीं भी । मैं मन्दिर पूजा के लिये जा सकता हूँ या नहीं भी । मैं नाना प्रकार के पेड़ों , पक्षियों , जानवरों , नदियों , पहाड़ों की पूजा कर सकता हूँ या नहीं भी । मैं व्रत रख सकता हूँ या नहीं भी । मैं मन्त्रों का जाप कर सकता हूँ , नहीं भी ।
मैं शाकाहारी हो सकता हूँ या माँसाहारी भी । मैं नाना प्रकार के जानवरों का माँस खा सकता हूँ । मैं नाना प्रकार की मछलियाँ भी खा सकता हूँ । मुझे समाज वालों ने या धर्म के ठेकेदारों ने समाज या धर्म से निष्कासित या बहिष्कृत नहीं किया या इसकी कोई धमकी भी नहीं दी ।
मैं मन्दिर जा सकता हूँ , मज़ार , मस्ज़िद , गुरुद्वारे में या चर्च में जाकर ईश्वर की वन्दना कर सकता हूँ । मुझे माथे पर रुमाल या जाली दार टोपी लगाने में ज़रा भी हिचक नहीं होती । मैं धोती या लूँगी या पतलून बेहिचक धारण कर लेता हूँ । इन धार्मिक स्थलों में , इन अजीबोगरीब पोशाकों में मुझे ईश्वर के प्रति निष्ठा या श्रद्धा दर्शाने में कोई संकोच नहीं हुआ । मेरा धर्म कभी इसमें बाधक नहीं हुआ । मुझे सिख , जैन , बौद्ध , मुस्लिम , पारसी , यहूदी या ईसाई धर्मावलंबियों से कोई परहेज़ नहीं । इन सबों से हमारी सनातनी परम्परा ने कभी घृणा या द्वेष नहीं सिखाया । मैं रामकृष्ण , साईं बाबा को सामान दृष्टि से पूजता हूँ । मैं कई चर्च में जाकर क्राइस्ट के सामने सर नवा कर आया हूँ । मैं अपनी अनेक दिनों की इच्छा पूर्ति के लिये अजमेर शरीफ भी शीघ्र जाना चाहता हूँ । हमारी परम्परा , हमारा धर्म , हमारी संस्कृति हमें ऐसा करने को हमें प्रेरित करते हैं ।
हमारा धर्म घृणा या हिंसा का कभी महिमा - मण्डन नहीं करता । जाति - प्रथा या स्त्रियों के सम्बन्ध में आपत्ति जनक बातों के उल्लेख वाले धार्मिक ग्रंथों के हिस्सों को सनातनी हिन्दूओं ने तहे दिल से नकारा है , तिरस्कृत किया है । इन भागों की खुले आम निन्दा होती है । ऐसी निन्दा या आलोचना पर कभी कोई रोक या धमकी का अहसास नहीं हुआ ।
हमारी सीमित जानकारी में हमारे सनातन धर्म में जिहाद , फतवा या काफ़िर जैसे शब्दों का समतुल्य शब्द नहीं । यदि ऐसा हो तो उसे नकारने या त्यागने में कोई भी प्रतिरोध नहीं । जो सबका है वह सनातन धर्म है । जो सबको स्वीकारता है वह सनातन धर्म है । जो आज़ादी देता है , जहाँ बंधन नहीं , भेद-भाव नहीं ,घृणा या द्वेष नहीं जो सिर्फ प्रेम और विश्वास का पाठ फैलाता है वह सनातन धर्म है । हम यह कहना पसंद करते हैं कि जहाँ प्रेम और करुणा , विश्वास , आज़ादी , श्रद्धा और निष्ठा इत्यादि का वास हो वहीं सनातन धर्म है ।
सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म ही सार्वभौमिकता की कसौटी पर खरा उतरता दीखता है । सनातन हिन्दू धर्म में दुनियाँ की अन्य सारी धार्मिक मान्यताओं को आत्मसात करने की क्षमता है ।
अमर नाथ ठाकुर , 23 जुलाई , 2016 , कोलकाता ।